मौर्य सम्राट अशोक का वर्तमान में प्रासंगिकता -एक विश्लेषणात्मक अध्ययन

मौर्य सम्राट अशोक का वर्तमान में प्रासंगिकता -एक विश्लेषणात्मक अध्ययन

1 Mahan Samrat Ashok Images, Stock Photos, 3D objects, & Vectors | Shutterstock
मौर्य सम्राट अशोक

 

सारांशमौर्य साम्राज्य की स्थापना तक्षशिला विश्वविद्यालय के राजशास्त्र के आचार्य कौटिल्य (चाणक्य) की सहायता से चन्द्रगुप्त मौर्य के द्वारा 322 ईपू में की गई थी। जो लगभग 137 वर्षों तक टिकी रही। प्राचीन भारतीय सम्राट अशोक का काल मौर्य काल का महत्वपूर्ण स्वर्णिम चरण था। उन्होंने अपने आदर्शों और कार्यों के माध्यम से धर्म, अहिंसा, और धर्मनिरपेक्षता के मूल्यों की स्थापित किया। उनके योगदान ने भारतीय समाज में सामाजिक न्याय, सामाजिक सुधार, और पर्यावरण संरक्षण के महत्व को स्पष्ट किया। अशोक का योगदान आज भी समाज, धर्म, और दर्शन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण है। उनका संदेश सामाजिक सद्भावना, विश्व शांति, और पर्यावरण संरक्षण की ओर मुड़कर हमें समृद्धि, सुख और गौरव का अनुभव प्रदान करता है। वे एक महान शांति प्रेमी और समाज सेवक थे, और उनका योगदान हमारे समाज के मूल्यों की प्रतिष्ठा को समृद्ध एवं गौरवान्वित करता है।

'; } else { echo "Sorry! You are Blocked from seeing the Ads"; } ?>

सम्राट अशोक का काल भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण था, जिसका प्रारंभ तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में हुआ था और जिसे मौर्य काल के रूप में जाना जाता है। अशोक ने अपने साम्राज्य को अद्वितीय रूप से सुदृढ़ बनाया और विभिन्न धर्मों का समर्थन किया, धर्मनिरपेक्षता की भावना को बढ़ावा दिया, और अहिंसा के मूल्यों की प्रतिष्ठा की। उन्होंने परोपकार और सामाजिक सुधार कार्यों का प्रारंभ किया और पर्यावरण संरक्षण को भी महत्व दिया। अशोक के योगदान से भारतीय समाज में धार्मिकता, सामाजिक न्याय, सामाजिक सुधार, और पर्यावरण संरक्षण के मूल्य प्रचुर हुए और उनके योगदान का महत्व आज भी भारत एवं वैश्विक पटल में बना हुआ है। उनके कार्यों के परिणामस्वरूप, अशोक के काल को कालातीत भारत के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान मिलता है।

अशोक एक सामान्य परिचय

चक्रवर्ती मौर्य सम्राट अशोक, भारतीय इतिहास के महत्वपूर्ण और प्रसिद्ध शासकों में से एक थे। सम्राट अशोक का शासन काल 268 ईसा पूर्व से 232 ईसा के बीच था। वे सम्राट बिन्दुसार के पुत्र और चंद्रगुप्त मौर्य के पोते थे तथा मौर्य शासन के तीसरे शक्तिशाली शासक थे। अशोक को “चक्रवर्ती” (राजाओं के राजा) कहा जाता है क्योंकि वे अपने परोपकार से शासन क्षेत्र को विस्तारित करने का प्रयास करते रहे और अपने साम्राज्य को सुरक्षित बनाने का प्रयास किया।

अशोक के शासन के पहले वे एक संग्रहक, संग्रहकर्ता, और युद्ध समीक्षक थे जो अपने पिता सम्राट बिंदुसार के शासनकाल में कई युद्धों में भाग लिए थे। लेकिन उनका जीवन पूरी तरह से बदल गया जब उन्होंने उपगुप्त से श्रमण (बौद्ध भिक्षु) धर्म को अपनाया और बौद्ध धर्म का प्रचार किया।

अशोक के प्रमुख कार्यों में शान्तिप्रियता की प्रोत्साहना, धार्मिक सहिष्णुता की प्रोत्साहना, और अपने साम्राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में सुलभ शासन की बदलाव का प्रमुख स्थान है।

सम्राट अशोक के बारे में निम्नलिखित महत्वपूर्ण तथ्य हैं:

अशोक एक प्रेरणा – अशोक ने कलिंग युद्ध के बाद, बौद्ध धर्म को अपनाया और बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए अपने साम्राज्य के बाहर और अंदर यात्राएँ की। सम्राट अशोक प्रेम, सहिष्णुता, सत्य, अहिंसा एवं सात्विक जीवन प्रणाली के सच्चे समर्थक थे। इसलिए उनका नाम इतिहास में एक महान परोपकारी सम्राट के रूप में अंकित है।

धर्म और अहिंसा की प्रशंसा- अशोक ने अपने शासन के दौरान अहिंसा को महत्वपूर्ण माना और अहिंसक आचरण को बढ़ावा दिया। उन्होंने समाज में धर्मनिरपेक्षता की भावना को प्रचारित किया। उनके संपूर्ण जीवन की मूल भावना  उनके शिलालेखों से प्रदर्शित होती हैं।

अशोक के शिलालेख-

           शिलालेख              विषय
पहला शिलालेख पशुबलि की निंदा
पहला पृथक और दूसरा शिलालेख सभी मनुष्य मेरी संतान हैं। दूसरा मनुष्य एवं पशु दोनों की चिकित्सा व्यवस्था तथा सीमांत राज्यों जैसे- चोल, पाण्डय, सत्तीयपुत्त, केरलपुत्त एवं सीलोन का उल्लेख।
तीसरा शिलालेख राजकीय अधिकारियों युक्त, रज्जुक एवं प्रादेशिक को हर पाँचवे वर्ष दौरे पर जाने का आदेश।
चौथा शिलालेख भेरीघोष की जगह धम्मघोष की घोषणा।
पाँचवाँ शिलालेख धम्म महामात्रों की नियुक्ति के विषय में जानकारी (राज्याभिषेक के 13 वें वर्ष में)
छठा शिलालेख प्रजा के कार्य के लिए मुझे हर जगह सूचना दे सकते हैं।
सातवाँ शिलालेख आत्मनियंत्रण तथा मस्तिष्क की शुद्धता का उपदेश।
आठवाँ शिलालेख अशोक की तीर्थ यात्राओं का उल्लेख।
नौवां शिलालेख सच्ची भेंट एवं सच्चे शिष्टाचार का उल्लेख।
दसवां शिलालेख धम्म के पालन का उपदेश।
ग्यारहवाँ शिलालेख धम्म की व्याख्या।
बारहवाँ शिलालेख धार्मिक सहिष्णुता की नीति का उल्लेख।
तेरहवाँ शिलालेख कलिंग युद्ध, पड़ोसी राजाओं का वर्णन एवं आटविक राज्यों का उल्लेख।

 

इस प्रकार सम्राट अशोक के शिलालेखों के आधार पर विश्लेषण किया जा सकता है कि किस प्रकार अशोक ने अपने संदेशों को पत्थरों एवं स्तंभों पर लिखकर विभिन्न भागों में फैलाये, जिन्हें “अशोक के शिलालेख” कहा जाता है। इनमें उनके धर्म, सामाजिक सुधार, और युद्ध से जुड़े संदेश थे। इन संदेशों से राष्ट्र एवं जीव मात्र के लिए उनके नैतिक मूल्य एवं शिक्षाएं अभूतपूर्व हैं।

पर्यावरण संरक्षण- अशोक ने पेड़-पौधों के संरक्षण को महत्वपूर्ण स्वरूप प्रदान कर पर्यावरण संतुलन के रूप में प्रस्तुत किया और वन्यजीवों की रक्षा के लिए कदम उठाए।

अशोक के काल का महत्व- अशोक के काल को भारतीय इतिहास का महत्वपूर्ण चरण माना जाता है, जिसका योगदान भारतीय समाज में धर्म, सामाजिक सुधार, और पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में हुआ। सम्राट अशोक का योगदान भारतीय और विश्व इतिहास में महत्वपूर्ण है, और उन्होंने अपने समय के सामाजिक और धार्मिक परिपेक्ष्य में अहम बदलाव किए। प्राचीन भारत के सर्वाधिक प्रतापी शासकों में से मौर्य सम्राट अशोक का नाम स्वर्ण अक्षरों में इतिहास में दर्ज है। सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म का प्रचार करने के अलावा तत्कालीन भारत में लगभग 23 विश्वविद्यालयों की स्थापना भी की, अपने धर्म लेखों के अंकन के लिए उन्होंने ब्राम्ही, खरोष्ठी, आर्माईक आदि लिपियों का प्रयोग किया। उन्होंने अपने काल में गुहा, विहार, स्तंभलेख, शिलालेख आदि का निर्माण कराया। बौद्ध परम्परा के अनुसार उन्होंने तीन वर्ष के अंतर्गत 84,000 स्तूपों का निर्माण कराया था। सारनाथ के अशोक स्तम्भ को 26 अगस्त 1950 में राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में अपनाया गया, जो युद्ध एवं शांति की नीति को दर्शाता है। ईसा पू 272- 238 में सांची का स्तूप बनवाया जिसे वर्ष 1989 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर में शामिल किया गया। अशोक द्वारा निर्मित वास्तुकला के अनुपम धरोहरों को प्रतिवर्ष हजारों सैलानी भारत भूमि में देखने को आते हैं जिससे राजकीय आय में वृद्धि होती है। अशोक के काल को कालातीत भारत के दृष्टिकोण से निम्नांकित बिंदुओं के आधार पर विश्लेषित किया जा सकता है-

  1. मौर्य साम्राज्य का प्रबल साम्राज्य– सम्राट अशोक के समय, मौर्य साम्राज्य भारत का सबसे प्रबल साम्राज्य था। उनके पिता चंद्रगुप्त मौर्य द्वारा स्थापित साम्राज्य अपने शिखर पर था और अशोक ने इसे और भी मजबूती दी। उसका साम्राज्य पूर्व में बंगाल की खाड़ी से लगाकर पश्चिम में हिंदुकुश पर्वत के पड़े तक, उत्तर में हिमालय की दुर्गम पर्वत शृंखलाओं से लेकर दक्षिण में वर्तमान आंध्रप्रदेश और उससे भी अधिक अनेक प्रदेश इस साम्राज्य के अंतर्गत थे। राज्याभिषेक के 8 वें वर्ष (261-60 ईपू में) अशोक ने कलिंग देश वर्तमान (उड़ीसा) पर आक्रमण किया और उसे जीतकर अपने अधीन कर लिया।

       अपने 14 वें शिलालेख के 13 वें लेख में अशोक ने कलिंग विजय और उसके परिणामस्वरूप युद्धों के प्रति ग्लानि की भावना को इस प्रकार प्रगट किया है- “अष्टवर्षाभिषिक्त देवानांप्रिय प्रियदर्शी राजा ने कलिंगो का विजय किया। वहाँ से डेढ़ लाख मनुष्यों का अपहरण हुआ। वहाँ सौ सहस्त्र (एक लाख) मारे गए। उससे भी अधिक मरे। उसके पश्चात अब जीते हुए कलिंगों में देवानांप्रिय द्वारा तीव्र रूप से धर्म व्यवहार, धर्म की कामना और धर्म धर्म का उपदेश (किया जा रहा है)। कलिंगों की विजय करके देवानांप्रिय को अनुशोचन (पश्चाताप) है। जब कोई अविजित देश जीता जाता है, तब लोगों का जो वध, मरण और अपहरण होता है, वह देवानांप्रिय के लिए अवश्य वेदना का कारण होता है और साथ ही गंभीर बात भी …………..।”

इस प्रकार कलिंग युद्ध में जो नरसंहार हुआ था, उसे देखकर अशोक के हृदय में युद्धों के प्रति ग्लानि उत्पन्न हो गई थी, और उसने शस्त्र विजय के स्थान पर धम्मविजय की नीति को अपना लिया था, और उसके पश्चात उसने अनेक सामाजिक एवं नैतिक उत्थान के कार्य किए।

  1. धम्म के प्रचारक- सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचारक के रूप में अपना धर्म अपनाया और अहिंसा की भावना को अपनाया। उन्होंने अपने आदर्शों के अनुसार अपने साम्राज्य में अहिंसक आचरण को प्रोत्साहित किया, जिससे विश्व शांति और सामाजिक सद्भावना की ओर प्रेरित किया। इसके लिए अनेक धम्म आदेशों के प्रचार-प्रसार के लिए धम्म लिपियों का उपयोग किया।
अशोक द्वारा धम्म के प्रचार के लिए भेजे गए प्रचारक
        धर्म प्रचारक                क्षेत्र
1.  सोन एवं उत्तरा        सुवर्ण भूमि (बर्मा)
2.  महेंद्र एवं संघमित्रा        श्रीलंका
3.  मज्झांतिक        कश्मीर एवं गांधार
4.  महारक्षित        यवन राज्य

 

प्रमुख रूप से मगध, पाटलीपुत्र, खलतिक पर्वत, कोशाम्बी, लुम्बिनी ग्राम, कलिंग तोसली, समापा, खेपिनगल पर्वत, सुवर्णगिरि, इसल, उज्जैनी, तक्षशिला और अटवी आदि क्षेत्र अशोक के अपने राज्य थे, जिसमें घूम -घूम कर धर्म महामात्रों के द्वारा धम्म एवं अहिंसा का प्रसार-प्रचार किया।

  1. धर्मनिरपेक्षता- अशोक ने अपने साम्राज्य में धर्मनिरपेक्षता की भावना को प्रचारित किया और अपने आदर्शों को सब धर्मों के प्रति समर्थन दिया। इसका परिणाम समरसता और सहयोगी भावना के रूप में आज भी विद्यमान है, खासकर भारत के सामाजिक और राजनीतिक सद्भावना के परिप्रेक्ष्य में। मौर्य सम्राट अशोक की धर्म निरपेक्ष नीति वर्तमान में भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि वह नीति समाज में धार्मिक और सामाजिक सहिष्णुता को समर्थन करने का महत्वपूर्ण उदाहरण है और विविध धार्मिक समुदायों के बीच सद्भावना और एकता को बढ़ावा देता है।

अशोक की धर्म निरपेक्ष नीति के कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं में शामिल है-

  • धार्मिक समुदायों के साथ सहमति- अशोक ने अपने साम्राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न धर्मों के प्रति सहमति का समर्थन किया और उनका समर्थन किया। इसके परिणामस्वरूप, धर्म निरपेक्षता ने विविध धार्मिक समुदायों के बीच सामंजस्य को बढ़ावा दिया। वर्तमान में भी, धर्म निरपेक्षता समाज में सद्भावना और सामाजिक एकता के लिए महत्वपूर्ण है.
  • धार्मिक हिंसा के खिलाफ– अशोक ने अपने निरपेक्ष धर्म नीति के तहत धार्मिक हिंसा के खिलाफ संदेश पहुचाया और इसको निषेध किया। वर्तमान में भी, धार्मिक हिंसा और आपसी टकराव के खिलाफ खुले एवं सकारात्मक सोच की आवश्यकता है, और अशोक की धर्म निरपेक्षता इस मामले में महत्वपूर्ण संदेश प्रदान करती है।
  • सामाजिक न्याय- अशोक ने अपने नियमों के पालन के लिए न्याय प्रणाली की सुधार का प्रयास किया, और इसने सामाजिक न्याय को सुधारने के लिए महत्वपूर्ण बदलाव किए। वर्तमान में, सामाजिक न्याय के प्रति सचेतना बढ़ गई है, और अशोक की नीति समाज को उसकी जरूरतों के मुताबिक सुधारने के लिए महत्वपूर्ण है।
  • धर्म और राजनीति की पृथकता – अशोक ने अपने धर्म और राजनीति को अलग रखने का समर्थन किया और अपने धर्म के प्रचार के लिए राजनीतिक दबाव का अनुभव किया। इसके साथ ही, वर्तमान में भी धर्म और राजनीति को अलग रखने का महत्व समझा जाता है, ताकि धर्म राजनीतिक स्वार्थ के लिए इसका का उपयोग न हो और धार्मिक स्वतंत्रता सुरक्षित रहे।

इस प्रकार, मौर्य सम्राट अशोक की धर्म निरपेक्ष नीति वर्तमान में भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह धार्मिक समुदायों के बीच सद्भावना, सामाजिक न्याय, और धार्मिक हिंसा के खिलाफ सचेतना पैदा करता है और सामाजिक समरसता को प्रोत्साहित करता है।

  1. पर्यावरण संरक्षण– अशोक ने अपने साम्राज्य में पर्यावरण संरक्षण की महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, और वन्यजीवों और पेड़-पौधों के संरक्षण के लिए कई कदम उठाए। आज, जब पर्यावरण संरक्षण का महत्व और आवश्यकता है, अशोक की इस पहल का महत्व बना और भी ज्यादा प्रासंगिक हो जाता है। मौर्य सम्राट अशोक की पर्यावरण संरक्षण नीति वर्तमान में भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि वह नीति आज के समय में भारत और विश्व भर में पर्यावरण संरक्षण के मूल सिद्धांतों का पहला प्रमुख उदाहरण है।

अशोक की पर्यावरण संरक्षण नीति के कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं में शामिल है-

  • सहिष्णुता का प्रसार करना- अशोक ने अपने शासन के दौरान बौद्ध धर्म का प्रचार किया और धार्मिक सहिष्णुता को प्रसारित किया है। वर्तमान में, धार्मिक समुदायों के बीच पर्यावरण संरक्षण के महत्व को समझाने और इसका प्रसार करने के लिए यह एक महत्वपूर्ण उदाहरण हो सकता है।
  • वन्यजीव संरक्षण- अशोक ने जीव मात्र की अहिंसा की बात अपने राजादेशों के द्वारा प्रसारित कर वन्यजीवों की सुरक्षा के लिए कई उपायों को समर्थन दिया और वन्यजीव संरक्षण के प्रति अपना समर्पण दिखाया। इसके साथ ही, वन्यजीव संरक्षण और जैव विविधता के प्रति सचेतना बढ़ गई है और आजकल की पर्यावरण संरक्षण मुहिमों में सहमति का आदान-प्रदान किया जा रहा है।
  • वृक्षारोपण– अशोक ने वृक्षारोपण को प्रोत्साहित किया और यह वर्तमान में भी महत्वपूर्ण है। वृक्षारोपण जलवायु परिवर्तन को कम करने में मदद करता है और वनस्पति और जीवों के लिए जलवायु और पर्यावरण के साथ सामंजस्य बनाता है।
  • पर्यावरणीय शिक्षा- अशोक ने अपने संदेशों को लोगों के बीच फैलाने के लिए काई सारे माध्यमों का उपयोग किया। वर्तमान में, पर्यावरणीय शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए यह एक महत्वपूर्ण उपाय हो सकता है।
  • शांतिप्रियता की प्रचार- अशोक की नीतियों में शांतिप्रियता का महत्वपूर्ण स्थान था, और यह भारतीय समाज के अंदर अशोक के विचारधारा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है। शांतिप्रियता का पालन करने सेराष्ट्र विरोधी और आतंकवाद कम हो सकते हैं, जिससे पर्यावरण सुरक्षित रह सकता है।

इस प्रकार, मौर्य सम्राट अशोक की पर्यावरण संरक्षण नीति का वर्तमान में महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह हमें पर्यावरण के महत्व की समझते हुए इतिहास की गौरवशाली परंपराओं एवं नीतियों का अनुसरण कर पर्यावरण संरक्षण के प्रति वैश्विक चेतना विकसित कर सकते हैं।

  1. सामाजिक न्याय और सुधार– अशोक ने अपने साम्राज्य में सामाजिक न्याय के प्रति भी ध्यान दिया और उन्होंने अनेक सामाजिक सुधार कार्यों का प्रारंभ किया। उनका योगदान आज के समय में सामाजिक न्याय और सुधार के प्रति हमारे दृष्टिकोण को प्रेरित करता है। सम्राट अशोक के काल में कई महत्वपूर्ण धार्मिक, सामाजिक, और पारिस्थितिक परिवर्तन थे, जिनका उनके योगदान से भारतीय समाज में गहरा प्रभाव पड़ा और जिनका महत्व आज भी बना रहता है।

हालांकि प्रारंभ में अशोक ने भी अपने पूर्वजों की नीतियों को अपनाया, और कलिंग की विजय की। पर इस विजय के पश्चात यदि धर्म विजय की धुन उस पर सवार न हो जाती और वह अपनी सैन्य शक्ति को शिथिल न होने देता, तो निश्चय ही मगध की सैन्य शक्ति और नीति कुशलता सम्पूर्ण जंबुद्वीप (भारतवर्ष) को एकछत्र शासन में ले आने में समर्थ हो जाती।

  1. निष्कर्ष – सम्राट अशोक की भूमिका वर्तमान में युद्ध और शांति की अवधारणा में महत्वपूर्ण है। उन्होंने अपने काल में अहिंसक आचरण को प्रशंसित किया, धर्मनिरपेक्षता की भावना को बढ़ावा दिया, सामाजिक सुधार कार्यों का प्रारंभ किया, और पर्यावरण संरक्षण को महत्वपूर्ण धारणा के रूप में प्रस्तुत किया। उनके संदेश विश्व भर में विश्व शांति, सामाजिक सद्भावना, और धर्मनिरपेक्षता की ओर मोड़कर लोगों को प्रेरित करते हैं. वर्तमान परिदृश्य में, जब विश्व भर में युद्ध और विवाद बढ़ रहे हैं, अशोक के मूल्यों और संदेशों का पालन करने से युद्ध को कम किया जा सकता है और विश्व शांति की दिशा में कदम बढ़ाया जा सकता है।

आगे की राहें –

अशोक के सिद्धांतों पर विकास एवं निर्माण करने और उन्हें समकालीन चुनौतियों पर लागू करने के लिए, कई दृष्टिकोणों पर विचार किया जा सकता है:

  • अंतरधार्मिक और अंतरसामुदायिक संवाद- विभिन्न धर्मों और पृष्ठभूमि के लोगों के बीच संवाद और समझ को बढ़ावा देना। धार्मिक और सांस्कृतिक सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए अंतरधार्मिक और अंतरसामुदायिक कार्यक्रमों और चर्चाओं को प्रोत्साहित करें।
  • पर्यावरण संरक्षण- पर्यावरण संरक्षण, मजबूत प्रथाओं और संरक्षण प्रयासों पर जोर देना जारी रखें। ऐसी नीतियों और कार्यक्रमों को लागू करें जो जलवायु परिवर्तन को संबोधित करें, नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा दें और प्राकृतिक आवासों और जैव विविधता की रक्षा करें।
  • अहिंसा और संघर्ष समाधान– स्थानीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संघर्षों को सुलझाने के शांतिपूर्ण तरीकों की वकालत करना। हिंसा और युद्ध का सहारा लेने के बजाय कूटनीति, मध्यस्थता और संवाद को प्रोत्साहित करें।
  • सामाजिक न्याय- असमानताओं, भेदभाव और हाशिए पर जाने को संबोधित करके अधिक सामाजिक न्याय की दिशा में काम करें। ऐसी नीतियों और पहलों का समर्थन करें जो समाज के सभी सदस्यों के लिए अवसरों, शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल तक समान पहुंच सुनिश्चित करें।
  • शिक्षा और जागरूकता– नैतिक मूल्यों, नैतिकता और सामाजिक जिम्मेदारी पर शिक्षा को बढ़ावा देना। शैक्षिक पाठ्यक्रम में सहानुभूति, करुणा और नैतिक व्यवहार की शिक्षाएँ शामिल करें।
  • सरकारी जवाबदेही- सरकारों को उनके कार्यों और निर्णयों के लिए जवाबदेह बनाना। भ्रष्टाचार और सत्ता के दुरुपयोग को रोकने के लिए पारदर्शिता, सुशासन और जिम्मेदार नेतृत्व को बढ़ावा देना।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग- वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिए राष्ट्रों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना। जलवायु परिवर्तन से निपटने, शांति को बढ़ावा देने और मानवीय संकटों से निपटने के लिए मिलकर काम करें।
  • सामुदायिक सहभागिता- व्यक्तियों और समुदायों को समाज को लाभ पहुँचाने वाली पहलों में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करें। स्थानीय मुद्दों के समाधान के लिए स्वयंसेवा, सामुदायिक सेवा और जमीनी स्तर के प्रयासों का समर्थन करें।
  • डिजिटल युग के अनुप्रयोग– शांति, सहिष्णुता और पर्यावरण जागरूकता के संदेश फैलाने के लिए प्रौद्योगिकी और सोशल मीडिया की शक्ति का लाभ उठाएं। वैश्विक दर्शकों से जुड़ने और सकारात्मक बदलाव की वकालत करने के लिए ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म का उपयोग करें।
  • विधान और नीति कार्यान्वयन- उन नीतियों और कानूनों की वकालत करना जो करुणा, अहिंसा और पर्यावरण संरक्षण के मूल्यों को दर्शाते हैं। सुनिश्चित करें कि ये नीतियां प्रभावी ढंग से क्रियान्वित और लागू की गई हैं।

अशोक के सिद्धांतों को समकालीन समाज में शामिल करने के लिए सरकारों, संगठनों, समुदायों और व्यक्तियों के सामूहिक प्रयास की आवश्यकता है। ऐसा करके, हम अधिक समावेशी, मजबूत, सफल और शांतिपूर्ण विश्व की दिशा में काम कर सकते हैं।

 

 

 

 

 

Share with friends !

Leave a Reply

error: Content is protected !!