भारत के प्रमुख त्यौहार

 

परिचय:

भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है और यह प्रत्येक व्यक्ति को अपनी पसंद के किसी भी धर्म का पालन करने और मनाने का समान अधिकार देता है। इसलिए, भारत में विभिन्न धार्मिक समूह अपने धर्म की समृद्ध विरासत को दर्शाने के लिए विभिन्न त्यौहार मनाते हैं। इन त्यौहारों को धार्मिक त्यौहारों के रूप में जाना जाता है। ये उन व्यक्तियों द्वारा मनाए जाते हैं जो धर्म की एक विशिष्ट प्रणाली का पालन करते हैं। प्रत्येक व्यक्ति किसी धर्म विशेष का पालन करता है।

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भारत की आबादी का लगभग 80% या दुनिया की आबादी का लगभग 15-16% के साथ, हिंदू धर्म दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा धर्म है और भारत में बहुसंख्यक धर्म है (97 करोड़ हिन्दू)। हिंदू धर्म से जुड़े बहुत सारे देवी-देवता हैं जो हमे साल भर किसी न किसी देवी-देवता के नाम पर शुभ त्यौहारों को मनाने का अवसर देता हैं। कहा जाता है कि हर दो मील के बाद भारत में एक अलग संस्कृति और भाषा से सामना होता है। भारतीय त्यौहारों के बारे में भी यही सच है।

त्यौहार का शाब्दिक अर्थ –   ‘त्योहार’ (festival) शब्द लैटिन शब्द ‘फेस्टिवस’ कसे उत्पन्न हुआ है, जिसका अर्थ है ‘समुदाय की सामाजिक सभा या मिलन’। त्यौहार का शाब्दिक अर्थ है प्रति वर्ष किसी निश्चित स्वतंत्रता तिथि को मनाया जाने वाला कोई धार्मिक या सांस्कृतिक उत्सव भारत मेलों और त्यौहारों की भूमि के रूप में जाना जाता है, जहाँ हर महीना अनगिनत त्यौहारों से भरा होता है। त्यौहार भारतीय संस्कृति और समाज की आत्मा हैं। ये केवल छुट्टियाँ नहीं हैं, बल्कि भारत की समृद्ध विरासत, संस्कृति और विविधता का उत्सव मनाने के अवसर हैं।

हमारे यहाँ विभिन्न प्रकार के राष्ट्रीय, धार्मिक, धर्मनिरपेक्ष, लोक एवं आदिवासी त्यौहार मनाए जाते हैं। लेकिन ये किसी विशेष समुदाय, धर्म या समाज के वर्ग तक सीमित न होकरपूरे देश में अत्यंत प्रसन्नता और उत्साह के साथ मनाए जाते हैं। इन्हें मोटे तौर पर निम्नलिखित समूहों में विभाजित किया गया है-

  1. राष्ट्रीय त्यौहार
  2. धार्मिक त्यौहार

 

राष्ट्रीय त्यौहार –

परिचय – भारत में, राष्ट्रीय महत्व की कुछ ऐतिहासिक घटनाओं को मनाने के लिए राष्ट्रीय त्यौहार मनाए जाते हैं। ये त्यौहार भारत केनागरिकों के लिए बहुत महत्व रखते हैं। यह त्यौहार हमें कड़ी गाँधी की ज मेहनत से अर्जित स्वतंत्रता, लोकतंत्र और शांति के महत्व की याद दिलाते हैं। ये देशभक्ति के उत्साह के साथ हर समुदाय द्वारा राष्ट्रव्यापी स्तर पर मनाए जाते हैं। भारत में 3 राष्ट्रीय त्यौहार हैं: गणतंत्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस और गाँधी जयंती। इन तीन राष्ट्रीय त्यौहारों को देश में तीन राष्ट्रीय अवकाशों के रूप में गिना जाता है।

गणतंत्र दिवस – भारतीय संविधान के पूर्णरूपेण प्रभाव मे आने के दिन को मनाने के लिए हर साल 26 जनवरी के दिन गणतंत्र दिवस मनाया जाता है। 26 जनवरी 1950 में भारत को एक स्वतंत्र गणराज्य घोषित किया गया था। 26 जनवरी के दिन को इसलिए चुना गया था क्योंकि 1930 में इसी दिन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज की घोषणा की थी, जो ब्रिटिश शासन से भारत की पूर्ण स्वतंत्रता की घोषणा थी।

स्वतंत्रता दिवस –

यह प्रत्येक वर्ष 15 अगस्त को सदियों पुराने औपनिवेशिक ब्रिटिश शासन से हमारे राष्ट्र की स्वतंत्रता का उत्सव मनाने के लिए मनाया जाता है। इस दिन, भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम लागू हुआ, और ब्रिटिश भारत को दो स्वतंत्र स्वायत्त राज्यों-भारत और पाकिस्तान में विभाजित किया गया था।

गांधी जयंती –

भारत सरकार ने स्वतंत्र भारत के 75 गौरवशाली वर्षों को मनाने के लिए आजादी का अमृत महोत्सव की घोषणा की। भारतीय प्रधान मंत्री ने 12 मार्च 2021 को अहमदाबाद में साबरमती आश्रम से दांडी मार्च को हरी झंडी दिखाकर इसकी शुरुआत की। यह हर साल 2 अक्टूबर को मनाया जाता है। यह दिन महात्मा गाँधी की जयंती का प्रतीक है जिन्हें हमारे राष्ट्रपिता के रूप में भी जाना जाता है। भारत और दुनिया भर में अहिंसा की रणनीति और दर्शन का प्रचार करने में महात्मा गाँधी के योगदान को मनाने के लिए, इस दिन को अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में भी मनाया जाता है।

धार्मिक त्यौहार

भारत विभिन्न संस्कृतियों, जातियों, भाषाओं, नस्लों और धर्मों की भूमि है। भारत की आबादी लगभग 1.45 बिलियन है, और

दिवाली या दीपावलीः

इसे रोशनी के त्यौहार के रूप में भी जाना जाता है। यह कार्तिक महीने की अमावस्या के शुभ दिन पर मनाया जाता है, आमतौर पर अक्टूबर या नवंबर में। यह भगवान राम के चौदह साल के वनवास के बाद अयोध्या लौटने की याद में मनाया जाता है और अंधेरे पर प्रकाश की जीत (बुराई पर अच्छाई की जीत) का प्रतिनिधित्व करता है। इस दिन शाम को धन और समृद्धि की देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है जो ‘समुद्र मंथन’ के दौरान समुद्र से निकलने वाली लक्ष्मी के प्रति आदर व्यक्त करता है। इसे “प्रकाश के उत्सव” के रूप में भी जाना जाता है। यह कार्तिक मास में ‘नव चन्द्र’ या (अमावस्या) के शुभ दिन मनाया जाता है, जो प्रायः अक्टूबर या नवम्बर के महीने में आता है। त्यौहार से एक दिन पहले का दिन नरक चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है।

होली-

प्रमुख विशेषताएं

  • इस त्यौहार को ‘रंगों का त्यौहार’ कहा जाता है और सभी धर्म और समुदाय के लोगों द्वारा मनाया जाता है। इसे फाल्गुन मास (फरवरी-मार्च) में मनाया जाता है।
  • यह बुराई के ऊपर अच्छाई की विजय का प्रतीक है और होलिका के जलने और भक्त प्रह्लाद के सुरक्षित निकलने का प्रतीक है।
  • पश्चिम बंगाल और असम के कुछ भागों में इसे दोल जात्रा भी कहा जाता है। यह फसलों का त्यौहार है- फसलों की कटाई पूरी होने के बाद- जिसे रंगों के त्यौहार के रूप में भी जाना जाता है।
  • यह त्यौहार हर साल फागुन माह में (सामान्यता मार्च में) आता है। यह दो दिवसीय उत्सव है जो होलिका दहन के साथ प्रारंभ होता है।
  • होली जलाना बुराई पर अच्छाई की जीत, होलिका के जलने और भक्त प्रह्लाद के बचाव का प्रतीक है।
  • लोग इस त्यौहार को रंग, फूल और अबीर के साथ मनाते हैं और अपने प्रियजनों से अपने प्रेम का इजहार करते हैं।

जन्माष्टमी-

  • यह त्यौहार भगवान कृष्ण के जन्म की वर्षगाँठ है और इसे अगस्त श्रावण – भाद्र माह की अष्टमी के दिन भगवान कृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनायी जाता है।
  • इस दिन कृष्ण की लीलाओं और झांकियों का आयोजन किया जाता हैं, जो भगवान कृष्ण के बचपन और किशोरावस्था के लीलाओं/ कार्यों को दर्शाती हैं।

संक्राति

  • यह त्यौहार सूर्य भगवान को समर्पित है, यह त्यौहार सूर्य के उत्तरी गोलार्द्ध की ओर प्रस्थान करने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।
  • यह त्यौहार 14 जनवरी को मनाया जाता है। लाखों भक्त इस अवसर पर पवित्र स्नान के लिए गंगा सागर (पश्चिम बंगाल में) या प्रयाग की यात्रा भी करते हैं।
  • भारत के कुछ भागों में इसे पतंग उड़ाने के उत्सव के रूप में भी मनाया जाता है।

दशहरा-

  • दशहरा को ‘विजयदशमी’ के रूप में भी जाना जाता है और यह सम्पूर्ण भारत में रावण पर भगवान राम की विजय के उत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस दिन विशेष रूप से उत्तर भारत में रावण दहन आमतौर पर देखा जा सकता है।

दुर्गा पूजा

  • यह भारत के पूर्वी भाग (विशेषकर पश्चिम बंगाल) में प्रमुखता से मनाया जाता है। यह दानव महिषासुर पर देवी दुर्गा की विजय का जश्न मनाने के लिए है।

गणेश चतुर्थी

  • यह त्यौहार भगवान गणेश के जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में पूरे भारत में मनाया जाता है, लेकिन महाराष्ट्र में इसे बड़े धूमधाम के साथ मनाया जाता है, क्योंकि यह वहाँ का प्रमुख त्यौहार है।

रथ यात्रा –

  • यह ओडिशा का सबसे बड़ा त्यौहार है और तीन देवताओं को समर्पित है- भगवान जगन्नाथ, बलभद्र (उनके भाई) और सुभद्रा (उनकी बहन)।
  • पुरी का रथ उत्सव या रथ यात्रा इससंबंध में सबसे बड़ा एवं प्रसिद्ध है।

छठ पूजा

  • यह बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश का मुख्य त्यौहार है और यह सूर्य देव और उनकी बहन छठी मइया (सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृति का छठा अंश षष्ठी देवी) को समर्पित है।
  • इसे कुछ दिनों के कठोर उपवास के बाद मनाया जाता है और इसके बाद पवित्र स्नान किया जाता है और अस्त एवं उदय होते सूर्य देवता को दोनों बार अर्घ्य अर्पित किया जाता है।
  • छठी मइया देवी के प्रसाद में ठेकुआ (एक मीठा व्यंजन) विशेष आकर्षण है।

नबकलेवार

  • हिंदू कैलेंडर के अनुसार, जयकलेबर हार श्री गजामावर पूरी (ओडिशा) में पूर्व-निर्धारित समय (हर 8 से 19 साल बाए) पर मनाया जाता है।
  • नवकलेवर का अर्थ है नया शरीर, अर्थात भगवान जगन्नाथ, बलभद्र तुझ्या और सुवर्शन की मूर्तियों को नयी मूर्तियों से बदल दिया जाता है।
  • नयी मूर्तियाँ 04 अलग-अलग भीम के पेड़ों के ल्हों (रारु बहत्य) से बनी होती हैं जो निर्धारित मानदंडों के अनुसार और कठिन खोज के बाद चुने जाते हैं।
  • चयनित नीम को पेड़ों के हाथ से मूर्तियों को उकेरा जाता है और उन्हें अधिक मास (मध्यांतर महीना) के दौरान बदल दिया जाता है।
  • लाखों तीर्थयात्री चयनित नीम के पेड़ की पूजा और मूर्तियों के प्रतिस्थापन के समारोह में सम्मिलित होते हैं।

 

  • मार्च 2018 में, भारत के राष्ट्रपति में नवकलेबर त्यौहार के उपलक्ष में 1000 रुपये और 10 रुपये के स्मारक सिक्के जारी किये थे।

मकरविलक्कु महोत्सव-

  • यह केरल में सबरीमाला के मंदिर में मकर संक्रांति पर आयोजित होने वाला एक वार्षिक उत्सव है।
  • सबरीमाला मंदिर पेरिबार टाइगर रिजर्व के भीतर स्थित है।
  • मंदिर हिंदू ब्रह्मचारी देवता अय्यप्पन को समर्पित है, जिन्हें धर्म सस्था के रूप में भी जाना जाता है, जिन्हें शिव और विष्णु के स्त्री अवतार मोहिनी का पुत्र माना जाता हैं।
  • इस त्यौहार के दौरान, दिव्य मकर ज्योति की एक झलक पाने के लिए भक्त सबरीमालासन्निधानम में इकट्ठा होते हैं।
  • सबरीमाला की परंपराएँ शैववाद, शक्तिवाद, वैष्णववाद और अन्य अमण परंपराओं के संगम को दर्शाती हैं।
  • हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने प्रतिबंधों को असंवैधानिक ठहराते हुए सबरीमाला मंदिर प्रशासन को सभी उम्र की महिलाओं के लिए मंदिर खोलने का आदेश दिया।

अटुकल पोंगल-

  • तिरुवनंथपुरम (केरल) के अ‌टुकल भगवती मंदिर में वार्षिक 10-दिवसीय अटुकल पोंगल उत्सव आयोजित किया जाता है।
  • इसे लोकप्रिय रूप से महिलाओं के सबरीमाला के रूप में जाना जाता है- जहाँ केवल महिलाओं को ही अनुष्ठानों में भाग लेने की अनुमति है।
  • यह विश्व में किसी त्यौहार के लिए महिलाओं का सबसे बड़ा धार्मिक एकत्रीकरण है।
  • पोंगल, जिसका अर्थ है ‘उबालना’, वह अनुष्ठान है, जिसमें महिलाएँ मीठा पायसम तैयार करती हैं और इसे देवी या ‘भगवती’ को अर्पित करती हैं

बथुकम्मा महोत्सव-

  • बधुकम्मा का अर्थ है ‘माँ देवी जीवित हैं’। यह तेलंगाना और आंध्र प्रवेश के कुछ हिस्सों का एक रंगबिरंगा पुष्प उत्सव है।
  • यह 9 दिनों का महोत्सव होता है और आमतौर पर सितंबर-अक्टूबर में मनाया जाता है।
  • बथु कम्मा, मंदिर के गोपुरम के आकार में सात संकेंद्रित परतों में व्यवस्थित अलग-अलग अद्वितीय मौसमी फूलों (उनमें से अधिकांश औषधीय मूल्य वाले होते हैं) का एक सुंदर क्रमबद्ध संरचना है।

नव वर्ष – देश के विभिन्न भागों में इसे विभिन्न नामों से मनाया जाता है, जैसे:

उगादी आंध्रप्रदेश और कर्नाटक
गुड़ी पड़वो महाराष्ट्र
संवत्सर पाड़वो गोवा
पहला बैशाख पश्चिम बंगाल
पुथांडु तमिलनाडु
विशु केरल
नवरेह कश्मीर
पना संक्रांति ओडिशा

 

सैर-ए-गुल्फरोशन-

  • इस त्यौहार को “फूल वालों की सैर” भी कहा जाता है और यह फूलों का तीन दिन का वार्षिक त्यौहार है, जिसे विल्ली में मनाया जाता है।
  • यह सांप्रदायिक सद्भाव का प्रतीक है, जिसमें खजूर के पत्तों से बने पंखों को जुलूस के रूप में महरौली में ख़्वाजा बख्तियार काकी की मज़ार से योगमाया माता के मंदिर में ले जाया जाता है। इस त्यौहार को शुरू करने का श्रेय मुगल बादशाह (19वीं शताब्दी) अकबर को जाता है।
  • इसे ब्रिटिश सरकार ने बंद करवा दिया था, लेकिन वर्ष 1962 में इसे जवाहर लाल नेहरू द्वारा पुनः आरम्भ किया गया।

त्यागराज आराधना-

  • यह विख्यात तमिल संत और संगीतकार त्यागराज के ‘समाधि दिवस’ को मनाने के लिए आयोजित किया जाता है।
  • यह मुख्य रूप से आंध्र प्रदेश में एवं तमिलनाडु के थिरूवय्यारू (जहाँ उन्होंने समाधि प्राप्त की) में आयोजित किया जाता है।
  • इस उत्सव में लोग कर्नाटक संगीत के प्रमुख प्रतिपादक संत को अपने श्रद्धा सुमन अर्पण करने के लिए आते हैं।
  • मुथुस्वामी दीक्षितर और श्यामा शास्त्री सहित संत त्यागराज कर्नाटक संगीत के तीन प्रमुख संगीतज्ञ थे।

ओणम

  • ओणम, केरल का राजकीय उत्सव है। यह मलयालम कैलेंडर के पहले महीने चिगम में मनाया जाता है।
  • यह मुख्यतः एक फसल उत्सव है, परन्तु इसे शक्तिशाली असुर राजा महाबली के पाताल (भूमिगत) से घर वापिसी के रूप में भी मनाया जाता है।
  • व्यापक सामूहिक भोज, नृत्य, फूल, नावें, हाथी ओणम के रंगारंग और जीवंत उत्सव का भाग हैं।
  • ओणम की एक प्रमुख विशेषता वल्लमकाली (सर्प-नौका दौड़) है।
  • सबसे अधिक लोकप्रिय वल्लमकाली पुन्नमडा झील में आयोजित होती है और विजेताओं को नेहरु नौका दौड़ प्रतियोगिता ट्रॉफ़ी दी जाती है।
  • परम्परागत खेल जैसे ओणकलिकल भी ओणम उत्सव का भाग है।

पोंगल –

  • विश्व भर में तमिलों द्वारा मनाया जाने वाला यह एक चार दिन का फसल उत्सव है।
  • इसे जनवरी में मनाया जाता है और यह उत्तरायण के प्रारम्भ का संकेत है, जिसका अर्थ है सूर्य का उत्तर की ओर छह महीने की यात्रा।
  • तमिल में पोंगल शब्द का अर्थ है ‘उबालना’ और इस उत्सव में फसल के पहले चावल को उबालना एक महत्त्वपूर्ण अनुष्ठान है।
  • यह ‘थाई’ के महीने में आता है, जब धान, ईख, हल्दी आदि की फसलें काटी जाती हैं।
  • यह सूर्य देवता को धन्यवाद करने और फसलों के जीवन चक्रों को मनाने का अवसर है, जिनसे हमें अनाज प्राप्त होता है।

सरहुल

  • झारखंड, ओडिशा और पश्चिम बंगाल की जनजातियों के लिए सरहुल नव वर्ष के प्रारम्भ का प्रतीक है।
  • इसे मुख्यता मुंडा, उराँव और हो जनजातियों द्वारा मनाया जाता है। सरहुल का शब्दिक अर्थ है ‘साल की पूजा’।
  • इसे वसंत ऋतु अर्थात् हिन्दू कैलेंडर के फाल्गुन महीने में मनाया जाता है। जनजातीय लोग प्रकृति का सम्मान और धरती माता की पूजा करते हैं।
  • सरहुल कई दिनों तक मनाया जाता है, जिसमें प्रमुख पारम्परिक नृत्य सरहुल की प्रस्तुति की जाती है। यह “सरना” नामक धर्म से संबंधित है।

विश्व शांति अहिंसा सम्मेलन-2018

  • विश्व शांति अहिंसा सम्मेलन (VSAS) का आयोजन महाराष्ट्र में मांगी-तुंगी की पहाड़ियों पर किया गया था। पहाड़ियों में लगभग 10 जैन गुफा मंदिर हैं।

मुस्लिम त्यौहार- मुसलमान 14% है। पूरे भारत में मनाए जाने वाले कुछ महत्वपूर्ण मुस्लिम त्यौहार रमजान, ईद-उल-फितर. -मिलाद-उन-नबी, और मुहर्रम हैं।

रमजान-

  • इसे इस्लामिक कैलंडर (हिजरी) के नवें माह ‘रमजान’ में मनाया जाता है। रमजान इस्लाम के पाँच स्तंभों में से एक है।
  • ऐसा माना जाता है कि इस्लामी पवित्र पुस्तक ‘कुरान’ इसी महीने में लिखी गयी थी।
  • निष्ठावान मुसलमान महीने भर-सूर्योदय से सूर्यास्त सक उपवास रखते हैं और पूरे महीने प्रार्थना और दान करते हैं।

ईद-उल-फितर-

  • रमजान का महीना खत्म होने के बाद मुसलमान अपने उपवास सदा इस त्यौहार को मनाते हैं। है।
  • ईद-उल-फितर हिजरी माध कैलंडर के “शव्वाल” माह के के पहले दिन पड़ता ईद या सिर्फ ईद के नाम से भी जाना जाता ।
  • यह विश्व भर के मुस्लिम समुदाय द्वारा मनाये जाने वाले त्यौहारों में से एक है।
  • इस्लामी कैलेंडर का नयाँ महीना रमज़ान का पवित्र महीना माना जाता है और इस महीने के अंत में इस त्यौहार को मनाया जाता है। रमजान के महीने में लोग सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक पूरा दिन रोजा (उपवास व्रत) व्रत रखते हैं।
  • इस व्रत की प्रक्रिया को मुस्लिम कानून या शरीयत में निर्धारित किया गया है। ईद-उल-फित्र की तिथि की गणना एक जटिल प्रक्रिया द्वारा की जाती है।
  • इसका निर्धारण शब्वाल महीने के पहले विन और रमज़ान महीने की समाप्ति पर नया चाँद दिखाई देने पर ही किया जाता है।
  • यह ईद रोजे पूरे होने की खुशी में मनायी जाती है और इसमें सिवैयाँ पकती हैं

मिलाद-उन-नबी-

  • इसे बारह-वफात के नाम से भी जाना जाता है, जो पैगंबर वैस मुहम्मद की जयंती के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।
  • इसे हिजरी कैलेंडर के तीसरे महीने रबी-अल-अव्वल के 11 वें और 12वें दिन मनाया जाता है। यह दिन मोहम्मद साहब के जीवन और उनकी शिक्षाओं की याद दिलाता है।
  • मिलाद-उन-नबी यह पैगंबर मुहम्मद की जयंती और पुण्यतिथि का प्रतीक है। ग्रंथों के अनुसार, पैगंबर का जन्म रबी-उल-अव्वल के महीने में हुआ था, जो हिज़री कैलेंडर का तीसरा महीना है।
  • इस दिन को मिलाद-उन-नबी या मौलिद-उन-नबी कहा जाता है। यह दिन वह दिन भी माना जाता है, जब पैगंबर पृथ्वी से विदा हुए थे।
  • इस त्यौहार को बारह-वफ़ात के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन पैगंबर मुहम्मद के जन्मोत्सव की वर्षगाँठ भी होती है।
  • पैगंबर का जन्म हिजरी कैलेंडर के तीसरे महीने रबी-उल-अव्वल में हुआ था।
  • इस दिन को मिलाद-उन-नबी या मक्लिद-उन-नबी भी कहा जाता है। यह भी माना जाता है कि इसी दिन पैगंबर ने इस पृथ्वी से प्रस्थान किया था, इसलिए इस दिन के सभी त्यौहारों को बहुत ही सादगी से मनाया जाता है।

यह दिन राष्ट्रीय अवकाशों में सम्मिलित है।

  • इसे बहुत श्रद्धा और सादगी से मनाया जाता है। लोग मस्जिदों में एकत्र होते हैं और वहाँ पवित्र कुरान पढ़ी जाती है। कुछ स्थानों पर विशेष समारोहों में धार्मिक विद्वान क़सीवा अल-बुर्दा का पाठ करते हैं, जो कि एक अति पवित्र कविता है एवं जिसे 13वीं शताब्दी के अरबी सूफी संत बुसिरी ने लिखा था।
  • लोग नात का गायन भी करते हैं, जो पैगंबर के सम्मान में और उनके द्वारा किये गए अच्छे कार्यों की मिसाल देने हेतु लिखी गयी परम्परागत कविताएँ हैं।

मुहर्रम-

  • मुहर्रम हिजरी कैलंडर का प्रथम माह है। यह वर्ष के चार पवित्र महीनों अर्थात रमजान के बाद दूसरा सबसे पवित्र माह में एक है जिनमे युद्ध निषिद्ध है।
  • शिया और सुन्नी समुदाय द्वारा यह त्यौहार शोक पूर्ण अवसर के तौर पर याद किया जाता है क्योंकि यह अली के बेटे हसन की शहादत को याद में मनाया जाता है। इस दिन का जुलूस भी निकाला जाता है।

हंद-उल-जुहा या इंव-उल-अज़्हा –

  • इस त्यौहार को, बकरीद या वह ईद, जिसमें बकरे या दुम्बे की कुर्बानी / बलि दी जाती है, के रूप में जाना जाता है।
  • इसे हिजरी कैलेंडर के बारहवें महीने के दसवें दिन मनाया जार्ता है। इस त्यौहार को पैगम्बर इब्राहिम की अल्लाह के प्रति निष्ठा के सम्मान में मनाया जाता है, जिसकी परीक्षा तब हुई थी, जब ख़ुदा ने उन्हें अपने पुत्र की बलि देने के लिए कहा।
  • ऐसा कहा जाता है कि इब्राहिम खुशी से इसके लिए अपने पुत्र का सर काटने के लिए तैयार हो गये, परन्तु ख़ुदा ने उस पर दया कर एक बकरे के सर की बलि स्वीकार कर ली थी।
  • इसलिए ईद-उल-अज़्हा के दिन बकरे की बलि दी जाती है और उसके शरीर के मांस का वितरण प्रसाद के रूप में परिवार के सदस्यों और पड़ोसियों में किया जाता है। बलि का एक-तिहाई मांस निर्धन लोगों को भी दिया जाता है।
  • इस ईद के आगमन से उस पवित्र समय के प्रारम्भ होने का संकेत भी मिलता है, जब लोग मक्का की पवित्र तीर्थयात्रा, जिसे हज कहा जाता है, के लिए प्रस्थान करते हैं। यह ईद हज की ख़ुशी में मनायी जाती है।

मिलाद-उन-नबी-

  • यह पैगंबर मुहम्पव की जयंती और पुण्यतिथि का प्रतीक है। ग्रंथों के अनुसार, पैगंबर का जन्म रबी-उल-अव्वल के महीने में हुआ था, जो हिज़री कैलेंडर का तीसरा महीना है।
  • इस दिन को मिलाद-उन-नबी या मौलिद-उन-नबी कहा जाता है। यह दिन वह दिन भी माना जाता है, जब पैगंबर पृथ्वी से विदा हुए थे।
  • इस त्यौहार को बारह-वफ़ात के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन पैगंबर मुहम्मद के जन्मोत्सव की वर्षगाँठ भी होती है।
  • पैगंबर का जन्म हिजरी कैलेंडर के तीसरे महीने रबी-उल-अव्वल में हुआ था। इस दिन को मिलाद-उन-नबी या मक्लिद-उन-नबी भी कहा जाता है।
  • यह भी माना जाता है कि इसी दिन पैगंबर ने इस पृथ्वी से प्रस्थान किया था, इसलिए इस दिन के सभी त्यौहारों को बहुत ही सादगी से मनाया जाता है।
  • यह दिन राष्ट्रीय अवकाशों में सम्मिलित है। इसे बहुत श्रद्धा और सादगी से मनाया जाता है। लोग मस्जिदों में एकत्र होते हैं और वहाँ पवित्र कुरान पढ़ी जाती है।
  • कुछ स्थानों पर विशेष समारोहों में धार्मिक विद्वान क़सीवा अल-बुर्दा का पाठ करते हैं, जो कि एक अति पवित्र कविता है एवं जिसे 13वीं शताब्दी के अरबी सूफी संत बुसिरी ने लिखा था।
  • लोग नात का गायन भी करते हैं, जो पैगंबर के सम्मान में और उनके द्वारा किये गए अच्छे कार्यों की मिसाल देने हेतु लिखी गयी परम्परागत कविताएँ हैं।
  • इस त्यौहार को बाराह वफ़ात भी कहा जाता है क्योंकि 12 दिन की बीमारी के बाद पैगंबर मोहम्मद की मृत्यु हो गयी थी।
  • इस त्यौहार का कश्मीर जैसे स्थानों में बहुत अधिक महत्त्व है जहाँ पैगंबर मुहम्मद के अवशेषों को श्रीनगर स्थित हतबल नामक तीर्थस्थान में प्रदर्शित किया जाता है। हजारों की संख्या में भक्त हज़त बल में एकत्रित होते हैं तथा जुलूस में भाग लेते हैं।

शब-ए-बारात-

  • इस त्यौहार को ‘मुक्ति की रात’ के रूप में भी जाना जाता है और इसे शाबान के महीने के 14वें और 15वें दिन के बीच की रात मे मनाया जाता है।
  • मुस्लिम परम्परा के अनुसार, इस रात प्रत्येक व्यक्ति की नियति का निर्धारण होता है।
  • अधिकतर शिया मुसलमान शाबान के 15वें दिन को 12वें इमाम मुहम्मद अल-महदी के जन्मोत्सव के रूप में भी मनाते हैं।
  • संसार को दमन और अन्याय से मुक्ति दिलाने का श्रेय उनको दिया जाता है।

शब-ए-मिराज़-

  • शब-ए-मिराज़ का अर्थ है ‘चढ़ाई की रात’। ऐसा माना जाता था कि हज़त पैगंबर अपनी यात्रा जारी रखते हैं और सर्वशक्तिमान अल्लाह के सान्निध्य में पहुँचते हैं।
  • इसी यात्रा में ही मुसलमानों के लिए रोज़ पाँच वक्त की नमाज़ अदा करना अनिवार्य बनाया गया था।

ईसाई धर्म के त्यौहार-

क्रिसमस-

  • यह दिन पूरे विश्व में ईसा मसीह के जन्म की वर्षगाँठ के रूप में मनाया जाता है। यह प्रतिवर्ष 25 दिसम्बर को आता है।
  • इस त्यौहार की तैयारियाँ अर्द्धरात्रि के धार्मिक समारोह से आरम्भ हो जाती हैं, जिसका आयोजन सभी चचों में 24 और 25 दिसम्बर के बीच की रात्रि में किया जाता है एवं यह मध्य रात्रि में हुए ईसा के जन्म का प्रतीक है।
  • चर्चों में भक्तों के लिए विविध प्रकार के कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है, जिनसे ईसा मसीह द्वारा किये गये कल्याणकारी कार्यों को याद किया जा सके।
  • लोग एक-दूसरे के घर जाते हैं तथा उपहारों का आदान-प्रदान करते हैं। दो और परंपराएँ इस त्यौहार से जुड़ी हुई है, पहला क्रिसमस वृक्ष है, जिसे प्रत्येक व्यक्ति के घर में स्थापित किया जाता है एवं जिसे अलंकरणों, प्रकाश और उपहारों से सजाया जाता है तथा दूसरा मिथक सांता क्लॉज (क्रिसमस बाबा) हैं, जिन्हें उपहारों का अग्रदूत माना जाता है।
  • लोग इस दिन ईसाई भजनों को गाते हैं और मिठाइयाँ और केक वितरित करते हैं।

ईस्टर और गुड फ्राइडे-

  • इस दिन को ईसा मसीह के पुनरुत्थान के रूप में मनाया जाता है।
  • बाइबिल के अनुसार, ईसा मसीह को सूली पर चढ़ाये जाने के तीन दिन बाद उनका पुनरुत्थान (पुनजीर्वित) हुआ था, इसलिए ईस्टर को मृत्यु पर जीवन की विजय के महत्त्व को दर्शाने के रूप में भी माना जाता है।
  • ईसाई और यहूदी, धर्म, दोनों की ही परंपराओं में ईस्टर के सुअवसर के सम्बन्ध में कुछ समानताएँ हैं।
  • उदाहरण के लिए, ईसाई धर्म के प्रारम्भिक वर्षों में, यहूदी ईसाई लोग ईस्टर को निसान नामक यहूदी महीने के 14वें दिन मनाया करते थे।
  • परन्तु साधारण ईसाई लोग इसे निसान के 14वें दिन के सबसे पास पड़ने वाले रविवार को मनाते थे। इस असमंजस का समाधान 325 ईस्वी में सम्पन्न निकेआ की एतिहासिक परिषद की बैठक के बाद हुआ, जिसके फलस्वरूप ईस्टर, मनाने के लिए वसंत विषुव के बाद पहले रविवार का दिन नियत किया जाता है, जो पहली बार पूर्ण चन्द्र दिखाई देने के उपरांत आता है।
  • गुड फ्राईडे का त्यौहार ईसा मसीह को सूली पर चढ़ाए जाने के दिन की याद में मनाया जाता है। यह प्रत्येक वर्ष अप्रैल के महीने में पड़ता है।

सिख उत्सव-

गुरुपुरब-

  • सम्पूर्ण विश्व का सिख समुदाय इस उत्सव को मनाता है। यद्यपि गुरुपुरब सभी दसों गुरुओं के जन्मदिवसों पर मनाया जाता है, लेकिन गुरु नानक और गुरु गोबिंद सिंह सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण हैं।
  • अन्य महत्त्वपूर्ण गुरुपरब गुरु अर्जुन देव और गुरु तेगबहादुर के शहीदी दिवस की याद में मनाये जाते हैं, जिन्होंने अपना जीवन मुग‌लों के हाथों गंवा दिया था।
  • सिख सुमदाय गुरु नानक के जन्मदिवस पर गुरुनानक जयंती मनाता है। सभी गुरुद्वारों में इस दिन विशेष सेवा का आयोजन होता है और लोगों में लंगर का वितरण होता है।
  • सभी गुरुपुरब उत्सव मनाने और भगवान को स्मरण करने के लिए एकत्र होते हैं। अखंड पाठ का आयोजन किया जाता है और लोग प्रभात फेरियाँ या सामुदायिक शबद या भजन गायन करते हैं, जिनमें प्रभु की प्रशंसा की जाती है।
  • उत्सवों का समापन गुरु ग्रन्थ साहिब की फूलों से सुसज्जित झाँकी यात्रा से होता है, जिसका नेतृत्व पाँच सशस्त्र रक्षक करते हैं, जिनके हाथों में सिख ध्वज (निशान साहिब) होता है।
  • यह पाँच व्यक्ति गुरु गोबिंदसिंह के ‘पाँच प्रिय पुरुषों’ या पंज प्यारों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

प्रकाश उत्सव-

  • इस उत्सव को 10वें सिख गुरु गोबिंदसिंह के जन्म उत्सव के रूप में मनाया जाता है।
  • इसका अर्थ 10वाँ दिव्य प्रकाश या दिव्य ज्ञान का जन्म उत्सव भी है।
  • इसे प्रति वर्ष 31 जनवरी को सिखों द्वारा व्यापक रूप से मनाया जाता है।

माघी –

  • यह सिखों का सामयिक सम्मेलन है और यह प्रति वर्ष मनाया जाता है।
  • इसे मुक्तसर में सिख शहीदों (चालीस मुक्ते) की याद में मनाया जाता है, जिन्होंने मुगलों से युद्ध किया था।
  • सिख इस सिखन्मुगल युद्ध स्थल की ओर एक जलूस के रूप में जाते हैं और मुक्तसर के पवित्र सरोवर में स्नान करते हैं। इस सिख चमगल युद्ध स्थल की ओर जाता है।

होला मोहल्ला-

  • यह सिखों का बड़ा उत्सव है। यह प्रायः चैत्र मास के दूसरे दिन होता है और आनंदपुर साहिब में आयोजित किया जाता है।
  • इसे गुरु गोविंदसिंह ने छद्म युद्ध और सैन्य अभ्यास प्रारम्भ किया था।
  • इसे मुड़सवारी बलकारखाना आदि की प्रतियोगिताओं के लिए ‘सिख ओलम्पिक’ के रूप में भी जाना जाता है।

बैसाखी-

  • प्रतिवर्ष 13 या 14 अप्रैल को मनाया जाने वाला यह एक धार्मिक उत्सव है।
  • इसे सिख नव वर्ष और खालसा पंथ के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। यह सिखों का वसंत की फसल कटाई का उत्सव भी होता है।

 

लोहड़ी

  • इस उत्सव को 13 जनवरी को मकर सक्रांति से पहले, पौष के महीने में मनाया जाता है। लोहड़ी उर्वरता और जीवन के उत्साह का उत्सव मनाने का पर्व है।
  • लोग अग्नि जला कर उसके इर्दगिर्द एकत्रित होते हैं और खील, मकई के भुने हुए दाने और मिठाइयाँ अग्नि को अर्पित करते हैं और लोकप्रिय गीत गाते हुए एक-दूसरे को बधाइयाँ देते हैं।
  • यह अँधेरे पर प्रकाश की विजय का भी प्रतीक है।

सोडल मेला-

  • यह पंजाब के मुख्य मेलों में से एक है और इसे एक महान आत्मा बाबा सोडल को श्रद्धांजलि देने के लिए मनाया जाता है।
  • प्रत्येक वर्ष, मेले को भाद्रपद (सितम्बर) में जालन्धर में मनाया जाता है। सिख धर्म के अनुयायी इस दिन को बहुत शुभ मानते हैं।
  • यह मेला बाबा की समाधि के पास होता है, जहाँ उनकी मूर्ति को फूलों से सजाया जाता है। सोडल के सरोवर में लोग डुबकी लगाते हैं और समाधि पर अपनी श्रद्धा अर्पित करते हैं।

जैन पर्व-

महावीर जयंती-

  • इस पर्व को जैन समुदाय मनाता है। इसे भगवान महावीर की जयंती के रूप में आयोजित किया जाता है, जो 24वें तीर्थंकर और जैन धर्म के संस्थापकों में से एक थे।
  • यह चैत्र मास के शुक्ल पक्ष के 13वें (तेरहवें) दिन आता है।
  • इसपर्व को बहुत धूमधाम से मनाया जाता है और जैन मन्दिरों को भगवा ध्वजों से सजाया जाता है।
  • महावीर की प्रतिमा को दूध से स्नान एवं एक अनुष्ठानात्मक स्नान (अभिषेक) कराया जाता है। फिर इसे एक यात्रा के रूप में ले जाया जाता है।

पर्युषण पर्व-

  • जैनियों के वार्षिक पर्व को पर्युषण के नाम से जाना जाता है।
  • यह श्रावण के महीने में (अगस्त/सितम्बर) आठ दिन तक मूलतः श्वेताम्बर समुदाय द्वारा मनाया जाता है।
  • दिगम्बर समुदाय का पर्व दस दिन तक चलता है। यह पर्व घूमन्तू जैन भिक्षुओं के अपने आश्रयस्थलों की ओर वापसी को चिहिनत करता है, क्योंकि इस अवधि में होने वाली मूसलाधार वर्षा और मानसून उनका जंगल की गुफाओं में निवास करना असम्भव बना देती है।
  • इस पर्व में मंदिरों या उपाश्रयों की आनुष्ठानिक यात्राएँ और कल्पसूत्र पर प्रवचनों को सुनना सम्मिलित है।
  • अधिकांश भक्तों को प्रतिक्रमण या ध्यान क्रिया करने के लिए कहा जाता है। पर्व की समाप्ति क्षमावमी (क्षमा दिवस) के रूप में होती है।
  • समुदाय के सभी लोग एक दूसरे से ‘मिच्छामी बुक्कडम्’ कहते हैं, अर्थात यदि मैंने आपको जाने या अनजाने में वाणी या क्रम से चोट पहुँचायी है, तो मैं आपसे क्षमा माँगता हूँ।

महामस्तकाभिषेक-

  • यह कर्नाटक के श्रवणबेलगोला शहर में 12 वर्ष में एक बार होने वाला पर्व है। यह पर्व ऋषभदेव के पुत्र सिद्ध बाहुबली की 57 फीट ऊँची प्रतिमा के पवित्र स्नान का समारोह है।
  • विशेष रूप से तैयार किये गये बर्तनों से भक्तों द्वारा गाढ़ा जल प्रतिमा पर डाला जाता है।
  • प्रतिमा को दूध, गन्ने का रस और केसर के लेप से नहलाया जाता है और चंदन, हल्दी और सिंदूर के पाउडर का छिड़काव किया जाता है।

ज्ञान पंचमी-

  • कार्तिक महीने के पाँचवे दिन को “ज्ञान पंचमी” के रूप में जाना जाता है। इसे ज्ञान का दिन माना जाता है।
  • इस दिन पवित्र ग्रन्थों का प्रदर्शन और पूजा की जाती है।

वर्षी तप या अक्षय तृतीया तप-

  • यह पर्व पहले जैन तीर्थंकर ऋषभदेव से सम्बन्धित है, जिन्होंने 13 महीने 13 दिन का निरंतर उपवास रखा था।
  • जो लोग इस उपवास को करते हैं, उन्हें वर्षी तप कहा जाता है।

मौन अगियारा/मौन एकावशी-

  • इस पर्व को जैन कैलेंडर के मगसर (महीने) के 11वें दिन मनाया जाता है।
  • इस दिन पूर्ण मौन रखा जाता है और उपवास किया जाता है। ध्यान भी किया जाता है।

नवपद ओली-

  • नौ-विवसीय ओली अर्द्ध-उपवास का समय है।
  • इस अवधि के दौरान, जैन केवल एक समय पर सादा भोजन करते हैं।
  • यह मार्च/अप्रैल और सितम्बर/अक्टूबर के दौरान वर्ष में दो बार मनाया जाता है।

बौद्ध त्यौहार-

बुद्ध पूर्णिमा-

  • बुद्ध पूर्णिमा या बुद्ध जयंती को भगवान बुद्ध के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है।
  • यह अप्रैल मई के महीने में आता है और भारत के उत्तर-पूर्वी भागों में व्यापक रूप से मनाया जाता है।
  • इसे धेरवात परम्परा में विशाखा पूजा और सिक्किम में सागा दावा (दसा) कहा जाता है। उत्तर भारत में इस त्यौहार को मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश के सारनाथ और बिहार के बोध गया में मनाया जाता है।
  • इस त्यौहार में गौतम बुद्ध के जीवन पर उपदेश सुनना सम्मिलित है। इस दिन बौद्ध धर्म में ग्रन्थों का जप, बुद्ध की आकृति, बोधि वृक्ष की पूजा और ध्यान भी किया जाता है।
  • विभिन्न पंथ विभिन्न नियमों का पालन करते हैं, जैसे: महायान बौद्ध संगीत वाद्य यंत्र ग्यालिंग के साथ शोभायात्रा आयोजित करते हैं। वे कंग्युर ग्रंथों को भी पढ़ते हैं।
  • थेरवाद बौद्ध केवल बुद्ध की मूर्तियों की औपचारिक पूजा करते हैं।

सोंगक्रन-

  • इस बौद्ध त्यौहार को वसंत की सफाई के रूप में मनाया जाता है। अप्रैल के मध्य में इसे कई दिनों तक मनाया जाता है। लो
  • ग अपने घरों की सफाई करते हैं, वस्त्र धोते हैं और भिक्षुओं पर सुंगधित जल छिड़कने का आनंद लेते हैं।जुताई त्यौहार
  • इस त्यौहार को बुद्ध के पहले ज्ञान प्राप्ति के क्षण के रूप में मनाया जाता है, जब उनकी आयु सात वर्ष की थी
  • और वे अपने पिता के साथ खेतों की जुताई देखने गये थे। इसे मई के महीने में मनाया जाता है और दो श्वेत बैल सुनहरे रंग से पेंट किये गये हल को खींचते हैं, जिनके पीछे श्वेत परिधान में चार कन्याएँ अपनी टोकरियों से धान के बीज फेंकती हैं।
  • उलम्खना (Ullambana)
  • इस त्यौहार को आठवें चन्द्र मास के पहले से पन्द्रहवें दिन तक मनाया जाता है। ऐसा माना जाता हैं कि नरक के द्वार पहले दिन खोले जाते हैं और भूत पन्द्रह दिन तक संसार में विचरण कर सकते हैं।
  • इन भूतों के कष्टों के निवारण के लिए इस अवधि में उन्हें भोजन अर्पण किया जाता है। पन्द्रहवें दिन लोग कृन्ब्रिस्तान जाकर दिवंगत आत्माओं को भेंट अर्पित करते हैं।

हेमिस गोम्पा-

  • इस त्यौहार को गुरु रिन्पोचे (पत्‌मसम्भव) की जन्म शताब्दी के रूप में लद्दाख के हेमिस गोम्या मठ में आयोजित किया जाता है।
  • अपने लोगों की रक्षा के लिए तिब्बती बौद्ध धर्म संस्थापक, गुरु पद्मसम्भव ने बुरी शक्तियों से युद्ध किया था।
  • इसलिए इस त्यौहार को बुराई पर अच्छाई की विजय के रूप में मनाया जाता है। इस त्यौहार का मुख्य आकर्षण लामाओं द्वारा मुखौटे पहन कर किया जाने वाला नृत्य है।
  • कई संगीतकार झाँझ, बड़े ड्रम, छोटी तुरही और बड़े आकार के वायु उपकरणों के उपयोग से परम्परागत संगीत बजाते हैं।

सिंधी उत्सव-

चालिहा साहिब-

  • यह सिन्धी समुदाय का उत्सव है। इसे जुलाई-अगस्त के महीने में चालीस दिन का उपवास रख कर मनाया जाता है।
  • ये भगवान झूलेलाल की चालीस दिनों तक प्रार्थना करते हैं और उपवास की समाप्ति पर वे इस उत्सव को धन्यवाद विवस के रूप में मनाते हैं।
  • सिंध के आक्रमणकारी मीर्कशाह बादशाह ने थट्टा के निवासियों को परेशान किया था और वह उनसे इस्लाम कबूल कराना चाहता था।
  • लोगों ने वरुण देवता या जल देवता की नदी के तट पर चालीस दिन तक तपस्या की।
  • चालीसवें दिन वरुण देवता ने उनकी प्रार्थना सुनी और उन्हें तानाशाही से मुक्ति दिलाने का वचन दिया। उनकी प्रार्थना का उत्तर झूलेलाल के रूप में मिला था।

चेटीचंड-

  • यह सिंधी नव वर्ष का उत्सव है और इसे विश्व भर में मनाया जाता है।
  • इसे चैत्र के पहले दिन मनाया जाता है।
  • चेटीचंड को सिंधियों के सरंक्षक संत झूलेलाल के जन्म के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।
  • सिन्धी समुदाय द्वारा इसे बहुत धूमधाम और उत्साह से मनाया जाता है। लोग बहराणा साहिब बनाते हैं, जो जोत, मिश्री, फोटा, फल, अखा से बना होता है, निकटवर्ती नदी पर ले कर जाते हैं।
  • झूलेलाल की एक मूर्ति भी साथ ले जायी जाती हैं।

पारसी उत्सव-

जमशेदी नवरोज़

  • नवरोज उत्सव पारसी समुदाय के नव वर्ष के रूप में मनाया जाता है।
  • यह शहनशाही कैलेंडर द्वारा प्रदर्शित पहले महीने माह फारवर्दिन के पहले दिन या रोज़होर्मुज़्व को पड़ता है।
  • उसे सार्वभौम भोर का प्रारम्भ माना जाता है, क्योंकि यह शीत ऋतु की समाप्ति और नव वर्ष का प्रारम्भ है।
  • परम्परागत रूप से पारसी खोरशेव और मेहर याजात के प्रति सम्मान प्रदर्शित करते हैं. जो दो दिव्य प्राणी और सूर्य के अप्रबूत हैं।
  • लोग एक-दूसरे के घर और अग्नि मंदिर जाते हैं।

पारसियों के अन्य उत्सव इस प्रकार हैं:-

 

 

उत्सव का नाम किस दिन होता है अवसर किये जाने वाले अनुष्ठान
जरथोस्त नो दीसो 10वें महीने के 11वें दिन  

पैगंबर जरथोस्त की मृत्यु की वर्षगांठ

पारसी लोग अग्नि मन्दिर में जाकर पूजा करते हैं और पैगंबर के जीवन और कार्यों को सुनते हैं।
खोरदादसाल पारसी महीने फरवर्दिन के छठे दिन (अगस्त/ सितम्बर पैगंबर की जन्म शताब्दी पर पारसी पूजा अर्चना करते हैं और विशेष भोज का आयोजन करते हैं।
पतेती पारसी कैलेंडर का अंतिम गाथा दिन। वर्ष भर में किये गये अपराधों के लिए क्षमा याचना के लिए। पारसी पूजा करते हैं, गरीबों को भिक्षा देते हैं और घर पर भोज आयोजित करते हैं

 

उत्तर-पूर्व भारत के मुख्य त्यौहार

बेहदीनखलम महोत्सव-

  • बेहदीनखलम का अर्थ है प्लेग रोग को दूर भगाना।
  • यह त्यौहार वार्षिक रूप से मानसून के मौसम में मेघालय के जयंतिया हिल जिले में मनाया जाता है।
  • यह रोगों (प्लेग) सहित प्रकृति की विनाशकारी शक्तियों को दूर करने के लिए मानव जाति के अधक संघर्ष की
  • कर्मकांडीय अभिव्यक्ति है।
  • त्यौहार की मुख्य विशेषता वृक्षों की लंबी डालियों से गोल, पॉलिश किये हुए लकड़ी के कुवे या लॉग का निर्माण है। •
  • बेहदीनखलम उत्सव के दौरान जयंतिया पुरुष “रॉग” या रथ लेकर चलते हैं।

सागा दावा (Triple Blessed Festival)

  • यह त्यौहार अधिकतर सिक्किम राज्य में रहने वाले बौद्ध समुदायों द्वारा मनाया जाता है।
  • यह सागा दावा नामक तिब्बती चन्द्र-मास के बीच में पड़ने वाली पूर्ण चन्द्रोदय की रात्रि को मनाया जाता है।
  • तिब्बती समुदायों द्वारा इस दिन को अत्यधिक शुभ माना जाता है। यह महीना मई और जून के बीच पड़ता है और इस महीने को सागा दावा या ‘पुण्य का महीना’ कहा जाता है।
  • इस त्यौहार को बुद्ध के जन्म, ज्ञानोदय और मृत्यु (परिनिर्वाण) का स्मरण करने के लिए मनाया जाता है।
  • अधिकांश लोग मठों की यात्रा करते हैं और वहाँ अगरबत्ती, धोग और जल अर्पण करते हैं। साथ ही लोग मठों की प्रदक्षिणा करते हैं मंत्रों का जाप करते हैं, धार्मिक ग्रंथों का पाठ करते हैं और धर्म चक्र घुमाते हैं।
  • सागा दावा के पूरे महीने बौद्ध समुदाय के लोगों को बौद्ध धर्म की तीन शिक्षाओं: उदारता (दान), धर्माचरण (सिला) और ध्यान या शुभ विचार (भावना) का पालन करना होता है।

लोसूंग त्यौहार-

  • लोसूंग त्यौहार को ‘सिक्किम का नव वर्ष’ के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।
  • यह त्यौहार पूरे सिक्किम राज्य में प्रत्येक वर्ष दिसम्बर के महीने में मनाया जाता है। जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है कि सिक्किम राज्य का प्रमुख व्यवसाय कृषि है और यह फसलों की कटाई के उत्सव के रूप में किसानों और अन्य व्यावसायिक समुदायों द्वारा मनाया जाता है।
  • परंपरागत रूप से, इस त्यौहार को भूटिया जनजाति का त्यौहार माना जाता है परन्तु आजकल लेप्या जनजाति के लोग भी इसे उसी प्रकार पूरे उत्साह और उमंग से मनाते हैं।
  • इस त्यौहार का विशेष बिन्दु यह है कि इस उत्सव के अंग के रूप में लोग स्थानीय स्तर पर निर्मित की जाने वाली शराब पीते हैं, जिसे चांग कहते हैं।
  • सब लोग परम्परागत नृत्यों, जैसे-खग्यु नृत्य और ब्लैक हैट नृत्य, को करने के लिए मठों में एकत्रित भी होते हैं।
  • तीरंदाजी जैसी उत्सवों से सिक्किमी समुदाय के लोगों की युद्धप्रिय भावनाओं का प्रदर्शन होता है।

बिहू त्यौहार-

  • बोहाग बिहू असम के सर्वाधिक लोकप्रिय त्यौहारों में से एक है।
  • रॉगली अथवा बोहाग बिहू अप्रैल में मनाया जाता है, कोंगली अथवा काती बिहू अक्टूबर में मनाया जाता है, और भोगली बिहू जनवरी में मनाया जाता है।
  • रोंगली बिहू इन तीनों में से सबसे महत्त्वपूर्ण है और यह असमी नववर्ष के समय में ही मनाया जाता है।
  • बिहू के दौरान गीत और नृत्य मुख्य आकर्षण हैं।
  • बोहाग बिहू असम के सबसे लोकप्रिय त्यौहारों में से एक है। यद्यपि असमी लोग वर्षभर में तीन बार बिहू मनाते हैं, पर बोहाग बिहू की बहुत उत्सुकता से प्रतीक्षा की जाती है।
  • क्योंकि असम में रहने वाले समुदाय प्रमुख रूप से कृषि आधारित समुदाय हैं, बिहू त्यौहार परम्परागत रूप से बदलती हुई
  • ऋतुओं और फसलों की कटाई से जुड़ा हुआ है। बोहाग बिहू प्रतिवर्ष 14 अप्रैल से आरम्भ होकर कई दिन तक मनाया जाता है।
  • समुदायों और जनजातियों के निर्णय के अनुसार यह त्यौहार एक सप्ताह से लेकर लगभग एक महीने तक चलता है।
  • त्यौहार के पहले दिन गाय और बैल, जो समुदाय का मूल आधार हैं, उन्हें नहलाया और खिलाया जाता है। इस त्यौहार को ‘गोरा बिहु’ कहते हैं।
  • दूसरा दिन बिहू त्यौहारों का प्रमुख दिन है, और इस दिन लोग एक-दूसरे का अभिवादन करते हैं और अपने संबंधियों के साथ गमोसा (हाथ से बुना हुआ खादी का गमछा) का आदान-प्रदान करते हैं।
  • सभी घरों में पिठा (चावल के आटे, गेहूँ के आटे, तिल, नारियल और गुड़ के मिश्रण से बना एक व्यंजन) बनाया जाता है।
  • वे मंच भी बनाते हैं. जहाँ सभी समुदायों के पुरुष और स्त्रियाँ मिलकर बिहू नृत्य करते हैं।

होर्नबिल महोत्सव

  • यह नागालैंड में मनाये जाने वाले प्रमुख त्यौहारों में से एक है।
  • यह 10 दिन तक चलने वाला त्यौहार है, जो प्रतिवर्ष पहली विसम्बर से आरम्भ होता है।
  • सभी प्रमुख नागा जनजातियों के लोग इस त्यौहार में भाग लेने के लिए किसमा धरोहर गाँव में एकत्र होते हैं। सभी जनजातियों के लोग वेशभूषाओं, शस्त्रों, तीरों और कमानों तथा अपने कुनबे की विशिष्ट पगड़ियों के माध्यम से अपने कौशल और सांस्कृतिक विविधता का प्रदर्शन करते हैं।
  • यह त्यौहार सभी जनजातियों में बीच मेल-जोल बढ़ाने तथा नयी पीढ़ी के लोगों के लिए सांस्कृतिक सम्बन्ध बनाने का अवसर प्रदान करता है।

मोअत्सु मोंग त्यौहार

  • यह बुआई के बाद मई के पहले सप्ताह में नागालैंड के एओ (Ao) जनजाति द्वारा मनाया जाता है।
  • यह त्यौहार उन्हें तनावपूर्ण काम, जैसे खेतों को साफ करना, जंगलों को जलाना, बीज बोना आदि के बाद प्रसन्नता और मनोरंजन की अवधि प्रदान करता है।
  • यह गीतों और नृत्यों के लिए विशिष्ट माना जाता है।
  • उत्सव का एक हिस्सा सांगपांगटू है. जहाँ एक बड़ी आग जलायी जाती है और महिलाएँ और पुरुष इसके चारों ओर बैठते हैं।

येमशे महोत्सव-

  • यह भी नागालैंड में, मुख्य रूप से पोचुरी जनजाति द्वारा मनाया जाने वाला फ़सल उत्सव है।
  • इस त्यौहार के दौरान मेंढकों को पकड़ना प्रतिबंधित होता है।
  • यह सितंबर में मनाया जाता है।

खर्ची पूजा-

  • इस हिंदू त्यौहार का उद्भव त्रिपुरा राज्य में हुआ।
  • यद्यपि यह त्यौहार राजसी परिवार के त्यौहार के रूप में आरम्भ हुआ था, लेकिन वर्तमान समय में एक सामान्य परिवार भी इस त्यौहार को मनाता है।
  • यह त्यौहार पूरे सप्ताह मनाया जाता है तथा यह जुलाई के महीने में मनाया जाता है।
  • यह त्यौहार पृथ्वी के सम्मान में मनाया जाता है तथा 14 अन्य देवताओं की पूजा की जाती है।
  • प्रत्येक वर्ष हज़ारों लोग इन देवताओं की अराधना करने के लिए अगरतला स्थित चतुरदश मन्दिर तक पैदल यात्रा करते हैं।

चेरियाओवा त्यौहार-

  • यह त्यौहार पूरे मणिपुर राज्य में मनाया जाता है, क्योंकि मणिपुरी जनजातीय प्रथा के अनुसार यह उनका नववर्ष है।
  • यह मार्च की पहली तिथि या अप्रैल महीने की पहली तिथि को मनाया जाता है।
  • इस त्यौहार का सम्बन्ध सनामही नामक स्थानीय देवता से है, जिसकी पूजा मेड़तेह जनजाति के लोग करते हैं।
  • सामान्यतः इस त्यौहार का आयोजन सनामही के मन्दिर में किया जाता है।
  • प्रत्येक परिवार अपने घर को साफ करता है, नये बर्तन और परिवार के सदस्यों के लिए नये वस्त्र खरीदता है।

बंगाला त्यौहार (100 ड्रम महोत्सव)-

  • प्रभावशाली गारो जनजाति के लोग मुख्य रूप से मेघालय में यह त्यौहार मनाते हैं। यह त्यौहार सर्दी के आरम्म का सूचक है और फसल की कटाई के पश्चात् आने वाली ऋतु का स्वागत करने के लिए मनाया जाता है।
  • इस त्यौहार को ‘मिसी सल्जोंग’ नामक स्थानीय देवता के सम्मान में मनाया जाता है, जिनके बारे में मान्यता है कि वे बहुत उदारता से सब कुछ देते हैं।
  • ऐसा माना जाता है कि समुदाय के प्रति होने वाली सभी कल्याणकारी बातों के पीछे उन्हीं की शक्ति काम करती है। यह त्यौहार उनके प्रति धन्यवाद है।
  • संगीतमय वातावरण निर्मित करने के लिए ढोल, बाँसुरी और अन्य संगीत वाद्य बजाये जाते हैं।
  • इसे ‘100 डोल वाला तथा बंगाला त्यौहार’ भी कहा जाता है, क्योंकि जोर-जोर से बजने वाले ढोलों की आवाजें इस त्यौहार के आरम्भ होने का संकेत देती हैं।
  • प्रतिभागियों द्वारा पहने जाने वाले आश्चर्यजनक परिधानों से इस त्यौहार को निराली छटा भी प्राप्त होती है।
  • एक अन्य असामान्य विशेषता त्यौहार मनाने वाले सभी लोगों द्वारा धारण की जाने वाली पंखों से सजी पगड़ियाँ हैं, जो उनके कुनबे (क़बीले) को भी प्रदर्शित करती हैं।

कांग चिंगबा (मणिपुर की रथ यात्रा)-

  • कांग चिगंबा मणिपुर में मनाये जाने वाले सबसे बड़े हिंदू त्यौहारों में से एक है।
  • यह जगन्नाथ पुरी की रथ यात्रा के समान है और उसी के पूर्व-इतिहासों से प्रेरित प्रतीत होता है।
  • यह दस दिनों तक चलने वाला त्यौहार है. जो प्रत्येक वर्ष जुलाई में मनाया जाता है।
  • यात्रा का आरम्भ इम्फाल स्थित श्री गोविन्दजी के प्रसिद्ध मन्दिर से होता है। लकड़ी को तराशकर बनायी और अत्यधिक सुसज्जित प्रतिमाओं को विशाल रथों पर आरुढ़ किया जाता है, जिन्हें ‘कांग’ कहा जाता है।
  • इन देवी-देवताओं को फिर दूसरे मन्दिर में ले जाया जाता है और इस यात्रा के उपलक्ष्य में लोग रात भर नृत्य करते हैं।

अम्बुबाची मेला-

  • असम के गुवाहाटी स्थित कामाख्या मन्दिर में इस त्यौहार को आयोजित किया जाता है।
  • यह त्यौहार उत्तर-पूर्व भारत के प्रमुख त्यौहारों में से एक है, यहाँ तक कि इसे ‘पूर्व का महाकुम्भ’ भी कहा जाता है।
  • यह त्यौहार उर्वरता से संबंधित अनुष्ठानों से जुड़ा हुआ है और कई भक्त यहाँ देवी से सन्तान प्राप्ति का आशीर्वाद लेने के लिए आते हैं।
  • इस मन्दिर में मेले के दौरान सम्पन्न की जाने वाली कथित तांत्रिक गतिविधियों ने कई विवादों को भी जन्म दिया है।
  • मान्यता है कि त्यौहार के समय देवी कामाख्या का मासिक धर्म चल रहा होता है, इसलिए इस अवधि में मन्दिर तीन दिन के लिए बंद रहता है।

सेकरेन्यी त्यौहार-

  • सेकरेन्यी का त्यौहार फ़रवरी के महीने में नागालैंड की अंगामी जनजाति द्वारा मनाया जाता है।
  • यह त्यौहार दस दिनों तक चलता है और इसे अन्गामियों द्वारा ‘फुसैनी (phousanyi)’ भी कहा जाता है। यह शुद्धिकरण का त्यौहार है।

मजुली त्यौहार-

  • यह अत्यधिक आधुनिक त्यौहारों में से एक है, जिसे असम राज्य के मजुली द्विप में मनाया जाता है।
  • इस त्यौहार को नवम्बर में आयोजित किया जाता है, क्योंकि यह असम के मौसम की क्षण-क्षण परिवर्तित होने वाली मौसमी परिस्थितियों के विचार का सर्वोत्तम समय होता है।
  • असम का सांस्कृतिक विभाग इस त्यौहार के दौरान विभिन्न कार्यक्रमों, जैसे सेमिनार का आयोजन करता है, जो सामान्य रूप से पूरे असम के पारंपरिक इतिहास और गौरव तथा विशेष रूप से मजुली पर प्रकाश डालते है।

लुई-न्गई-नी त्यौहार-

  • नागा जनजातियाँ इस त्यौहार को मनाती हैं। यह पूरे नागालैंड में और मणिपुर के कुछ नागा बहुल क्षेत्रों में मनाया जाता है।
  • इस त्यौहार का बीजों की बुआई के मौसम के संकेत के रूप में भी आनंद उठाया जाता है।
  • यह त्यौहार नागा जनजातियों की कृषिकर्म संबंधी शाखाओं को गैर-कृषक नागा समुदायों के निकट लाता है।
  • यह त्यौहार बहुत धूम-धाम और प्रदर्शन से मनाया जाता है एवं इस त्यौहार का उद्देश्य विभिन्न समुदायों को निकट लाना और शांति और समन्वय का संदेश प्रसारित करना है।

ड्री त्यौहार

  • अरुणाचल प्रदेश के अपातानी/अपतानी जनजाति के लोग मुख्यतः इस त्यौहार को मनाते हैं।
  • वर्तमान समय में, और भी अधिक जनजातियों के लोग ड्री त्यौहार की प्रथाओं को मनाने लगे हैं।
  • यह जीरो घाटी में आयोजित होने वाले सबसे बड़े त्यौहारों में से एक है।
  • इस त्यौहार के दौरान लोग मुख्य रूप से पाँच देवताओं की पूजा-अराधना करते हैं तामू, मेटी, मेडवर, दापई और मेधिन।
  • अच्छी और भरपूर फसल की प्रार्थना की जाती हैं। लोग घाटी में एकत्र होकर परम्परागत नृत्य करते हैं।
  • इस त्यौहार की एक अनोखी परम्परा यह है कि अच्छी फसल के प्रतीक स्वरूप सभी एकत्रित लोगों को खीरे वितरित किये जाते हैं।

लोसार महोत्सव-

  • यह चंद्र कैलेंडर के पहले दिन पड़ता है और अरुणाचल प्रदेश में काफी लोकप्रिय है (मुख्य रूप से मोनपा जनजाति द्वारा मनाया जाता है, जो कृषि और पशुपालन का काम करते हैं और बौद्ध धर्म का पालन करते हैं)।
  • लोसार एक तीन दिवसीय त्यौहार है और तवाग में धूमधाम से मनाया जाता है। यह लद्दाख क्षेत्र में भी मनाया जाता है।

खान महोत्सव

  • यह अरुणाचल प्रदेश के मिजी जनजाति द्वारा मनाया जाने वाला एक धार्मिक त्यौहार है।
  • यह त्यौहार महत्त्वपूर्ण है. क्योंकि यह हर पृष्ठभूमि के लोगों को आपस में मिलाता है. चाहे वे किसी भी जाति और पंथ के हों।
  • इस दौरान, पुजारी सभी सहभागियों के गले में ऊन का एक टुकड़ा बाँधता है और इस धागे को पवित्र माना जाता है।

लाई हराओबा

  • यह मणिपुर में मेईतेई समुदायों द्वारा मनाया जाने वाला एक कर्मकांडी त्यौहार है।

जो कुटपुई-

  • मिज़ोरम में जो कुटपुई उत्सव मनाया जाता है। इसमें दुनिया के विभिन्न हिस्सों में रहने वाले मिजो जनजाति के लोग एकजुट होते हैं।

द्विजिंग महोत्सव-

  • द्विजिंग महोत्सव असम के चिरांग जिले में ऐई नदी के तट पर मनाया जाने वाला एक वार्षिक नदी उत्सव है।

सोलुंग उत्सव-

  • यह अच्छी फसल और समृद्धि की इच्छा से अरुणाचल प्रदेश में मनाया जाने वाला आदि जनजाति का एक कृषि त्यौहार है।

मी-दम-मे-फि-

  • यह पूर्वजों की पूजा का त्यौहार है, जो असम में हर साल 31 जनवरी को अहोम समुदाय द्वारा मनाया जाता है।

बैशागु

  • यह त्यौहार असम की ‘बोरो कछारी’ जनजाति द्वारा मनाया जाता है।

अली ऐई लिगांग महोत्सव

  • यह त्यौहार असम में मिशिंग समुदाय द्वारा मनाया जाता है।
  • यह बीज बोने का त्यौहार और वसंत उत्सव है, जो अच्छी फसल की कामना के लिए मनाया जाता है।

 

रोंगकर और चोमांगकान महोत्सव-

  • रोंगकर और चोमांगकान कारबिस लोगों के दो त्यौहार हैं, जो असम में कार्यों आंगलोंग की एक स्थानीय जनजाति है।

बड़े सहरिया भौना-

  • बड़े सहरिया भौना जमुगुरीहाट, असम में एक सामुदायिक नाटक उत्सव है

 

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