पानीपत का तीसरा युध्द,स्वरूप एवम कारण – main Cause of Third Battle of Panipat – (14 January 1761)

भूमिका  –

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  1707 ई.  औरंगजेब की मृत्यु के बाद से मुगलो की स्थिति अच्छी नही थी| 

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 इस समय मुगल बादशाह कठपुतली मात्र था।मुग़ल साम्राज्य का अंत (1748 – 1857) में शुरु हो गया था, जब मुगलों के ज्यादातर भू भागों पर मराठाओं का आधिपत्य हो गया था।  1739 में नादिरशाह ने भारत पर आक्रमण किया और दिल्ली को पूर्ण रूप से नष्ट कर दिया। आधुनिक अफगानिस्तान का निर्माता नादिरशाह की  मृत्यु 1747 ई. के बाद दुर्रानी साम्राज्य की स्थापना कर कंधार को राजधानी बनाया और नादिरशाह क सेनापति अहमदशाह अब्दाली ने भारत पर आक्रमण धन प्राप्ति के उद्देश्य से तथा भारत की पश्चिम हिस्सो पर अधिकार  करने के लिए  प्रथा 8 बार आक्रमण किया । प्रथम आक्रमण 1748 में हुआ जोकि असफल रहा।आगे के आक्रमणो से लाहोर मुल्तान पर अधिकार कर लिया। मराठा शक्ति दक्कन में पेशवा बालाजी बाजीराव के द्वारा निरंतर उत्तर की राजनीति में दखल देना शुरू कर दिये थे। 

स्वरुप –

         1752 की अहमदिया संधि के तहत मुगल साम्राज्य के वजीर सफदरजंग ने मराठो से संधि की। इस संधि से मुगल साम्राज्य के आंतरिक और बाह्य रक्षक बन गये बदले में उन्हे पंजाब ,सिंध और दोआब से चौथ ( उपज का चौथा भाग)  प्राप्त करने का अधिकार दिया गया। परंतु इस संधि को बाद्शाह ने स्वीकार नही किया।

-मल्हार राव होल्कर के सहयोग से गाजी उद्दीन इमाद उल मुल्क नामक व्यक्ति सफदरगंज को हटाकर स्वय मुगल साम्राज्य का वजीर बन गया। 

-1754ई. में वजीर ने षड़्यंत्र रच कर बाद्शाह अहमद शाह को अंधा कर कारागार में डलवा दिया। 

-दिसम्बर 1756  ई. भारत में प्रवेश किया । जनवरी 1757 ई. में दिल्ली पहुंचा । फरवरी 1757 ई. रूहेलखन्ड और ब्रज क्षेत्र को लूटा। 

-तत्पश्चात अहमदशाह अब्दाली ने आगरा और मथुरा में भी उत्पात मचाया। जाट राजा सूरजमल ने अब्दाली को आगे बढ्ने से रोक रखा ।

-अप्रैल 1757 में दिल्ली से वापस चला गया । उसने नजीबुद्दौला को मीरबख्शी , इमाउद्दौला को वजीर और आलमगीर को बादशाह के रूप में नियुक्त किया । 

-अब्दाली ने अफगानिस्तान लौटते समय अपने पुत्र तैमूर शाह (तीमिर) को पंजाब का प्रशासक नियुक्त किया। 

-मई 1757 को रघुनाथ राव दिल्ली  पहुंचा और 1758  ई को रघुनाथ राव ने सरहिंद पर अधिकार कर लिया ।

-अप्रैल 1758 ई. में लाहौर  पर अधिकार कर लिया   पत्पश्चात अब्दाली के पुत्र तैमूर शाह को भागना पड़ा। 

-पंजाब का क्षेत्र अदिना बेग नामक सरदार को 7500000 रूपये  वार्षिक के बद्ले  दे दिया गया ।

-अदीना बेग की मृत्यु के बाद  साबाजी सिंधिया ने पंजाब का क्षेत्र सम्भाला ।

-1759 ई.  के अंतिम दिनो में अहमद शाह अब्दाली ने सिंधु नदी,बोलन दर्रे  को पार किया ।

-पंजाब में नियुक्त मराठा सरदार साबाजी सिंधिया , दत्ता जी सिंधिया, तुकोजी होल्कर और त्रयम्बक राव अब्दाली को रोकने में असमर्थ रहे ।

– इसी बीच वजीर इमाद उल मुल्क ने मुगल बादशाह आलमगीर की हत्या कर उसकी लाश को यमुना में फेंक दिया  और उसके 1 पुत्र को शाहजहा तृतीय के नाम से गद्दी पर बैठा दिया ।  

– आलमगीर का एक और पुत्र जिसका नाम अली गौहर था, इलाहाबाद भाग गया और वहाँ स्वय‍‍‌ को शाह आलम नाम से बादशाह घोषित कर दिया।

-तराईन के निकट दत्ता जी सिंधिया ने अहमद शाह अब्दाली को रोकने का प्रयास किया किंतु सफल नही हो और अहमद शाह अब्दाली यमुना पार कर पूर्व की ओर (दोआब) चला गया। 

 – दिल्ली के निकट बुराड़ी घाट की छोटे से युध्द में नजीब उद दौला ने दत्ता जी सिंधिया को परास्त कर मार दिया । 

– मराठा सैनिको ने जाट के इलाके में शरण ली।

– मल्हार राव होल्कर की से सेना ने अब्दाली की सेना पर छापा मार युद्ध किया ।

– मल्हार राव होल्कर रेवाड़ी के  निकट अब्दाली की सेना से परास्त हुये । 

– दक्षिण में मराठो की तत्कालीन स्थिति – सदाशिव राव भाऊ द्वारा हैदराबाद के निजाम से उदगीर के किले को जीता गया था।

– हैदराबाद के निजाम का प्र्सिद्द तोपची इब्राहिम गार्दी मराठो के हाथ लगा ।

– सदाशिव राव भाऊ के नेतृत्व में एक सेना अहमद शाह अब्दाली का सामना करने के  लिये उत्तर  की ओर भेजा गया। 

– अगस्त 1760 ई. सदाशिव राव भाऊ ने दिल्ली पर  अधिकार कर लिया । 

पानीपत के तीसरा युध्द एवम उसके कारण – (14 January 1761)

 1. मुस्लिम शासको द्वारा अत्याचार  –             

            भारत मे कट्टर इस्लामी औरंगजेब के शासन मे धर्मान्ध अत्याचार केवल हिन्दू पर ही नही शिया मुसलमानों पर भी हुए। यह अत्याचार उत्तर भारत मे सर्वाधिक हुए। इससे भारतीयों की संघर्ष क्षमता घट गई और उन्होंने युद्ध  काल मे दिल्ली सरकार का साथ नही दिया।

 2. मराठों की साम्राज्यवादी नीति-

          दिल्ली का मुगल सम्राट निर्बल था। फिर भी उसने अपने सूबेदारों को मराठों के खिलाफ भड़काया। परिणाम स्वरूप मराठों ने दिल्ली सम्राट पर आक्रमण करके उसे और अधिक कमजोर बनाया तथा उस पर नियंत्रण स्थापित किया। मुगल सम्राट इस स्थिति को स्वीकार नही कर पाया अतः उसे अहमदशाह का आक्रमण स्वर्ण अवसर लगा।

3. अफगान शासको का अत्याचार  –

         नादिरशाह ने मुगल सम्राट पर 1739 मे आक्रमण किया था। उसने सम्राट की सैनिक, आर्थिक और राजनैतिक शक्ति को और जनता को रोंदकर रख दिया था। विचित्र बात तो यह थी कि कहीं-कहीं मुगल सूबेदार सम्राट से अधिक शक्तिशाली थे। इसी कारण मराठों ने भी सम्राट को अपने आधीन करने का प्रयत्न किया। नादिरशाह के बाद अफगानिस्तान का शासक अहमदशाह अब्दाली ने आक्रमण करके मुगल शक्ति को छिन्न-भिन्न कर दिया और उसने पंजाब पर अपना दावा प्रस्तुत किया।

4. मुगलो – रूहेलखन्ड संघर्ष –

            मुगल सम्राट की 1748 मे मृत्यु के बाद उसके बजीर और रूहेली मे संघर्ष छिड़ गया। वजीर ने मराठों की मदद से रूहेलों को पराजित कर दिया। अब रूहेलों ने अहमदशाह अब्दाली से मदद मांगी। उसी समय पंजाब के कुछ राजपूतों ने भी अहमदशाह को मराठों से लड़ने के लिए बुलाया। निजाम भी उनका साथ दे रहा था इस तरह मराठों को राजपूतों, रूहेलों और दक्षिण मे हैदराबाद से भय था उस पर अहमदशाह का आक्रमण हुआ।

 5. पंजाब एवम दोआब की समस्या –

             मराठों ने 1759-60 मे पंजाब को जीत लिया था और अहमदशाह ने पंजाब पर सर्वप्रथम आक्रमण किया। अतः मराठों और अहमदशाह मे संघर्ष आवश्यक हो गया।

 6. मुगलो – रूहेलखन्ड संघर्ष –

         मुगल सम्राट की 1748 मे मृत्यु के बाद उसके बजीर और रूहेली मे संघर्ष छिड़ गया। वजीर ने मराठों की मदद से रूहेलों को पराजित कर दिया। अब रूहेलों ने अहमदशाह अब्दाली से मदद मांगी। उसी समय पंजाब के कुछ राजपूतों ने भी अहमदशाह को मराठों से लड़ने के लिए बुलाया। निजाम भी उनका साथ दे रहा था इस तरह मराठों को राजपूतों, रूहेलों और दक्षिण मे हैदराबाद से भय था उस पर अहमदशाह का आक्रमण हुआ।

 7. सूरजमल जाट की चुनौती –

          अहमदशाह ने भरतपुर के राजा सूरजमल जाट से भेंट मांगी तो सूरजमल ने कहा कि उत्तर भारत से मराठों को भगाकर अपनी वीरता और स्वयं को शासक सिद्ध करें तो भेंट देने को तैयार है। अतः इस चुनौती ने आक्रमण के लिए अहमदशाह को ललकारा।

 8. दत्ताजी सिन्धिया की हत्या –

             पंजाब मे दत्ता जी सिन्धिया की मृत्यु 1760 के युद्ध मे हो गई। मराठों ने विशाल सेना अब्दाली पर आक्रमण करने और बदला लेने के लिए भेजी। यह यहि पानीपत के तृतीय युद्ध का कारण बना।

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