भारत के प्रमुख मेले

भारत के मेले

परिचय – मेला लोगों की एक अस्थायी सभा है जो विभिन्न धार्मिक, मनोरंजन और आर्थिक गतिविधियाँ का केंद्र हो सकती हैं। भारत में अधिकांश मेले दशहरा, दिवाली, ईद, गणेश चतुर्थी जैसे बड़े त्यौहारों के हिस्से के रूप में मनाए जाते हैं। वर्तमान दौर में, धार्मिक और सांस्कृतिक मेलों के अलावा व्यापारिक मेलों का महत्व भी बढ़ता जा रहा जैसे राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित होने वाली वाहन प्रदर्शनियाँ (auto expo) और पुस्तक मेले। विभिन्न प्रकार की धार्मिक, मनोरंजनात्मक या वाणिज्य गतिविधियों के लिए लोगों के अस्थायी मिलन या उनके एक स्थान पर इकट्ठा होने को मेला कहते हैं। भारत के विभिन्न भागों में विभिन्न प्रकार के मेले आयोजित किये जाते हैं। उनमें से कुछ की चर्चा नीचे की गयी है:

भारत के प्रमुख मेले-

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कुम्भ मेला-

  • कुम्भ मेला विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक सम्मेलन है।
  • प्रतिदिन लाखों लोग पवित्र नदी में डुबकी लगाने आते हैं। यह मेला (सम्मेलन) चार पवित्र हिंदू तीर्थस्थलों-प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक-त्र्यम्बक और उज्जैन में बारी-बारी से आयोजित होता है।
  • हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार ‘समुद्र मंथन’ अर्थात महासागर को मथने के दौरान एक ‘कुम्भ’ (बर्तन) में अमृत उत्पन्न हुआ था।
  • देवों और असुरों के संग्राम में, विष्णु द्वारा कुम्भ को ले जाते समय अमृत की कुछ बूंदें पृथ्वी पर छलक गयीं।
  • वे यही चार स्थान थे, जहाँ अब कुम्भ के मेलों का आयोजन होता है।
  • यह मेला 12 साल के समय अंतराल के बाद दिये गये स्थान पर आयोजित किया जाता है।
  • मेले की सटीक तिथियाँ सूर्य, चन्द्र और वृहस्पति ग्रहों की स्थिति के अनुसार निर्धारित की जाती हैं।
  • नासिक और उज्जैन में यह मेला तब होता है, जब ग्रह, सिंह राशि में स्थित होता है, और इसे सिंहस्थ कुम्भ कहा जाता है।
  • हरिद्वार और प्रयागराज में अर्ध-कुम्भ मेला प्रत्येक छठे वर्ष में होता है।
  • 1915 के कुंभ मेले में अखिल भारतीय हिंदू सभा की स्थापना हुई थी (बाद में हिंदू महासभा बनी)।

स्थान जहाँ कुम्भ मेला होता हैः

        स्थान का नाम         नदी का नाम
हरिद्वार (उत्तराखंड) गंगा
प्रयागराज (उत्तरप्रदेश) गंगा, यमुना और पौराणिक सरस्वती नदी के संगम पर
उज्जैन (मध्यप्रदेश) क्षिप्रा
नासिक (महाराष्ट्र) गोदावरी

2017 में, यूनेस्को द्वारा, कुंभ मेले को अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के रूप में घोषित किया गया।

सोनपुर मेला-

  • यह एशिया के सबसे बड़े मवेशी मेलों में से एक है। यह मेला बिहार के सोनपुर में गंगा और गंडक नदियों के संगम पर आयोजित होता है।
  • यह प्रायः नवंबर महीने में कार्तिक पूर्णिमा (जिसे हिंदुओं द्वारा बहुत शुभ माना जाता है) पर आयोजित किया जाता है।
  • केवल यही एकमात्र स्थान है, जहाँ बड़ी संख्या में हाथियों की बिक्री होती है और पौराणिक कथाओं के अनुसार चन्द्रगुप्त मौर्य यहीं से हाथी और घोड़े खरीदते थे।

चित्र विचित्र मेला-

  • यह गुजरात का सबसे बड़ा जनजातीय मेला है, जो मुख्यतः ‘गरासियाँ’ और ‘भील’ जनजातियों द्वारा मनाया जाता है।
  • इस जनजाति के लोग अपना पारम्परिक परिधान पहनते हैं और अपनी स्थानीय जनजातीय संस्कृति का प्रदर्शन करते हैं।
  • होली के पश्चात ‘अमावस्या’ को जनजातीय महिलाएँ अपने दिवगंत प्रियजनों का शोक मनाने के लिए नदी पर जाती हैं।
  • अगले दिन से उत्सव प्रारम्भ हो जाता है, जिस में जीवंत नृत्य प्रस्तुतियाँ, सर्वश्रेष्ठ हस्तशिल्प और उत्तम चाँदी के गहने प्रतिवर्ष पर्यटकों को आकर्षित करते हैं।

शामलाजी मेला

  • इसे गुजरात के जनजातीय समुदाय द्वारा भगवान शामलाजी, ‘दिव्य साँवला’, जिन्हें कृष्ण या विष्णु का अवतार माना जाता है को श्रद्धा समर्पित करने हेतु मनाया जाता है।
  • भक्तजन बड़ी संख्या में देवता की पूजा करने के लिए और मेश्वो नदी में स्नान करने आते हैं।
  • ‘भीलों’ को शामलाजी की शक्तियों में बहुत विश्वास होता है, जिसे वे स्नेह से ‘कालियो देव’ भी कहते हैं।
  • यह नवम्बर में लगभग तीन सप्ताह तक चलता है, जिसमें कार्तिक पूर्णिमा मेले का सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण दिन होता है।

पुष्कर मेला-

  • पुष्कर मेला ‘कार्तिक पूर्णिमा’ से प्रारम्भ होने वाला पुष्कर, राजस्थान का वार्षिक मेला है।
  • यह लगभग एक सप्ताह तक चलता है। यह ऊँटों और मवेशियों के विश्व के सबसे बड़े मेलों में से एक है।
  • यही वह समय है, जब राजस्थानी किसान अपने मवेशी खरीदते और बेचते हैं, परन्तु अधिकांश व्यापार मेले के दिनों से पहले ही पूरा हो जाता है।
  • तब उत्सव की वास्तविक गतिविधियाँ प्रारम्भ होती हैं, जैसे ऊँट दौड़, मूँछों की प्रतियोगिता, पगड़ी बाँधने की प्रतियोगिता, नृत्य और ऊँट-सवारी आदि की प्रतियोगिताएँ इसका प्रमुख आकर्षण हैं।

मरुस्थल पर्व-

  • सामान्यतः फरवरी के महीने में जैसलमेर में यह तीन दिवसीय असाधारण पर्व होता है।
  • इस पर्व में राजस्थान की जीवंत संस्कृति प्रदर्शित की जाती है। पर्यटकों के लिए यह स्थानीय झलक प्रस्तुत करता है और राजस्थानी संस्कृति के विभिन्न पहलुओं को प्रदर्शित करता है।
  • राजस्थान की सुनहरी रेत के बीच पर्यटक रंगारंग लोक नृत्यों, रेत के टीलों की यात्रा, पगड़ी बाँधने की प्रतियोगिता, ऊँट की सवारी आदि का आनन्द उठा सकते हैं।

कोलायत मेला (कपिल मुनि मेला)-

  • कोलायत मेला राजस्थान के बीकानेर में आयोजित किया जाता है।
  • कार्तिक पूर्णिमा के दिन लोग अपने सभी पापों से मुक्त होने के लिए पवित्र कोलायत झील में स्नान करते हैं।
  • इस मेले का नाम महान ऋषि कपिल मुनि के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने मानवता की भलाई के लिए कठिन तप किया था।
  • एक बहुत बड़े पशु मेले का आयोजन भी किया जाता है।

सूरजकुंड शिल्प मेला-

  • यह हरियाणा में फरीदाबाद के निकट सूरजकुंड में फरवरी में आयोजित एक वार्षिक अंतर्राष्ट्रीय शिल्प मेला है।
  • यह क्षेत्रीय शिल्प के साथ अंतरराष्ट्रीय शिल्प और सांस्कृतिक विरासत को भी प्रस्तुत करता है। भारत के सभी भागों से पारम्परिक शिल्पकार इस उत्सव में भाग लेते हैं।
  • मिट्टी के बर्तनों, बुनाई, मूर्तिकला, कढ़ाई, पेपर मैश, बाँस और बेंत शिल्प के साथ धातु और लकड़ी का फर्नीचर आदि आकर्षित करते हैं।

गंगासागर मेला-

  • इसे जनवरी-फरवरी के महीने में पश्चिम बंगाल में हुगली नदी (सागर द्वीप का दक्षिणी छोर) के मुहाने पर आयोजित किया जाता है।
  • मकर सक्रांति के दिन गंगा में पवित्र डुबकी को हिंदुओं के द्वारा बहुत शुभ माना जाता है। लाखों की संख्या में तीर्थयात्री इस स्थान पर जुटते हैं।
  • इस मेले में नागा साधुओं की उपस्थिति इस मेले को एक विशिष्ट पहचान प्रदान करती है।

गोवा कार्निवाल-

  • पुर्तगालियों ने भारत में गोवा कार्निवल की शुरूआत की थी।
  • यह लेंट (Lent), जो संयम और आध्यात्मिकता की अवधि होती है, के आरंभ से 40 दिन पहले प्रारम्भ होता है, इसमें दावतें होती हैं और आनंद मनाया जाता है।
  • लोग मुखौटा पहन कर गलियों में पार्टी करने के लिए जुटते हैं।
  • इसमें गोवा की समृद्ध विरासत और संस्कृति का प्रदर्शन होता है और इसमें विशिष्ट पुर्तगाली प्रभाव होता है।

जयदेव केंदुली मेला-

  • जयदेव केंदुली पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले का एक गाँव है।
  • इसे कवि जयदेव (राजा लक्ष्मण सेन के दरबारी कवि का संभावित जन्मस्थान माना जाता है, जिन्होंने संस्कृत में गीत गोविंद की रचना की थी।
  • मकर संक्रांति के अवसर पर जयदेव की स्मृति में मेले का आयोजन किया जाता है।

चिल्लई कलाँ-

  • यह कश्मीर में कठोर सर्वियों की 40 दिनों की अवधि (21 दिसंबर से 29 जनवरी तक हर साल) को संदर्भित करता है।
  • चिल्लई कलाँ के बाद 20 दिन का चिल्लई खुर्द और 10 दिन का चिल्लई बच्चा होता है। चिल्लई कलाँ को शानदार हरीसा (बंद बर्तन में धीमे-धीमें पकाया गया गर्म मांस) के साथ मनाया जाता है।
  • ‘चिल्लई कलाँ’ के पहले दिन को ‘विश्व फेरन दिवस’ के रूप में जाना जाता है, पारंपरिक फेरन (पुरुषों और महिलाओं के लिए लंबे ऊनी गाउन) का उपयोग ठंड से बचने के लिए किया जाता है।

महत्व-

मेले और त्यौहार केवल धार्मिक या पौराणिक घटनाओं का उत्सव मनाने तक ही सीमित नहीं हैं. बल्कि इससे कहीं अधिक हैं। आधुनिक दौर में यह जीवन के प्रत्येक पहलू को प्रभावित करते हँ जैसे कि-

आर्थिक महत्व:- कोई भी मेला या त्यौहार आर्थिक गतिविधियों का केंद्र होता है और धन और अन्य संसाधनों के प्रवाह का चक्र बनाता है जो बडे पैमाने पर व्यक्तिगत, समाजिक और राष्ट्रीय स्तर पर समृद्धि का कारक बनते है। मेलों में स्थानीय स्तर पर निर्मित अस्तुओं, शिल्पों, कलाओं, खाद्य व्यंजन्नों आदि के क्रय-विक्रय से छोटे व्यापारियों, शिल्पकारों, होटल एवं परिवहन वाहनों के संबालकों आदि को बढ़ावा मिलता है। यह स्थानीय अर्थव्यवस्था, और समाज के कमजोर वर्गों और हाशिए पर पड़े लोगों को आर्थिक अवसर प्रदान कर अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करते है।

सांस्कृतिक महत्वः मेले और त्यौहार भारतीय संस्कृति का प्रतिबिंब है जो भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों को प्रदर्शित करते है। इसके अलावा, आधुनिकरण और पाश्चात्यीकरण के इस दौर में बहनकर नृत्य यह उत्सव हमारी नयी पीढ़ी कोअपनी संस्कृति से रूबरू होने का अवसर प्रदान करते और उसको संरक्षित करने में सहयोग करते है।

धार्मिक महत्वः– लगभग हर मेले या त्यौहार की कुछ धार्मिक पृष्ठभूमि होती है और उनके माध्यम से हम उस धर्म विशेष के मूल्यों, विचारों और दर्शन से परिचित होते हैं। अलावा, मेले और त्यौहारों  में विभिन्न धर्मों, जातियों, क्षेत्रों के लोगों एक को समागम होता है जो अपनी सामाजिक संकीर्णताओं को त्यागकर को साझा करने का अवसर प्राप्त करते हैं। परिणामस्वरूप, लोगों में एक दूसरे के ओर करीब आते हैं और अपने विचारों और प्रथाओं सहिष्णुता बढ़ती है और देश का सामाजिक ताना-बानाओर मजबूत होताहै।

राजनीतिक महत्वः- यह राजनीतिक व्यवस्था को अपने नागरिकों को जोड़ने और कठिन समय के दौरान अपनेपन की भावना लाने में मदद करता है। उदाहरणतया – कोविड-19 के दौरान जब लोग अपने घरों में बंद थे सरकारों ने जीवन में संक्रिय बने रहने के लिए मेलों और त्यौहारों की मदद ली (जिसमे ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों शामिल है) थी।

इसके अलावा, सबसे बड़ा राजनीतिक महत्व यह है कि यह विदेशी राष्ट्रों के साथ बेहतर संबंध बनाने में मदद करते हैं, जैसे: –

  1. बौद्ध मेले और त्यौहार जापान, दक्षिण कोरिया, श्रीलंका, नेपाल और दक्षिणपूर्व एशिया के अन्य देशों के साथ जुड़ने में मदद करते हैं।
  2. इस्लामी त्यौहार दुनिया भर के इस्लामी राष्ट्रों के साथ समारोह साझा करने में मदद करते हैं।
  3. इसके अलावा, वैश्विक मंच पर भारतीय मेलों और त्यौहारोंको मान्यता नागरिकों को गर्व की भावना से भर देती है जैसे कि यूनेस्को की विश्व विरासत समिति द्वारा कुंभ मेला, और संयुक्त राष्ट्र द्वारा दिवाली आदि को मान्यता।

पर्यावरणीय महत्वः– भारतीय संस्कृति के समृद्ध प्राकृतिक मूल्यों के कारण अधिकांश मेले और त्यौहार पर्यावरण और प्रकृति से किसी न किसी तरह से जुड़े हुए हैं जो पर्यावरण को बेहतर बनाने में मदद करते हैं। कुछ त्यौहारों में, पेड़ और प्राकृतिक वातावरण को मुख्य देवताओं के बराबर महत्व प्राप्त है और उनकी पूजा की जाती है।

पर्यटन महोत्सवः – पर्यटन महोत्सव दुनिया भर में पर्यटन क्षेत्र के लोगों के सबसे तेजी से उभरता हुआ सेक्टर है, विशेष रूप से भारत में, – त्यागकर । जो समृद्ध संस्कृति, और मेलों और त्यौहारों की विविधता के लिए जाना जाता है। इस पर्यटन में, यात्रा का मुख्य उद्देश्य देश के विभिन्न भागों में आयोजित होने वाले त्यौहारों यामेले में भाग लेना होता है। उदाहरण के लिएः ख राजस्थान में पुष्कर मेला, मथुरा मेंलठ्ठ मार होली, अयोध्या में दीपमहोत्सव आदि।

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