आयडिया आफ भारत/भारतीय कला एवं संस्कृति / इतिहास महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर सीरीज -भाग 5

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#1. "पंचतंत्र" के रचियता हैं-

प्राचीन कथाओं में विष्णु शर्मा की “पंचतंत्र ” का भी अपना महत्त्व है. पंचतंत्र सिद्धांत रूप से नीति के उपदेश का एक ग्रंथ है जो राजाओं और रानीति में निपुण व्यक्ति के लिए विशेष रोप से रचित है. इसके अंतर्गत दी गयी छोटी- छोटी कहानियों में अनेक अंतर्कथाएं निहित हैं जिनमें जानकारी मिलती है कि एक राजा ने अपनी पुत्रों की मुर्खता एवं दुर्गुणों से दुखी होकर एक साधू को सौंफ दिया. जिसने अपनी कहानियाँ सुनाकर उन्हें सुधार दिया.

#2. भारतीय संस्कृति में व्यक्ति द्वारा कितने यज्ञों को पूरा किया जाना आवश्यक बताया गया है?

भारतीय संस्कृति एक धर्म प्रधान संस्कृति है. धर्म के महत्त्व को स्पष्ट करने के लिए व्यक्ति द्वारा पांच यज्ञों को पूरा किया जाना आवश्यक बताया गया है. ये यज्ञ हैं-
1. देव यज्ञ
2. ऋषि यज्ञ
3. पितृ यज्ञ
4. अतिथि यज्ञ
5. जीव यज्ञ .

#3. पुरुषार्थ के अंतर्गत व्यक्ति के कर्तव्यों को कितने भागों में बांटा गया है -

शाब्दिक अर्थों में पुरुषार्थ का अर्थ है – उद्योग करना अथवा परिश्रम करना. लेकिन भारतीय संस्कृति में पुरुषार्थ को ऐसी व्यवस्था के रूप में स्पष्ट किया गया है जो प्रत्येक व्यक्ति को उसके प्रमुख कर्तव्यों का बोध करा सकें . इसे चार भागों में बांटा गया है-

  1. धर्म
  2. अर्थ
  3. काम
  4. मोक्ष . इन सभी पुरुषार्थो में मोक्ष को सबसे ऊपर माना गया है. जबकि धर्म, अर्थ और काम साधन के रूप में धर्म ग्रंथो में उल्लेखित किया गया.

#4. किसमें नगर योजना के सिध्दांत दिए गए हैं-

स्कन्दपुराण में नगर योजना के सिध्दांत दिए गए हैं. जबकिभारतीय वास्तुकार आचार्य विश्वकर्मा को माना जाता है. उन्हें देवताओं का भी वास्त्तुकार माना गया है.

#5. "मत्स्य पुराण " में कितने वास्तुविदों की गणना की गई है.

मत्स्य पुराणमें 18 वास्तुविदों की गणना की गई है. भृगु, अत्री, वसिष्ठ, विश्वकर्मा, मय, नारद, नग्नजित, विशालाक्ष, पुरंदर, ब्रम्हा, कुमार, नन्दीश, शौनक, गर्ग, वासुदेव, अनिरुध्द, शुक्र, बृहस्पति. वास्तुविद्या के सर्वाधिक प्रसिद्ध आचार्य विश्वकर्मा ने देवपुर बनाए तथा इन्होने द्वारका का भी निर्माण किया.

#6. इस्लाम धर्म के प्रतिपादक थे-

भारतीय समाज की धार्मिक रचना में दूसरा स्थान इस्लाम धर्म को मानने वालों का है. इस धर्म के प्रतिपादक हजरत मुहम्मद साहब हैं(इनका कार्यकाल ५७०-६३२ ई तक) थे. यह धर्म पांच आधारभूत मान्यताओं पर बल देता है. जिसमें मुसलमान उसी को समझा जाता है जो निम्न मान्यताओं को मानता हो –
1. अल्लाह एक है, उसका न तो कोई रूप है और न ही किसी इंसान की शक्ल में वह धरती पर उतरता है.
2. ईमान क़ुरान शरीफ में विश्वास रखना और उसके निर्देशों का पालन करना है.

3. यह विश्वास करना है कि फ़रिश्ते ही अल्लाह का संदेश लाते हैं, व्यक्ति के कर्मों क् देखते रहते हैं। और उसे गुनाहों से अलग रखते हैं।

4. प्रत्येक मुसलमान के लिए कलमा पढ़ना आवश्यक है।

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5. इस विश्वास पर ईमान लाना आवश्यक कि आखिरात (प्रलय) के दिन हर मुसलमान के साथ उसके कार्यों को ध्यान में रखते हुए न्याय किया जाएगा।

 

#7. सिक्ख धर्म की स्थापना किसने की-

सिक्ख धर्म विशुद्ध रूप से एक भारतीय धर्म है, जिसकी स्थापना गुरु नानक देव ने की। इनका कार्यकाल (1469- 1538 ई ) है। आपने जिस उदारतावादी दृष्टिकोण देकर समाज को मार्गदर्शन दिया इसे ही सिक्ख धर्म कहते हैं। इसका शाब्दिक अर्थ होता है- चेला अथवा शिष्य। सिक्ख धर्म एकेश्वरवाद पर जोर देता है। इनका मानना था ईश्वर प्रत्येक स्थान पर व्याप्त है अर्थात अद्वैतवाद । इस धर्म के अनुयायी हिन्दू धर्म में व्याप्त मूर्ति पूजा एवं पाखंड एवं उंच-नीच के भेदभाव का विरोध करते हुए समानता, भाईचारा, सबसे प्रेम करना, सत्य, प्रेम, करुणा जैसी मानवीय मूल्यों का संदेश दिया।

#8. पारसी धर्म में ईश्वर को कहा जाता है-

पारसी धर्म में ईश्वर को कहा जाता है- होरमज्द ।
भारत में पारसी धर्म का आरंभ 8 वीं शताब्दी से हुआ। पारसी धर्म के संस्थापक “प्रभु जरथुस्त्र” हैं। इस धर्म का सबसे प्रतिष्ठित ग्रंथ है – अवेस्ता , जिसकी मान्यता हिन्दू धर्म के वेदों के समान है। परंतु पारसी धर्म एकेश्वरवादी हैं।

#9. किसके अनुसार - "धर्म विरुद्ध अर्थ तथा काम का त्याग कर देना चाहिए।"

मनु स्मृति में उल्लेखित है कि – उचित साधनों से प्राप्त धन को ही धर्म में स्थान प्राप्त है। और अनुचित साधनों से प्राप्त धन की निंदा की गई है। उसी तरह विवाह संस्कार हमारे धर्म का ही रूप है। जिसके द्वारा गृहस्थ आश्रम में प्रवेश कर काम को सामाजिक मान्यता प्रदान की गई है। इसलिए धर्मसंगत आचरण ही व्यक्ति एवं समाज की उन्नति कर सकता है। इसके विपरीत काम की कामना होने पर मनुष्य का पतन होता है।

#10. कैथोलिक और प्रोटेस्टैंट शाखा किस धर्म से संबंधित हैं -

कैथोलिक शाखा अधिक परंपरावादी तथा प्रोटेस्टैंट शाखासुधारवादी एवं आधुनिक। ईसाई धर्म यह विश्वास दिलाता है कि संसार में एक ही अलौकिक शक्ति है, जो मनुष्य के हृदय को शुद्ध करती है। यही शक्ति व्यक्ति में प्रेम, आनंद, भक्ति और सुधार को प्रोत्साहन देती है। यह धर्म भ्रातृत्व तथा मेहनत को सबसे अधिक महत्व देती है। ईसाई धर्म अंधविश्वासों और कर्मकांडों का विरोध करके जीवन को आंतरिक रूप से पवित्र बनाने में विश्वास करता है।

#11. "मानवता" को धर्म का सर्वोच्च लक्ष्य घोषित किसने किया था-

बौद्ध धर्म केसंस्थापक  गौतम बुद्ध थे। उन्होंने चार आर्य सत्य का संदेश दिया ।

-मनुष्य की इच्छा ही दुख पैदा करता है।

-दुखों का समुदाय है।

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-प्रत्येक दुखों का कारण है ।

-दुखों का अंत करने के लिए दुख निरोध गामिनी प्रतिपदा हैं।

और प्रत्येक दुख से मुक्ति के लिए अष्टांगिक मार्ग बताए गए हैं-

1. सम्यक दृष्टि 2. सम्यक संकल्प, 3. सम्यक वाणी 4. सम्यक कर्मांत 5. सम्यक आजीव 6. सम्यक व्यायाम 7. सम्यक स्मृति 8. सम्यक समाधि। इस प्रकार बौद्ध धर्म का परम लक्ष्य है निर्वाण, जिसका अर्थ है- “दीपक का बुझ जाना ” अर्थात जीवन-मरण चक्र से मुक्त हो जाना ।

#12. "अशोक चक्र " कहाँ से लिया गया है -

मौर्य सम्राट अशोक महान सम्राट था। अशोक ने अपने महान निर्माण कार्यों द्वारा भारतीय समाज को नैतिकता एवं मानवता का संदेश दिया। अशोक बौद्ध धर्म का अनुयायी था। उन्होंने बौद्ध धर्म के प्रति विश्वास को स्थायित्व प्रदान करने के लिए साम्राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में पत्थरों के अभिलेख युक्त स्तम्भ प्रतिस्थापित किए। उसने स्तंभों, गुहाओं, शिलाओं द्वारा जनता को नैतिकता का पाठ पढ़ाया।
“अशोक चक्र” भारतीय संविधान का महत्वपूर्ण अंग है। यह सारनाथ स्तम्भ लेख से लिया गया है। इसके स्तम्भ लेख के फलक पर चार सिंह पीठ से पीठ सटाये, चारों दिशाओं में मुंह किए दृढ़तापूर्वक बैठे हुए हैं। नैतिक रूप से ये राज्य के चारों ओर धर्म प्रचार की सूचना देते हैं।

#13. सूर्यमंदिर कहाँ अवस्थित है-

विश्व प्रसिद्ध सूर्यमंदिर अवस्थित है- कोणार्क में। यह कलिंग वास्तुकला का सबसे उत्कृष्ट कोटि का नमूना है। इसे 13 वी सदी में गंग वंश के राजा नरसिंहदेव प्रथम ने बनवाया था। सूर्य मंदिर की सबसे खास बात यह है कि यहाँ सूरज की पहली किरण सीधे स्थल पर पड़ती है जहां भगवान की मूर्ति स्थापित की गई है। यह मंदिर 24 पहियों पर टिकी हुई है। इनके दोनों ओर 12-12 पहिये हैं। इनमें से चार पहियों को समय बताने के लिए धूप घड़ी की तरह उपयोग में लाए जाते हैं। इस मंदिर का निर्माण लाल रंग के बलुआ पत्थर एवं काले ग्रेनाईट से बनाया गया है।

#14. इनमें से भारतीय संस्कृति की विशेषता नहीं है -

भारतीय संस्कृति कर्म पर विश्वास करती है। इसकी अन्य विशेषताएं हैं-

मानवीय गुणों पर बल

अनुशासन

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लोक-कल्याण की भावना

समन्वय

आत्मा तथा पुनर्जन्म पर बल

सामूहिकता

धर्म की प्रधानता

प्रतीकवाद पर बल आदि।

 

#15. "जिन " का संबंध है-

जैन धर्म के अनुयायी “जिन ” भगवान की उपासना करते हैं। जिन शब्द “जि” धातु से बना है जिसका शाब्दिक अर्थ है “जीतने वाला” अर्थात जिन्होंने अपने मन, वाणी और शरीर के इंद्रियों को जीत लिया हो जिनेन्द्र या जिन कहलाते हैं।

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