मध्यकालीन भारत के पुरातात्विक स्रोत एवम विदेशी यात्रा विवरण # Medieval Archaeological source and The facts of Foreign Travelers

भूमिका – 

              प्राचीन भारतीय इतिहास लेखन एवम अध्ययन के स्रोतो  की तुलना में मध्यकालीन भारतीय इतिहास लेखन से सम्बध्द इतिहासकारो ने राजनीतिक घट्नाओ का विस्तारपूर्वक विवरण दिया है। मध्यकालीन भारतीय इतिहास की शुरुआत लगभग 7-8वी शता. से आरम्भ होती है लेकिन अध्ययन सुविधा की दृष्टिकोण से इतिहासकारो ने इसे 1206 ई. से 1526 ई. तक के काल को दिल्ली सल्तनत काल तथा 1526 ई. के बाद 18वी शता. के इतिहास को मुगल काल के अन्तर्गत रखकर अध्ययन करते हैं। प्राचीन भारत के इतिहास के विषय में वैज्ञानिक तथा क्रमबध्द सामग्री का चयन करना इतिहासकारो के लिए एक समस्या रही है,इसका प्रमुख कारण प्रामाणिक प्राचीन एतिहासिक ग्रंथो का अभाव है।  सल्तनत काल एवम मुगल कालीन इतिहास की जानकारी का महत्वपूर्ण स्रोत पुरातात्विक साधन हैं। इस काल में स्थापत्य ,कला, चित्रकला तथा संगीत कला का परचम विकास हुआ । इस काल में अनेक किले ,स्मारक, मकबरे आदि का निर्माण किया गया । 

पुरातात्विक स्रोत एवम विदेशी यात्रा विवरण से भी इस काल के इतिहास की जानकारी प्राप्त होती है।अध्ययन की सुविधा के दृष्टिकोण से मध्यकालीन भारतीय इतिहास  के पुरातात्विक स्रोतो को निम्नलिखित भागो में विभक्त किया जा सकता है-

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सल्तनत कालीन पुरातात्विक स्रोत –

अभिलेख

1. स्मारक 

2.चित्रकला 

3.अभिलेख 

4. ताम्रपत्र 

5. मूर्तिकला

6. मुद्रा /सिक्के

7.अवशेष

          सल्तनत काल के इतिहास की जानकारी पुरातात्विक साधनो से भी होती है। इस काल में स्थापत्य  के अतिरिक्त अन्य किसी कला के विकास का हमें कोई प्रमाण नही मिलता।  तुर्को ने भारत में जिन ईमारतो का निर्माण कराया उन पर देशी कला परम्पराओ का प्रभाव था इस काल की शैली भारतीय तथा विदेशी शैलियो का मिश्रण थी । प्रारम्भिक तुर्क विजेताओ ने हिंदू तथा जैन मंदिरो की सामग्री से मस्जिदो तथा महलो का निर्माण कराया है जिनमें प्रमुख रूप से निम्न हैं-

कुतुबुद्दीन एबक के द्वारा-

 -कुतुब -उल – इस्लाम नामक मस्जिद का निर्माण कराया गया।

– अढाई दिन का झोपड़ा – इसका निर्माण एक संस्कृत विद्यालय की
इमारत को तोड़कर कराया गया।

– कुतुबमीनार – यह तुर्की स्थापत्य का प्रसिध्द नमूना है। इसे पूरा करने का कार्य इल्तुतमिश ने किया।

कुतुब मीनार

बल्बन के द्वारा बनाये स्मारक- 

– लालमहल 

अलाउद्दीन खिलजी के द्वारा निर्मित स्मारक- 

-जमैया खाना मस्जिद 

– अलाई दरवाजा

तुगलक काल के स्मारक-

तुगलक शाह का मकबरा

 -तुगलक शाह का मकबरा 

– तुगलकाबाद का नगर

 -कोटला फिरोज  शाह आदि।

             इस काल की इमारते शानदार नही है,इन इमारतो को देखकर ऐसा लगता है कि उनको  इमारतो के बनाने में विशेष रुचि नही थी अथवा उनके पास धन का अभाव था। इस काल में स्थानीय स्थापत्य कला का भी विकास हुआ । स्थानीय स्तर पर अनेक मस्जिदो , मकबरो, महलो तथा मंदिरो का निर्माण कराया गया। इन इमारतो में भी कलात्मकता का अभाव था। 

इसके अलावा भवन,मूर्ति और भित्ति चित्र आदि स्मारको के अंतर्गत आते हैं। तत्कालिन धर्म तथा कला  को समझने में इनसे सहयोग प्राप्त होता है। मानव निर्मित वस्तुओ ,जैसे – पाषाण अस्त्र और मृदभांड द्वारा प्रागैतिहासिक समाज का अध्ययन किया जा सकता है। 

   मध्यकालीन मंदिर  पुरातात्विक स्रोत-

खजुराहो का मंदिर

– खजुराहो
 – कोणार्क

 – दिलवाड़ा

अभिलेख- 

अभिलेखो के द्वारा ही हमें किसी शासक के राजत्व ,प्रशासन, धार्मिक विचार, जन- कल्याण के आदर्श के बारे में ज्ञात होता है जिन्होने भारतीय संस्कृति को विश्वव्यापी स्वरुप प्रदान किया। 

सल्तनत कालीन सिक्के-

मुहम्म्दबिन तुगलक के द्वारा जारी सिक्के

       भारत के विभिन्न प्रदेशो में सह्र्स्त्रो मुद्राए प्राप्त  हुई हैं, जो विभिन्न धातुओ जैसे सोना,चांदी,ताम्बा था मिश्र धातु की बनी होती थी। अभिलेखो की तरह मुद्राए स्थाई, अपरिवर्तनीय और प्रामाणिक स्रोत हैं।अनेक राजाओ का अस्तित्व केवल मुद्राओ से ही ज्ञात होता है।मुद्राओ की धातु , उसकी शुध्दता अशुध्दता के आधार पर आर्थिक स्थिति का ज्ञान होता है । उसी प्रकार मुद्राओ पर उत्कीर्ण धार्मिक चिन्ह और प्र्कीर्णो से राजा की धार्मिक स्थिति का पता चलता है ।  

– अला-उद-दीन के सिक्के इसमे प्रमुख हैं।

मुगल कालीन पुरातात्विक स्रोत- 

अकबर द्वारा जारी किये गए सिक्के –

अकबर द्वारा चलाए गए सीता- राम के सिक्के

  मुगल कालीन इतिहास की जानकारी का महत्वपूर्ण स्रोत है पुरात्तात्विक साधन ।मुगल काल में सबसे अधिक उन्नति स्थापत्य कला की हुई,इस काल में किले, स्मारक, महल, मकबरे आदि का निर्माण किया गया। जिनका यश देश- देशांतर तक फैला हुआ है।मुगल कालीन स्थापत्य कला पर देशी तथा विदेशी दोनो ही शैलियो का प्र्योग दिखाई देता है।जिनमे मुख्यत: निम्न हैं-

– शेरशाह का मकबरा

– हमायू का मकबरा

– आगरा का लाल किला

– फतेहपुर सीकरी की इमारते

– एत्माद्दौला का मकबरा

– ताजमहल

– दिल्ली का लाल किला

– दीवान – ए- आम

– दीवान-ए-खास

– शीश महल

– मोती मस्जिद

– खासमहल

– जामा मस्जिद आदि

         शाह जहाँ के काल में इस कला का सर्वाधिक विकास हुआ। इसी कारण उसके काल को स्वर्ण युग कहा जाता है। जहाँगीर के काल में चित्रकला का सर्वाधिक विकास हुआ।

मुगल चित्र कला

औरन्गजेब के काल में अनेक मंदिरो को ध्वस्त्त कर मस्जिदो का निर्माण कराया गया। जिससे उसकी धार्मिक कट्टरता सिध्द होती है ।

मध्यकालीन  भारतीय इतिहास के प्रमुख विदेशी वृतांत 

– –  -11 वीं शताब्दी में, अल्बेरुनी, एक ईरानी विद्वान, जो महमूद गजनी के साथ भारत पर आक्रमण के दौरान अपने तहकीक हिंद में भारतीय समाज का लेखा-जोखा देता था। चंद बरदाई ने अपने महाकाव्य में पृथ्वी राज चौहान के कारनामों को सुनाया। उस सदी में कल्हण ने कश्मीर का इतिहास लिखा था।

 —-13 वीं शताब्दी में, गजनी के एक प्रवासी हसन निजामी ने कुतुब-उद-दीन ऐबक के बारे में जानकारी दी और मार्को पोलो ने दक्षिण भारत का एक खाता प्रदान किया।

 —–14 वीं शताब्दी में, इब्न बतूता, एक मूरिश यात्री ने मुहम्मद तुगलक के बारे में लिखा, ख्वाजा अबू मलिक ने दिल्ली सुल्तांस के इतिहास का वर्णन किया, और ज़िया-उद-बरनी ने बलबन से फ़िज़ा तुगलक के इतिहास को शामिल किया।

 ——15 वीं शताब्दी में अब्दुल रज्जाक ने विजयनगर राजाओं के समय के बारे में बताया।

 ——-16 वीं शताब्दी में बाबर के बाबर नामा, और अबुल फजल के ऐन-आई- अकबरी और अकबर नामा ने इन दोनों सम्राटों के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान की। 17 वीं शताब्दी में, जहाँगीर ने खुद तुज़ी को लिखा था – जहाँगीरी ने उस समय बहुत प्रकाश डाला।

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