बुंदेला विद्रोह के कारण: 1842

बुंदेला विद्रोह के कारण: 1842

प्रस्तावना –

1757 ई के प्लासी के युद्ध के पश्चात ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में अपनी सत्ता की स्थापना का आरंभ किया। लॉर्ड क्लाइव, लार्ड कार्नवालिस, लॉर्ड वेलेजली आदि साम्राज्यवादी गवर्नर जनरलों ने अपनी निरंकुश नीतियों से भारत में कंपनी की सत्ता को विस्तार के साथ मजबूती प्रदान की तृतीय आंग्ल मराठा युद्ध 1817 से 18 के पश्चात कंपनी ने पेशवा एवं भोसले को परास्त कर उनकी अधीनता वाले बुंदेलखंड के क्षेत्र हड़प लिए।  1820 में सागर – नर्मदा क्षेत्र का गठन कर यहां कंपनी ने अपनी शोषण परक भू राजस्व प्रणाली लागू की अधिक भू राजस्व एवं वसूली में शक्ति ने इस क्षेत्र के बुंदेली को आंदोलन करने के लिए बाध्य कर दिया । इसका परिणाम यह हुआ की कंपनी को अखिल भारतीय स्तर पर 1842 में प्रथम बार एक सशक्त विद्रोह का सामना करना पड़ा यह विद्रोह ही बुंदेला विद्रोह के नाम से जाना जाता है।

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बुंदेला विद्रोह के कारण – 

1.भू राजस्व प्रणाली

2.  20 साल बंदोबस्त मराठा साम्राज्य से राजस्व प्रणाली एवं ब्रिटिश राजस्व प्रणाली की तुलना

3. नगद वसूली से ग्रामीण अर्थव्यवस्था का बिखराव

4. हथियार रखने पर रोक.

5.अफगानिस्तान में ब्रिटिश सेवा की फजीहत

6. बुढ़वा मंगल का आयोजन

7. जयपुर नरेश परिछत का चक्रव्यूह

8. नरहट के राव विजय बहादुर के साथ सख्ती

9.बुंदेला – लोधी गठजोड़

10. तात्कालिक कारण (नर्तकी को उठा ले जाना)

विस्तार पूर्वक विवेचन निम्नवत है – 

भू राजस्व प्रणाली-

ब्रिटिश सत्ता की स्थापना के पश्चात अंग्रेजों ने इस क्षेत्र में पहले तीन पांच साल बंदोबस्त लागू किया बंदोबस्त करने वाले अधिकारियों ने जमीन का आकलन इतना अधिक किया जो किसानों के लिए अत्यंत कष्टकारी था या किस की भुगतान क्षमता से अधिक था अत्यधिक थी वसूली के तरीके सख्त थे तीसरे बंदोबस्त के समय इस क्षेत्र में सुख पढ़ने से स्थिति बिगड़ गई पट्टे धारियों पर बकाया बढ़ने लगा जबलपुर में द्वितीय (1825- 29)एवं तृतीय(1830- 34) बंदोबस्त की राशि अत्यधिक थी वस्तु का ना तो जमीन मापने का कोई निर्धारण सिद्धांत था और ना ही बंदोबस्त के सर्वेक्षण की कोई निश्चित प्रणाली इससे सागर नर्मदा क्षेत्र में कृषकों की स्थिति सोचनी हो गई और यही स्थिति असंतोष के रूप में प्रकट हुआ।

बीस साला बंदोबस्त –

5 साल बंदोबस्त से उपजे असंतोष को देखते हुए आम शब्द को यहां की स्थिति का अध्ययन करने का दायित्व सोपा गया बर्ड सदरपुर आप रेवेन्यू के सदस्य थे शब्द को भारत में बंदोबस्त का जनक माना जाता है बर्थ ने प्रचलित राजस्व व्यवस्था को दोस्तपुर बताया उनका मानना था कि राजस्व काम हो और दीर्घ अवधि के लिए व्यवस्था की जाए बर्ड द्वारा लागू व्यवस्था से जबलपुर बैतूल एवं नरसिंहपुर जिलों को थोड़ी राहत मिली क्योंकि यहां राजस्व आकलन काम किया गया था अन्य जिलों में राजस्व आकलन अधिक था अतः लोगों में असंतोष बढ़ गया कलंदर में यही असंतोष बुंदेला विद्रोह का कारण बना।

मराठा राजस्व प्रणाली एवं ब्रिटिश राजस्व प्रणाली की तुलना –

अंग्रेजों से पूर्व सागर नर्मदा क्षेत्र में मराठा शासन था मराठा शासन में भू राजस्व का आकलन सुसंगत एवं सहानुभूति के आधार पर किया जाता था गांव को खालसा प्रबंधन के अंतर्गत रखा जाता था खालसा ग्रामों के भू राजस्व का आकलन वार्षिक रूप से किया जाता था उनकी रकम का निर्धारण काम विस्तार अर्थात परगना अधिकारी द्वारा किया जाता था सबसे महत्वपूर्ण बातें हैं कि राजस्व आकलन के दौरान ग्राम के मुखिया एवं पटेल से भी परामर्श लिया जाता था। मराठा की शासन में राजस्व का आकलन प्रतिवर्ष किया जाता था मैराथन के विपरीत अंग्रेजों का आकलन 5 वर्ष के लिए होता था । ब्रिटिश अधिपत्य में 1818 से 1834 के मध्य राजस्व मांगों के कारण किसानों को अत्यधिक संकटों का सामना करना पड़ा कर चुकाने के पश्चात कृषकों को अपना गुजारा करना मुश्किल हो जाता था परिणाम स्वरूप सागर, दमोह, शिवानी, नरसिंहपुर, होशंगाबाद एवं बैतूल जिले के लोग 30 के दशक में गरीबी एवं कर्ज की मकड़जाल में फंस गए । कृषक ही नहीं जमीदार एवं उवारीदार भी ब्रिटिश राजस्व प्रणाली से अत्यंत संतुष्टि थी यही असंतोष 1842 में विरोध के रूप में प्रकट हुआ।

नकद वसूली से ग्रामीण अर्थव्यवस्था का बिखराव –

भारत में प्राचीन काल से वस्तु विनिमय प्रणाली ग्रामीण अर्थव्यवस्था का मूल आधार रहा था । मराठों द्वारा राजस्व नकद वसूला जाता था, मगर गरीब कृषकों को यह स्वतंत्रता थी कि वह वस्तु के रूप में भी भुगतान कर सकते थे। ग्रामों में विनिमय का माध्यम अनाज था। इसके विपरीत अंग्रेजों ने कर नगद वसूल करने की प्रणाली आरंभ की । उन्हें इस बात से कोई लेना देना नहीं था की पर्याप्त सिक्के चलन में है या नहीं । अब सिक्के प्राप्त करने कृषकों को अपना अनाज एवं पशुओं को बेचने पड़े। इससे कर सकूं की राजस्व की बकाया राशि निरंतर बढ़ने लगी।इस प्रकार ब्रिटिश सत्ता ने यहां के ग्रामीण अर्थव्यवस्था को चौपट कर दिया।

हथियार रखने पर रोक –

जमीदारों एवं किसानों की शिकायत थी कि उन्हें हथियार लेकर चलने नहीं दिया जाता था।  कुछ जिलों में पुलिस से पूर्व अनुमति के बिना हथियारों के विक्रय पर प्रतिबंध था इससे इस क्षेत्र के लोगों में असंतोष प्राप्त हो गया, परिणाम स्वरूप बुंदेला विद्रोह का कारण बना।

अफगानिस्तान में ब्रिटिश सेना की फजीहत –

प्रथम आंग्ल अफगान युद्ध में ब्रिटिश सी न केवल पारस थी उसे कई प्रकार की मुसीबत का सामना भी करना पड़ा इससे बुंदेली का हौसला बढ़ गया इसलिए स्लीमन ने लिखा है कि “सैनिकों की कमी से असंतुष्ट और आक्रोशित लोगों में एक आम धारणा यह बन गई कि अब हमारे पास उन्हें दबाने की क्षमता नहीं है, अब हम कमजोर पड़ चुके हैं वे अब हमें मजबूर करके अपनी संपत्ति एवं धन वापस ले सकते हैं”

बुढ़वा मंगल का आयोजन –

सन 1836 में बुढ़वा मंगल में मेले का आयोजन हुआ। इस बुढ़वा मंगल मेले में समस्त बुंदेलखंड की 42 छोटी – बड़ी रियासतों के प्रतिनिधित्व ने भाग लिया । उन सभी रियासतों में ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध असंतोष व्याप्त था। उन्होंने मां भगवती के शीश पर हाथ रखकर शपथ ली कि देश में कोलकाता को साब अर्थात अंग्रेजों को नहीं रहने देंगे। इस प्रकार बुंदेलखंड के इस बुढ़वामंगल मेले में 1842 के बुंदेला विद्रोह की पृष्ठभूमि का निर्माण हुआ था।

जैतपुर नरेश परीछत का चक्रव्यूह-

1836 के बुढ़वा मंगल मेले में अंग्रेज विरोधी संघर्ष का नेतृत्व सर्वसम्मति से जैतपुर नरेश परीछत को सौंपा गया। राजा परिछात ने अंग्रेजों को घेरने के लिए चक्रव्यूह की रचना की। इस समय सागर अंग्रेज की सर्व प्रमुख छावनी थी पारीछत ने नरसिंहपुर के पास हीरापुर के राजा हृदय शाह एवं सागर के पास नरहट के मधुकर शाह को गुप्त संदेश भेज कर सागर क्षेत्र में विद्रोह करने हेतु उकसाया । इसी तरह आसपास के अन्य राज्यों व जागीरदारों को विद्रोह हेतु प्रेरित किया। इस प्रकार बुंदेला विद्रोह के आरंभ की सर्व प्रमुख सूत्रधार जैतपुर नरेश पारीछत ही थे, उन्होंने ही बुंदेला विद्रोह के चक्रव्यूह की रचना की।

नरहट के राव विजय बहादुर के साथ सख्ती –

नरहट के बुंदेला ठाकुरों का सागर क्षेत्र में अत्यंत प्रभाव था। यहां के जागीरदार राव विजय बहादुर सिंह का आसपास काफी रुतबा था। राजस्व की अधिकता के कारण इन पर बकाया का दबाव बढ़ता गया इस कारण दो बार उनकी कुर्की की गई। राव विजय बहादुर को अपनी बेटी की शादी करनी थी अंग्रेजों की राजस्व व्यवस्था ने उन्हें आर्थिक रूप से विपन्न कर दिया। इससे राव विजय बहादुर के पुत्र मधुकर शाह एवं गणेशजू अंग्रेजों से अत्यधिक नाराज थे। उधर जैतपुर नरेश पारीछत ने भी मधुकर शाह को अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह करने हेतु प्रेरित किया।

बुंदेला लोधी गठ – जोड़ –

नरहट के राव विजय बहादुर के पुत्र मधुकर शाह के नेतृत्व में सागर के आसपास के बुंदेली ठाकुरों का गठजोड़ अंग्रेज विरोधी लोधी ठाकुरों से हुआ। लोधी ठाकुरों का मुखिया हीरापुर का हृदय शाह था हृदय शाह की रिश्तेदारी सागर क्षेत्र के लोधी ठाकुरों से थी इस तरह बुंदेला लोधी ठाकुरों के घर जोड़ने बुंदेला विद्रोह की भूमिका तैयार की।

तात्कालिक कारण- (नर्तकी को उठा ले जाना)-

उपरोक्त सभी कारणों से अंग्रेजों के विरुद्ध बुंदेलखंड में अत्यधिक असंतोष बढ़ गया था। एक छोटी सी चिंगारी इस असंतोष रूपी बारूद में विस्फोट कर सकती थी, इस चिंगारी का कार्य किया पुलिस जमादार द्वारा एक नर्तकी को उठा ले जाने की घटना ने। 1842 में होली के उत्सव के दौरान झुकनिया नामक बेढनी को नरहट के ठाकुरों ने शाहगंज से बुलवाया । 29 मार्च को राव विजय बहादुर के निवास पर या नर्तकी नृत्य कर रही थी। इस नृत्य को देखने आसपास के लोग एकत्रित हुए थे। जब नृत्य चल रहा था उसी समय पुलिस का एक जमादार आया और जबरदस्ती नर्तकी को उठाकर ले गया। इस घटना ने राव विजय बहादुर के पुत्रों मधुकर शाह एवं गणेश जी का खून खौल उठा। अतः 8 अप्रैल 1842 को मधुकर शाह ने बुंदेला विद्रोह का आरंभ कर दिया गया। ठाकुर विक्रमजीत सिंह, चंद्रपुर के जवाहर सिंह सहित आसपास के अन्य जागीरदार भी इसमें मिल गए और बुंदेला विद्रोहियों की संख्या निरंतर बढ़ती गई। इस प्रकार उक्त वर्णित सभी कारणों से अंततः बुंदेला विद्रोह का आरंभ हो गया। उत्तर पूर्वी बुंदेलखंड में जैतपुर नरेश परीछत, मध्य में मधुकर शाह एवं दक्षिणपूर्वी बुंदेलखंड के हीरापुर के हृदय शाह ने बुंदेला विद्रोह को कुशल नेतृत्व प्रदान किया।

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