पानीपत के तृतीय युद्ध के परिणाम ( Result of Third Battle of Paanipat)

भूमिका-

            1707 ई.  औरंगजेब की मृत्यु के बाद से मुगलो की स्थिति अच्छी नही थी| इस समय मुगल बादशाह कठपुतली मात्र था।मुग़ल साम्राज्य का अंत (1748 – 1857) में शुरु हो गया था, जब मुगलों के ज्यादातर भू भागों पर मराठाओं का आधिपत्य हो गया था।  1739 में नादिरशाह ने भारत पर आक्रमण किया और दिल्ली को पूर्ण रूप से नष्ट कर दिया। आधुनिक अफगानिस्तान का निर्माता नादिरशाह की  मृत्यु 1747 ई. के बाद दुर्रानी साम्राज्य की स्थापना कर कंधार को राजधानी बनाया और नादिरशाह क सेनापति अहमदशाह अब्दाली ने भारत पर आक्रमण धन प्राप्ति के उद्देश्य से तथा भारत की पश्चिम हिस्सो पर अधिकार  करने के लिए  प्रथा 8 बार आक्रमण किया । प्रथम आक्रमण 1748 में हुआ जोकि असफल रहा।आगे के आक्रमणो से लाहोर मुल्तान पर अधिकार कर लिया। मराठा शक्ति दक्कन में पेशवा बालाजी बाजीराव के द्वारा निरंतर उत्तर की राजनीति में दखल देना शुरू कर दिये थे।  

                पंजाब मे दत्ता जी सिन्धिया की मृत्यु 1760 के युद्ध मे हो गई। मराठों ने विशाल सेना अब्दाली पर आक्रमण करने और बदला लेने के लिए भेजी। यह यहि पानीपत के तृतीय युद्ध का कारण बना। 

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पानीपत के तीसरे युध्द के विषय में  जे.एन.सरकार ने लिखा है   – कि महाराष्ट्र में संभवतः ही कोई ऐसा परिवार होगा जिसने कोई न कोई संबंधी न खोया हो तथा कुछ परिवारों का तो सर्वनाश ही हो गया।

पानीपत के तृतीय युद्ध के परिणाम ( Result of Third Battle of  Paanipat)

1. मराठों की शक्ति का ह्रास-

      तृतीय पानीपत के युद्ध मे मराठों की पराजय से विस्तृत मराठा साम्राज्य के भय, प्रभाव, शक्ति और प्रतिष्ठा को समाप्त कर दिया। इसमे मराठों की इतनी क्षति हुई कि मराठों के प्रत्येक घर से कोई न कोई व्यक्ति अवश्य ही मृत्यु को प्राप्त हो गया था। मराठों का देश के विभिन्न भागों पर से नियंत्रण समाप्त हो गया तथा उन पर अंग्रेजों का प्रभाव बढ़ाने लगा।मराठा सहयोग-मंडल समाप्तपानीपत के बाद मराठा सरदरा सिन्धिया, होल्कर, गायकवाड़, भोंसले अपनी-अपनी स्वतंत्रत सत्ता स्थापित करने मे लग गये। इससे मण्डल तो समाप्त हो ही गया, मराठा संगठन भी टूट गया।

 2. मुगल साम्राज्य का पतन-

       पानीपत के पश्चात दिल्ली का वास्तविक स्वामी नजीबुद्दीला बन गया था तथा शाहआलम द्वितीय जो मुगल सम्राट था, अहमदशाह की और नजीब की कृपा पर निर्भर था। इसके कारण शाहआलम मराठों और मुगलों के बीच मे घिर गया। मुगल सम्राट की ऐसी दुर्दशा कभी नही हुई जैसे इस समय।

3.अहमदशाह अब्दाली के वर्चस्व की समाप्ति-

       मराठों की पराजय अवश्य हुई थी परन्तु अहमदशाह की स्वयं की शक्ति भी इतनी घट गई कि उसके विरुद्ध अफगानों ने विद्रोह कर दिया परन्तु वह उन्हें दबा नही सका। इससे उसकी दशा और गिर गई।

 4. सिक्खों, निजाम हैदर अली का उत्थान –

       यह तीनों ही मुगलों से परेशान थे। मुगल और मराठे दोनों ही कमजोर हो चुके थे। अतः सिक्खों का पंजाब मे उत्कर्ष हुआ और उन्होंने अब्दाली द्वारा स्थापित सत्ता का विरोध किया। मराठों के शत्रु निजाम ने अपनी शक्ति और संगठन आरंभ कर दिया। उधर हैदरअली ने निजाम-मराठों के संघर्ष का लाभ उठाकर उनके मराठा प्रदेशों पर और निजाम के प्रदेशों पर अधिकार कर लिया। इससे तीनों मे संघर्ष भी बढ़ गये।

5. अंग्रेजी शक्ति का उदय-

 व्यापार की याचना से आये अंग्रेजों ने मुगल सम्राट के नवाबों की कमजोरियों का और विघटन का लाभ उठाकर नवाबों को बनाना और हटाना आरंभ कर दिया था। सन् 1761 के पश्चात मराठों मे फूट डालकर उन्हें भी सहायक प्रथा मानने के लिये विवश कर दिया। अब उन्हें भारत मे चुनौती देने वाला कोई नही रहा। इस प्रकार ब्रिटिश साम्राज्य की स्थापना भारत मे हो गई।

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