फ्रांसीसी क्रांति (1789 ई.) के कारण – Causes of French Revolution 1789
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फ्रांसीसी क्रांति (1789 ई.) के कारण -Causes of French Revolution 1789
प्रस्तावना –
1789 ई. की फ्रांसीसी क्रांति आधुनिक विश्व के इतिहास की असाधारण घटना थी। फ्रांस की कुछ विशेष परिस्थितियो के कारण क्रांति का विस्फोट फ्रांस में ही हुआ किंतु इस असाधारण घटना से यूरोप तथा संसार के अधिकांश देशो को किसी न किसी रूप से प्रभावित किया।18वी शताब्दी के अंतिम चरण में घटित यह युगांतकारी घटना कुछ ऐसे महत्वपूर्ण सिध्दांतो को कार्य रूप में परिणित करने का प्रयास था, जिनसे इस शताब्दी का प्रबुध्द फ्रेंच नागरिक अच्छी तरह परिचित था। ये सिध्दांत थे स्वतंत्रता, समानता, व्यवस्था और बंधुत्व (Liberty, Equality, Order and Fraternity )| अंत में यही सिध्दांत क्रांति का मुख्य नारा बन गया।
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फ्रांस की क्रांति ने राजनीति के क्षेत्र में दो महत्वपूर्ण परिवर्तन किए।
1. निरंकुश राजतंत्र का उसने अंत कर दिया।
2. राष्ट्रवाद को शक्तिशाली प्रेरणा दी।
1. राजनैतिक कारण –
निरंकुश शासन व्यवस्था-
राजतंत्र की निरंकुशता फ्रांसीसी क्रांति (French Revolution) का एक प्रमुख कारण था. राजा के हाथो में शासन की बागडोर एवम सम्पूर्ण थी जो गर्व से कहता था ”मै ही राज्य हूँ ” । शक्ति राजा शासन का सर्वोच्च अधिकारी होता था. वह अपनी इच्छानुसार काम करता था. वह अपने को ईश्वर का प्रतिनिधि बतलाता था. राजा के कार्यों के आलोचकों को बिना कारण बताए जेल में डाल दिया जाता था. राजा के अन्यायों और अत्याचारों से आम जनता तबाह थी. वह निरंकुश से छुटकारा पाने के लिए कोशिश करने लगी।
शासन का केेेंद्रीयकरण –
फ्रान्स में शासन का अति केन्द्रीकरण था. शासन के सभी सूत्र राजा के हाथों में थे. भाषण, लेखन और प्रकाशन पर कड़ा प्रतिबंध लगा हुआ था. राजनैतिक स्वतंत्रता का पूर्ण अभाव था. लोगों को धार्मिक स्वतंत्रता भी नहीं थी. बंदी प्रत्यक्षीकरण नियम की व्यवस्था नहीं थी. न्याय और स्वतंत्रता की इस नग्न अवहेलना के कारण लोगों का रोष धीरे-धीरे क्रांति का रूप ले रहा था.
राजा का विलासी जीवन-
राष्ट्र की सम्पूर्ण आय पर राजा का निजी अधिकार था. सम्पूर्ण आमदनी राजा-रानी और दरबारियों के भोग-विलास तथा आमोद-प्रमोद पर खर्च हुआ होता था. रानी बहुमूल्य वस्तुएँ खरीदने में अपार धन खर्च करती थी. एक ओर किसानों, श्रमिकों को भरपेट भोजन नहीं मिलता था तो दूसरी ओर सामंत, कुलीन और राजपरिवार के सदस्य विलासिता का जीवन बिताते थे.
दोषपूर्ण प्रशासनिक अव्यवस्था-
फ्रान्स का शासन बेढंगा और अव्यवस्थित था. सरकारी पदों पर नियुक्ति योग्यता के आधार पर नहीं होती थी. राजा के कृपापात्रों की नियुक्ति राज्य के उच्च पदों पर होती थी. भिन्न-भिन्न प्रान्तों में अलग-अलग कानून थे. कानून की विविधता के चलते स्वच्छ न्याय की आशा करना बेकार था.
2. सामाजिक कारण:-
चर्च की प्रधानता-
फ्रांसमें रोमन कैथोलिक चर्च की प्रधानता थी. चर्च एक स्वतंत्र संस्था के रूप में काम कर रहा था. इसका अपना अलग संगठन था, अपना न्यायालय था और धन प्राप्ति का स्रोत था. देश की भूमि का पाँचवा भाग चर्च के पास था. चर्च की वार्षिक आमदनी करीब तीस करोड़ रुपये थी. चर्च स्वयं करमुक्त था, लेकिन उसे लोगों पर कर लगाने का विशेष अधिकार प्राप्त था. चर्च की अपार संपत्ति से बड़े-बड़े पादरी भोग-विलास का जीवन बिताते थे. धर्म के कार्यों से उन्हें कोई मतलब नहीं था. वे पूर्णतया सांसारिक जीवन व्यतीत करते थे.
कुलीन वर्ग-
फ्रांस का कुलीन वर्ग सुविधायुक्त एवं सम्पन्न वर्ग था. कुलीनों को अनेक विशेषाधिकार प्राप्त थे. वे राजकीय कर से मुक्त थे. राज्य, धर्म और सेना के उच्च पदों पर कुलीनों की नियुक्ति होती थी. वे किसानों से कर वसूल करते थे. वे वर्साय के राजमहल में जमे रहते और राजा को अपने प्रभाव में बनाए रखने की पूरी कोशिश करते थे. कुलीनों के विशेषाधिकार और उत्पीड़न ने साधारण लोगों को क्रांतिकारी बनाया था.
कृषक वर्ग-
किसानों का वर्ग सबसे अधिक शोषित और पीड़ित था. उन्हें कर का बोझ उठाना पड़ता था. उन्हें राज्य, चर्च और जमींदारों को अनेक प्रकार के कर देने पड़ते थे. कृषक वर्ग अपनी दशा में सुधार लान चाहते थे और यह सुधार सिर्फ एक क्रांति द्वारा ही आ सकती थी.
मजदूर वर्ग-
मजदूरों और कारीगरों की दशा अत्यंत दयनीय थी. औद्योगिक क्रान्ति के कारण घरेलू उद्योग-धंधों का विनाश हो चुका था और मजदूर वर्ग बेरोजगार हो गए थे. देहात के मजदूर रोजगार की तलाश में पेरिस भाग रहे थे. क्रांति के समय (French Revolution) मजदूर वर्ग का एक बड़ा गिरोह तैयार हो चुका था.
मध्यम वर्ग-
माध्यम वर्ग के लोग सामजिक असमानता को समाप्त करना चाहते थे. चूँकि तत्कालीन शासन के प्रति सबसे अधिक असंतोष मध्यम वर्ग में था, इसलिए क्रांति (French Revolution) का संचालन और नेतृत्व इसी वर्ग ने किया.
3. आर्थिक कारण-.
विदेशी युद्ध और राजमहल के अपव्यय के कारण फ्रांस की आर्थिक स्थिति लचर हो गयी थी. आय से अधिक व्यय हो चुका था. खर्च पूरा करने के लिए सरकार को कर्ज लेना पड़ रहा था. कर की असंतोषजनक व्यवस्था के साथ-साथ शासकों की फिजूलखर्ची से फ्रांसकी हालत और भी ख़राब हो गई थी.
4. बौधिक जागरण-
चित्र-स्रोत-गूगल
विचारकों और दार्शनिकों ने फ्रांसकी राजनैतिक एवं सामाजिक बुराइयों की ओर लोगों का ध्यान आकृष्ट किया और तत्कालीन व्यवस्था के प्रति असंतोष, घृणा और विद्रोह की भावना को उभरा. Montesquieu, Voltaire, Jean-Jacques Rousseau के विचारों से मध्यम वर्ग सबसे अधिक प्रभावित था. Montesquieu ने समाज और शासन-व्यवस्था की प्रसंशा Power-Separation Theory का प्रतिपादन किया.
वाल्टेयर ने सामाजिक एवं धार्मिक कुप्रथाओं पर प्रहार किया. रूसो ने राजतंत्र का विरोध किया और व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर बल दिया. उसने जनता की सार्वभौमिकता के सिद्धांत (Principles of Rational and Just Civic Association) का प्रतिपादन किया. इन लेखकों ने लोगों को मानसिक रूप से क्रान्ति के लिए तैयार किया.
5. सैनिकों में असंतोष-
फ्रांस की सेना भी तत्कालीन शासन-व्यवस्था से असंतुष्ट थी. सेना में असंतोष फैलते ही शासन का पतन अवश्यम्भावी हो जाता है. सैनिकों को समय पर वेतन नहीं मिलता था. उनके खाने-पीने तथारहने की उचित व्यवस्था नहीं थी. उन्हें युद्ध के समय पुराने अस्त्र-शस्त्र दिए जाते थे. ऐसी स्थिति में सेना में रोष का उत्पन्न होना स्वाभाविक था.निरंकुश शासन का अंत कर प्रजातंत्रात्मक शासन-प्रणाली की नींव डाली गई. प्रशासन के साथ-साथ सामजिक, धार्मिक एवं आर्थिक जीवन में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए. फ्रांस की क्रांति (French Revolution) ने निरंकुश शासन का अंत कर लोकप्रिय संप्रभुता के सिद्धांत को प्रतिपादित किया. क्रांति के पूर्व फ्रांसऔर अन्य यूरोपीय देशों के शासक निरंकुश थे. उनपर किसी प्रकार का वैधानिक अंकुश नहीं था. क्रांति ने राजा के विशेषाधिकारों और दैवी अधिकार सिद्धांत पर आघात किया|
इस क्रांति के फलस्वरूप सामंती प्रथा (Feudal System) का अंत हो गया. कुलीनों के विदेषाधिकार समाप्त कर दिए गए. किसानों को सामंती कर से मुक्त कर दिया गया. कुलीनों और पादरियों के विशेषाधिकार समाप्त कर दिए गये. लोगों को भाषण-लेखन तथा विचार-अभीव्यक्ति का अधिकार दिया गया. फ्रांस की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए कर-प्रणाली (tax system) में सुधार लाया गया. कार्यपालिका, न्यायपालिका और व्यवस्थापिका को एक-दूसरे से पृथक् कर दिया गया. अब राजा को संसद के परामर्श से काम करना पड़ता था. न्याय को सुलभ बनाने के लिए न्यायालय का पुनर्गठन किया गया. सरकार के द्वारा सार्वजनिक शिक्षा की व्यवस्था की गई.
फ्रांसमें एक एक प्रकार की शासन-व्यवस्था स्थापित की गई, एक प्रकार के आर्थिक नियम बने और नाप-तौल की नयी व्यवस्था चालू की गई. लोगों को धार्मिक स्वतंत्रता मिली. उन्हें किसी भी धर्म के पालन और प्रचार का अधिकार मिला. पादरियों को संविधान के प्रति वफादारी की शपथ लेनी पड़ती थी. French Revolution ने लोगों को विश्वास दिलाया कि राजा एक अनुबंध के अंतर्गत प्रजा के प्रति उत्तरदायी है. यदि राजा अनुबंध को भंग करता है तो प्रजा का अधिकार है कि वह राजा को पदच्युत कर दे. यूरोप के अनेक देशों में निरंकुश राजतंत्र को समाप्त कर प्रजातंत्र की स्थापना की गयी।
तात्कालिक कारण-
लुई 16वें के काल तक आते-आते फ्रांस की वित्तीय व्यवस्था ऋणों में डुब चुकी थीं। अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम ने फ्रांस के दिवालिएपन पर मुहर लगा दी। अतः आर्थिक दुरावस्था को दूर करने के क्रम में तुर्गों, नेकर, कोलोन जैसे अर्थशास्त्रियों की मदद ली। कोलोन ने विशेषाधिकार प्राप्त कुलीन वर्ग पर कर लगाने का सुझाव दिया जिसे कुलीनों ने अस्वीकार कर दिया। अंततः स्टेस्ट्स जनरल की बैठक बुलाई गई। यह बैठक 1789 में 175 वर्ष बाद हो रही थी। स्टेट्स जनरल की बैठक का समाचार सुनकर सभी वर्ग उत्साहित थे। कुलीनाें को उम्मीद थी कि इस बैठक में वे उन विशेषाधिकारों को प्राप्त कर सकेंगे जो लुई 14वां के समय उनसे छिन लिए गए थे। मध्यवर्ग के लोगों का मानना था कि वे अपने पक्ष में प्रगतिशील नीतियों का निर्धारण करवा सकेंगे। किसानों को आशा थी कि वह सामंती विशेषाधिकारो के विरूद्ध आवाज उठाकर अपने अधिकारों को सुरक्षित कर उनके शोषण चक्र से मुक्त हो सकेंगे। इस तरह फ्रांसीसी राजतंत्र का समर्थन करने के लिए फ्रांसीसी जनसंख्या का कोई महत्वपूर्ण भाग तैयार नहीं था।
चित्र-स्रोत- गूगल
एस्टेट्स जनरल के अधिवेशन में मताधिकार पद्धति के मुद्दे पर तृतीय स्टेट (III Estate) एवं अन्य स्टेट के बीच विवाद हो गया। मतदान के बारे में कहा गया कि प्रत्येक स्टेट का एक ही मत माना जाएगा। इस प्रकार विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग का दो तथा जनसाधारण का एक ही मत होता है। (विशेषाधिकार वर्ग में प्रथम स्टेट और द्वितीय स्टेट के पादरी और कुलीन वर्ग आते हैं।) जनसाधारण के प्रतिनिधियों ने अर्थात् ‘तृतीय स्टेट’ ने इस मतदान प्रणाली का विरोध किया क्योंकि इससे वे बहुत में होते हुए भी अल्पमत में आ जाते। तृतीय स्टेट यह चाहता था कि तीनों श्रेणियों के प्रतिनिधि एक साथ बैठकर बहुमत से निर्णय ले लेकिन पादरी एवं कुलीन वर्ग अलग-अलग बैठक चाहते थे। अतः तृतीय स्टेट ने स्टेट्स जनरल की बैठक का बहिष्कार कर अपने को समस्त राष्ट्र का प्रतिनिधि मानते हुए राष्ट्रीय सभा के रूप में घोषित कर दिया और पास के टेनिस कोर्ट में अपनी सभा बुलाई।
20 जून 1789 को राष्ट्रीय सभा ने यह घोषणा की कि ““हम कभी अलग नहीं होंगे और जब तक संविधान नहीं बन जाता तब तक साथ में बने रहेंगे।”” यह एक क्रांतिकारी घटना थी। अंततः 27 जून को लुई 16वें ने तीनों वर्गों के प्रतिनिधियों की संयुक्त बैठक की अनुमति दे दी। यह जन साधारण की विजय थी। यह राजा तथा विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग की पराजय का प्रथम दस्तावेज़ था। इस प्रकार स्टेट्स जनरल राष्ट्रीय सभा (National assembly) बन गई और उसे राजा की मान्यता मिल गई और वह वैधानिक हो गई। सभा ने 9 जुलाई 1789 को स्वयं को संविधान सभा (Constituent Assembly) घोषित करके देश के संविधान का निर्माण करना अपना सर्वप्रमुख लक्ष्य बनाया। इसी समय लुई 16वें ने अर्थमंत्री नेकर को बर्खास्त कर दिया जिसे जनता अपना समर्थक मानती थी और इसे क्रांति को कुचलने का प्रयास समझा गया। उसी समय यह खबर फैल गई कि बास्तील के क़िले में राजा ने शस्त्रों का भंडार जमा कर रखा है। अतः 14 जुलाई 1789 को पेरिस की भीड़ ने बास्तील के क़िले पर पर हमला कर दरवाजा तोड़ दिया और कैदियों को मुक्त कर दिया। बास्तील का पतन एक युगांतकारी घटना थी जो निरंकुशता का पतन एवं जनता की विजय का प्रतीक थी। वास्तव में यह क्रांति का उद्घोष था और इसीलिए फ्रांस में 14 जुलाई को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता है।