Sammved Shikhar / सम्म्वेद शिखर और वर्तमान परिदृश्य :जैन मंदिर
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सम्म्वेद शिखर की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि :
सम्मेद शिखरजी गिरिडीह, झारखंड राज्य में अवस्थित है. यह पहाडी जैन धर्म से सम्बंधित है. इसे जैन मंदिर (धर्म देवता) तीर्थंकर पर्व पर्यूषण स्थान के रूप में समूचे भारत ही नहीं विश्व भर में विख्यात है. इस प्रकार भारत में स्थित यह शिखर भौगोलिक दृष्टि से 23°57’40” उत्तर , 86°8’13.5″ पूर्व – 23°57’40” उत्तर 86°8’13.5″ पूर्व , ऊंचाई 1,365 मीटर (4,478 फीट) पर स्थित है. झारखंड के गिरिडीह जिले में जैनियों के लिए सबसे पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक है। यह पारसनाथ पहाड़ी पर स्थित है, जो झारखंड राज्य का सबसे ऊँचा पर्वत है। यह दिगंबर और श्वेतांबर दोनों का सबसे महत्वपूर्ण जैन तीर्थ (तीर्थ स्थल) है, पारसनाथ पहाड़ी के नाम से जाना जाता है। इसकी ऊंचाई लगभग एक हजार 350 मीटर है। इसे झारखंड के हिमालय के रूप में जाना जाता है।
दुनिया भर के जैन धर्मावलंबी इस पहाड़ी को श्री शिखर जी और सम्मेद शिखर के रूप में जानते हैं। यह उनका सर्वाेच्च तीर्थ स्थल है। इस पहाड़ी की तराई में स्थित कस्बे को मधुवन के नाम से जाना जाता है। जैन धर्म में कुल 24 तीथंर्कर (सर्वाेच्च जैन गुरु) हुए। इनमें से 20 तीथंर्करों ने यहीं तपस्या करते हुए देह त्याग किया यानी निर्वाण या मोक्ष प्राप्त किया। इनमें 23 वें तीथंर्कर भगवान पार्श्वनाथ भी थे। भगवान पार्श्वनाथ की टोंक इस शिखर पर स्थित है। पार्श्वनाथ का प्रतीक चिन्ह सर्प है। उन्हीं के नाम पर इस स्थान का नाम पारसनाथ भी है।
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यह सिद्ध क्षेत्र कहलाता है और जैन धर्म में इसे तीर्थराज अर्थात तीर्थों का राजा कहा जाता है। यहां हर साल लाखों जैन धर्मावलंबी आते हैं। वे मधुवन में स्थित मंदिरों में पूजा-अर्चना के साथ पहाड़ी की चोटी यानी शिखर पर वंदना करने पहुंचते हैं। मधुवन से शिखर यानी पहाड़ी की चोटी की यात्रा लगभग नौ किलोमीटर की है। जंगलों से घिरे पवित्र पर्वत के शिखर तक श्रद्धालु पैदल या डोली से जाते हैं। सम्म्वेद शिखर गिरनार, दिलवाड़ा, पालीताना और अष्टपद कैलाश के साथ पांच प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है।
क्या है विवाद का विषय :
पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी) को पिछले कुछ दिनों में पारसनाथ वन्यजीव अभयारण्य में होने वाली कुछ गतिविधियों से संबंधित मुद्दों के बारे में जैन समाज का प्रतिनिधित्व करने वाले विभिन्न संगठनों से कई अभ्यावेदन प्राप्त हुए हैं, जिससे जैन धर्म के अनुयायियों की भावनाओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। .
शिकायतों में झारखंड सरकार द्वारा पारसनाथ वन्यजीव अभयारण्य के पर्यावरण संवेदनशील क्षेत्र की अधिसूचना के प्रावधानों के दोषपूर्ण कार्यान्वयन का उल्लेख है। कहा गया है कि राज्य सरकार की इस तरह की लापरवाही से उनकी भावनाओं को ठेस पहुंची है।
22 अक्टूबर, 2018 को रघुवर दास के मुख्यमंत्रित्व काल में झारखंड सरकार के पर्यटन, कला संस्कृति और खेलकूद विभाग ने एक कार्यालय आदेश जारी किया, जिसमें कहा गया है कि पारसनाथ सम्मेद शिखर जी सदियों से जैन धर्मावलंबियों का पवित्र और पूजनीय स्थल है और इसकी पवित्रता को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए राज्य सरकार प्रतिबद्ध है।
26 फरवरी, 2019 को इसी सरकार ने एक गजट नोटिफिकेशन जारी किया, जिसमें गिरिडीह के पारसनाथ मधुवन का उल्लेख पर्यटन स्थल के तौर पर किया गया है। यह गजट अधिसूचना अकेले पारसनाथ मधुवन के बारे में नहीं, बल्कि इसमें राज्य के सभी 24 जिलों के पर्यटन स्थलों का उल्लेख किया गया है।
2 अगस्त, 2019 को भारत सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने एक गजट जारी किया, जिसमें इसे वन्य जीव अभयारण्य, इको सेंसेटिव जोन पर्यटन स्थल के रूप में चिह्नित किया गया है।
तत्कालीन झारखण्ड सरकार का नोटिफिकेशन का प्रभाव :
झारखंड में हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार ने वर्ष 2021 में नई पर्यटन नीति घोषित की और इसका गजट नोटिफिकेशन 17 फरवरी 2022 को जारी किया गया। इसमें पारसनाथ को धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में चिह्नित किया गया है। इस नोटिफिकेशन में धर्मस्थल की पवित्रता बरकरार रखते हुए इसके विकास की बात कही गई है।
वर्तमान में जैन धर्मावलम्बी सम्मेद शिखर यानी पारसनाथ को पर्यटन स्थल घोषित करने वाली इन सभी नोटिफिकेशन का विरोध कर रहा है। समाज के धर्मगुरुओं का कहना है कि इसे धार्मिक स्थल रहने दिया जाए, अन्यथा पर्यटन क्षेत्र बनाने से इस स्थान की पवित्रता भंग हो जाएगी। इसी मांग को लेकर वर्तमान में माह दिसंबर और जनवरी में देश-विदेश के कई शहरों में जैन धर्मावलंबियों ने मौन जुलूस निकाला है और प्रदर्शन किया है।