आयडिया आफ भारत/भारतीय शिक्षा प्रणाली- /इतिहास – महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर सीरीज – भाग -6

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#1. किसका कथन है कि -" प्राचीन भारतीय शिक्षा के मुख्य उद्देश्य ईश्वर भक्ति एवं धार्मिकता का समावेश, चरित्र निर्माण , व्यक्तित्व का विकास, नागरिक एवं सामाजिक कर्तव्य पालन की भावना का समावेश, सामाजिक कुशलता की उन्नति और राष्ट्रीय संस्कृति का संरक्षण एवं प्रसार है।"

डा ए एस अलटेकर ने प्राचीन भारतीय शिक्षा पद्धति एवं उसके उद्देश्यों पर प्रकाश डाला है।

#2. प्राचीन भारत में शिक्षा के प्रमुख केंद्र थे -

प्राचीन भारत में शिक्षा के प्रमुख केंद्र थे – तक्षशिला , काशी, कांची, नालंदा, विक्रमशिला, काल्पी, ओदन्तपुरी, नवदीप (नदिया) ।

#3. ओदन्तपुरी विश्वविद्यालय की स्थापना किसके द्वारा की गई थी ?

इसकी स्थापना 8 वीं शदी में पालवंश के शासक गोपाल ने की थी। यह नालंदा और विक्रमशिला के समान अपने समय का प्रमुख विश्वविद्यालय था। यह बिहार प्रांत के पटना जिले में स्थित है। इस विश्वविद्यालय में प्रमुख रूप से तांत्रिक साहित्य का अध्यापन कार्य किया जाता था। यह बौद्ध धर्म के वज्रयान शाखा के केंद्र के रूप में विख्यात था।

#4. तक्षशिला विश्वविद्यालय कहाँ अवस्थित है।

भारत की प्राचीनतम शिक्षण संस्थान तक्षशिला वर्तमान पाकिस्तान के रावलपिंडी जिले में स्थित थी। इस विश्वविद्यालय में विद्याअध्ययन के लिए देश-विदेश से विद्यार्थी आते थे। यहाँ चाणक्य जैसे प्रकांड राजनीतिज्ञ तथा कौमारजीव जैसे शल्य चिकित्सक आचार्य के पद पर पदस्थ थे। कोशल नरेश प्रसेनजित, मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य, जीवक, पतंजलि, वसुबन्ध जैसे विद्यार्थी ने यहाँ से शिक्षा ग्रहण किया था। यहाँ पर गुरु- शिष्य परंपरा पर आधारित वेद, वेदांग, व्याकरण, तर्कशास्त्र, दर्शन एवं 18 शिल्प विद्या, शल्य चिकित्सा, युद्धकला, ज्योतिष, मुनीमी कृषि, व्यापार, भविष्य कथा, रथ संचालन, इंद्रजाल, नाग-वशीकरण,संगीत, नृत्य, चित्रकला आदि की शिक्षा प्रमुख रूप से दी जाती थी। लगभग 10000 वर्षों यह शिक्षा का केंद्र प्रसिद्ध रहा। 6 वी सदी में हूण आक्रमणकारियों ने तकशिला का विनाश कर दिया।

#5. नालंदा विश्व विद्यालय की स्थापना की थी-

नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना सर्वप्रथम गुप्तकालीन शासक कुमारगुप्त ने की थी। यहीं पर पूर्व में महात्मा बुद्ध के शिष्य सारिपुत्र का जन्म हुआ था। यह विश्वविद्यालय बिहार की राजधानी पटना से 40 मील की दूरी पर स्थित बड़गांव नामक ग्राम के निकट स्थित है। यह एक ऐसा विश्वविद्यालय था जहां हजारों की संख्या में बौद्ध भिक्षु रहते थे और विद्या अध्ययन करते थे। साक्ष्यों से ज्ञात होता है कि यहाँ तत्कालीन भारत में विद्यार्थियों की संख्या लगभग 3,000- 10,000 तक थी। और शिक्षकों की संख्या लगभग 1,500 थीं। यहाँ प्रमुख विद्वानों में नागार्जुन, वसुबन्ध, आर्यदेव, दिंगनाग, धर्मकीर्ति, धर्मपाल, चंद्रपाल, गुणमती, स्थिरमती, प्रभामित्र, जिनमित्र, ज्ञानचन्द्र आदि थे। 5 वी सदी से 12 वी सदी तक नालंदा विश्वविद्यालय शिक्षा का एक महत्वपूर्ण केंद्र रहा।

#6. आधुनिक बिहार के भागलपुर जिले के सुलतानगंज में कौन सा- विश्वविद्यालय स्थित था?

तक्षशिला और नालंदा के बाद विक्रमशिला विश्वविद्यालय का स्थान आता है। आधुनिक बिहार के भागलपुर जिले के सुलतानगंज में यह विश्वविद्यालय स्थित था। इसकी स्थापना पाल वंशी राजा धर्मपाल ने की थी। उसने यहाँ पर अनेक बौद्ध मंदिरों एवं विहारों का निर्माण करवाया था। यहाँ पर धर्म एवं दर्शन के अतिरिक्त व्याकरण, न्याय, तत्वज्ञान, तंत्र और कर्मकांड आदि की शिक्षा दी जाती थी। यह शिक्षा केंद्र लगभग 450 वर्षों तक अस्तित्व में रहा।

#7. किसे वर्तमान में वाराणसी के नाम से जाना जाता है-

उपनिषद काल में काशी को एक प्रतिष्ठित शिक्षा केंद्र के रूप में स्थापित किया गया। जिसे वर्तमान में वाराणसी के नाम से जाना जाता है। काशी का शासक अजातशत्रु अपनी ज्ञान, प्रतिभा, विद्वता व परंपरा के जाना जाता था। सारनाथ से प्राप्त अवशेषों से पता चलता है कि काशी में वेद, पुराण, उपनिषद, व्याकरण, हिन्दू धर्म तथा दर्शन के साथ- साथ बौद्ध दर्शन की भी शिक्षा दी जाती थी।

#8. उपनयन क्या था -

उपनयन एक संस्कार है, यह उस समय होता था जब बालक को वैदिक शिक्षा प्राप्त करने के लिए गुरु के पास ले जाया जाता था। या संस्कार ब्राम्हण, क्षत्रिय एवं वैश्य तीनों वर्णों को दिया जाता था। शूद्र को यह अधिकार नहीं था।

#9. "गुरुकुल" संबंधित है-

प्राचीन भारत में शिक्षा व्यवस्था का एक ही प्रमुख तत्व था गुरुकुल शिक्षा प्रणाली। इस व्यवस्था के अंतर्गत छात्र अपने घर से गुरु के घर पर निवास करके शिक्षा ग्रहण करता था। गुरुकुल में छात्र ब्रम्हचर्य नियमों का पालन करते हुए चरित्र निर्माण पर बल देते हुए विद्या ग्रहण करता था। इस पद्धति में छात्रों को “अंतेवासी” अथवा “आचार कुलवासी” कहा गया है।

#10. प्राचीनकाल में "कालपी " का नाम था-

प्राचीनकाल में “कालपी ” का नाम था- कालत्रिय । जो धीरे-धीरे काल्पी नाम में परिवर्तित हो गया। यह नगर यमुना नदी के किनारे बसा है। कालपी को वेदव्यास का जन्मस्थान माना जाता है। इसके ऐतिहासिक स्थलों में काल्पी का किला, लंका टावर, चौरासी गुंबद विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। हालांकि अन्य विश्वविद्यालयों की भांति यह महत्व नही रखता था तथापि ऐतिहासिक रूप से विद्या का केंद्र बिन्दु था।

#11. दक्षिण भारत में विद्या के केंद्र थे-

दक्षिण भारत में विद्या का प्रमुख केंद्र था -कांची। पल्लव शासकों की राजधानी कांची दक्षिण भारत के तमिलनाडु का आधुनिक काँजीवरम क्षेत्र है, जो इन्ही शासकों के नेतृत्व में विद्या के रूप में विकसित हुआ। यहाँ पर पल्लव शासकों के संरक्षण में संस्कृत व तमिल भाषाओं की अभूतपूर्व विकास हुआ। नालंदा के कुलपति धर्मपाल ने यहाँ रहकर ही विद्या अध्ययन की। 7 वी सदी में चीनी यात्री हवेनसांग ने भी कुछ समय यहाँ निवास किया तथा यहाँ के 100 से अधिक विहारों और निवास करने वाले 10,000 भिक्षुओ का वर्णन किया है।

#12. नालंदा, ओदन्तपुरी व विक्रमशिला जैसे भारत के ख्यातिप्राप्त विश्वविद्यालयों को नष्ट करने का श्रेय जाता है-

12-13 वी सदी में मुस्लिमों ने भारत पर भयंकर आक्रमण किया था, जिसका नेतृत्वकर्ता बख्तियार खिलजी था, जिसमें 1203 ई में बर्बरता पूर्वक प्राचीन भारतीय विद्या के इन केंद्रों को हमेशा के लिए नष्ट कर दिया।

#13. प्राचीन भारतीय शिक्षा प्रणाली में शिक्षा का अधिकार किस वर्ग को नहीं दिया गया था-

प्राचीन भारतीय शिक्षा पद्धति में शूद्रों को शिक्षा का अधिकार नहीं था। यह इस शिक्षा प्रणाली का सबसे बड़ा दोष के रूप में विद्वानों द्वारा स्वीकार किया जाता है। क्योंकि एक राष्ट्र का विकास तभी संभव है जब शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार प्रत्येक वर्ग को दिया जाए, इस प्रणाली में जनसाधारण की शिक्षा की उपेक्षा की गई थी।

#14. वैदिक कालीन प्राचीन भारतीय शिक्षा प्रणाली की शिक्षण विधि थी-

वैदिक कालीन प्राचीन भारतीय शिक्षा प्रणाली की शिक्षण विधि थी- मुख्य रूप से मौखिक थी। इसके अंतर्गत पवित्र मंत्रों को कंठस्थ करने पर बल दिया जाता था। शिक्षा का माध्यम संस्कृत थी। विद्यार्थी पाठ को कंठस्थ करता था उसके बाद उस पर मनन करता था। उच्चारण पर विशेष बल दिया जाता था। गौतम ऋषि के न्याय सूत्र में ध्यान, पुनर्स्मरण, अभिज्ञान, विचार-साहचर्य तथा पुनरावृति के द्वारा सक्षम बनाने पर विशेष बल दिया गया है।

#15. विद्यार्थियों को शिक्षा ग्रहण करने की आयु अवधि थी-

विद्यार्थियों को शिक्षा ग्रहण करने की आयु अवधि थी-24 वर्ष थी परंतु सभी ज्ञान प्राप्त करने की आयु सीमा अलग होती थी। जैसे – वेद का अध्ययन -12 वर्ष तक। प्रत्येक वेद का अध्ययन 12-12 वर्ष का निर्धारित किया गया था। इस तरह – 12, 24, 36 और 48 वर्ष जिसे क्रमश: कहा जाता था – स्नातक, बसु, रुद्ध और आदित्य। इसमें शिक्षा ग्रहण की वास्तविक आयु 24 मानी गई क्योंकि विद्यार्थी 25 वें वर्ष में गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करना होताथा। तत्पश्चात वह अन्य विद्या को ग्रहण कर सकता था।

#16. प्राचीन भारत में योग्यता का मापदंड अंक या प्रमाणपत्र नहीं थे -

सत्य । प्राचीन भारत में योग्यता का मापदंड अंक या प्रमाणपत्र नहीं थे।

#17. समावर्तन संस्कार संबंधित है-

वैदिक शिक्षा पद्धति में शिक्षा ग्रहण की समाप्ति पर यह संस्कार होता था। समावर्तन का अर्थ है- “घर को लौटना” इस अवसर पर गुरु द्वारा छात्र को अपने प्रभावशाली उपदेशों के माध्यम से उसके भावी कर्तव्यों के विषय में अवगत कराया जाता था। इसके बाद छात्र ब्रम्हाचर्य आश्रम का त्याग कर ग्रहस्थ में प्रवेश करता था।

#18. गार्गी का उल्लेख मिलता है-

गार्गी का उल्लेख मिलता है- उपनिषद में। गार्गी आध्यात्मिक वाद-विवादों में भाग लेती थी। उपनिषदों में यह भी उल्लेख मिलता है कि बहुत सी महिलाएं शृंगार संबंधी विद्या में पारंगत थीं। जिसके लिए पुरुष अयोग्य समझे जाते थे।

#19. घोषा, अपाला, विश्वपारा, लोपामुद्रा आदि महिलाएं थीं -

घोषा, अपाला, विश्वपारा,लोपामुद्रा आदि वैदिक कालीन विदुषी महिलाएं थीं । जो वैदिक ज्ञान में निपुण थीं,इन्होंने वैदिक ऋचाओ का निर्माण भी किया। और ये शास्त्रार्थ करती थी। इनका उल्लेख ऋग्वेद में है।

#20. तक्षशिला विश्वविद्यालय का विनाश किया था-

6 वी सदी में हूण आक्रमणकारियों ने इस शिक्षा केंद्र को सम्पूर्ण नष्ट कर दिया गया।

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