दिल्ली सल्तनत की स्थापना एवम कुतुबुद्दीन एबक # उपलब्धिया# गुलाम वंश- Establishment and Consolidation of Delhi sultanate -Qutubuddin Aibak- slave Dynasty

भूमिका- 

        1192 ई. में तराईन के द्वितीय युध्द के बाद उत्तर भारत में तुर्क शासन की स्थापना आरम्भ हुई । मुहम्म्द गौरी ने इस युध्द में राजपूत राजा पृथ्वीराज चौहान को पराजित किया था। यह युध्द भारत के इतिहास में  निर्णायक सिध्द हुआ और इस युध्द ने तुर्को की उत्तर भारत विजय का मार्ग प्रशस्त कर दिया। राजपूत शक्ति पूर्णत: नष्ट हो गई। हासी, कुहराम, सरसवती मुहम्म्द गौरी ने अधिकार कर उन्हे तुर्क सैनिक केंद्र बना दिया। परंतु जीते हुए राज्य के प्रशासन की बागडोर वह अपने हाथो में नही लेना चाहता था। 

         चूंकि प्राचीन काल से ही एशिया में दास प्रथा प्रचलन में था, अत: मुहम्म्द गोरी के कोई संतान न होने के कारण उसने  अपने अत्यंत योग्य व विश्वसनीय सेनापति गुलाम कुतुबुद्दीन एबक को दिल्ली के पास इंद्रप्रस्थ में सेनापति  के पद पर आसीन कर  वापस चला गया। लेकिन 1206 ई. अचानक गोरी की मृत्यु हो गई । कुतुबुद्दीन एबक ने कुछ समय बाद दिल्ली व अजमेर पर अधिकार करके तुर्क शासन की स्थापना की।  जिसे गुलाम वंश के नाम से जाना जाता है। 

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        इस प्रकार 1206 ई. से 1290 ई. तक के काल में दिल्ली पर एक नही वरन तीन वंशो ने शासन किया ,जिसमे गुलाम वंश के रूप में कुतुबुद्दीन एबक , इलतुत्मिश और बलबन एक ही पूर्वज की संतान नही थे। केवल इनके संस्थापक ही अपने प्रारम्भिक जीवन में गुलाम रहे थे उनके अन्य सदस्य नही।इसलिए एबक को छोड़कर सबने गद्दी पर बैठने से पूर्व ही अपनी दासता से मुक्ति प्राप्त कर ली थी। 

गुलाम वंश/ मामलुक वंश- 1206- 1290ई.

कुतुबुद्ददीनन एबक का  जीवन परिचय –

कुतुबुद्दीन ऐबक :- (1206-1210)

 —-1206 में महमूद गौरी की मृत्यु के बाद कुतुबुद्दीन ऐबक दिल्ली के सिंहासन पर बैठा। इसी के साथ भारत में पहली बार गुलाम वंश की स्थापना हुई।कुतुबुद्दीन ऐबक का राज्य अभिषेक 12jun 1206 को हुआ। इसने अपनी राजधानी लाहौर को बनाया कुतुबुद्दीन ऐबक कुत्त्बी तुर्क था।  कुतुबुद्दीन ऐबक महमूद गौरी का गुलाम व दामाद था।

—-कुतुबुद्दीन ऐबक को लाखबक्शा या हातिमताई की संज्ञा दी जाती थी।

—–कुतुबुद्दीन ऐबक ने यलदोज (गजनी) को दामाद, कुबाचा (मुलतान + सिंध) को बहनोई और इल्तुतमिश को अपना दामाद बनाया ताकि गौरी की मृत्यु के बाद सिंहासन का कोई और दावेदार ना बन सके।

—-इसने अपने गुरु कुतुबद्दीन बख्तियार काकी की याद में कुतुब मीनार की नींव रखी परंतु वह इसका निर्माण कार्य पूरा नही करवा सका। इल्तुतमिश ने कुतुब मीनार का निर्माण कार्य पूरा करवाया।

—–दिल्ली में स्थित कवेट-उल-इस्लाम मस्जिद और  अजमेर का ढाई दिन का झोंपडा का निर्माण  कुतुबुद्दीन ऐबक ने ही करवाया था।1210 में चौगान खेलते समय घोड़े से गिरकर मृत्यु हो गई।

गुलाम वंश – 

1. कुतुबुद्दीन ऐबक -1206- 10ई.

2. आरामशाह- 1210ई.

3. इल्तुतमिश-  1210- 36 ई.

4. रूकुनुद्दीन फ़ीरोज़शाह-1236 ई.

5. रजिया सुल्तान- 1236- 1240ई.

6. मुईज़ुद्दीन बहरामशाह -1240- 1242 ई.

7. अलाऊद्दीन मसूदशाह – 1242- 1246 ई.

8. नासिरूद्दीन महमूद – 1246- 1266 ई. 

9. गयासुद्दीन बलबन -1266- 1287 ई. 

10. मोईजुद्दीन कैकूबाद -1287 – 1290 ई

11. शमशुद्दीन क्यूम़र्श -1290 ई.

कुतुबुद्दीन की उप्लब्धिया-

1 . प्रशासनिक उप्लब्धिया– 

     1192 से 1206 ई. तक मुहम्म्द गोरी के प्रतिनिधि के रूप में एबक ने कार्य किया। इस काल में सल्तनत को सुरक्षित , विस्तृत करना एवम गुलाम वंश की स्थापना करना उसकी मुख्य उपलब्धीया थी।  उसके बाद एबक के समक्ष अनेक समस्याओ का अम्बार था ,जिसका सामना उसने अपनी योग्यता के बल पर सफलतापूर्वक किया ।  उसकी प्रमुख समस्याए इस प्रकार थी-

एल्दौज तथा कुवाचा

– ख्वारिज्म के शाह की महत्वकांक्षा

– राजपूत राजाओ का विरोध

– बंगाल की समस्या

– उत्तर- पश्चिम सीमा की सुरक्षा

           कुतुबुद्दीन एबक  केे समक्ष  सबसे महत्वपुर्ण समस्या एल्दौज, कुवाचा और 

ख्वारिज्म शाह की थी। एबक ने इस समस्या पर ध्यान केंद्रित किया और चार वर्षो तक वह लाहौर में ही बना रहा। उसे इन चार वर्षो में अनेक कष्ट उठाने पड़े, किंतु उसने इन समस्याओ का धैर्य पूर्वक और राजनीतिक विवेक से सामना  किया । और उन समस्याओ को उपलब्धियो में बदल दिया।

2. साहित्यिक  क्षेत्र में उपलब्धियां-

—— कुतुबुद्दीन ऐबक साहित्य और कला ( Literature and art) का संरक्षक था।

 ——तत्कालीन विद्वान हसन निजामी और फक्र- ए-मुदब्बिर को उसका संरक्षण प्राप्त था उन्होंने उसे अपने ग्रंथ समर्पित किए थे।

 —–हसन निजामी ने “”ताजुल मासिर”” और फक्र- ए-मुदब्बिर ने अदाब- उल हर्ब और अलशुजाता नामक ग्रंथ की रचना की थी।

  3.-स्थापत्य कला में उपलब्धियां-

 —–कुतुबुद्दीन ऐबक ने राजधानी के रूप में दिल्ली नगर का विकास भी किया।

 ——उसने दिल्ली और अजमेर में दो मस्जिद बनवाई 1195 से 1199 ईस्वी के बीच दिल्ली में “”कुवत-उल-इस्लाम”” मस्जिद का निर्माण करवाया।

 —–यह मस्जिद भारत में इस्लामी पद्धति पर निर्मित प्रथम मस्जिद मानी जाती है जो पृथ्वीराज तृतीय के किले राय पिथौरागढ़ के स्थान पर निर्मित की गई है।

 ——कहा जाता है कि इस मस्जिद का निर्माण 27 जैन मंदिरों के  ध्वंशावशेषों पर किया गया है।

 ——दूसरी मस्जिद अड़ाई दिन का झोपड़ा है जो अजमेर में स्थित है इसका निर्माण भी कुतुबुद्दीन ऐबक ने करवाया था।

——- इस स्थान पर अजमेर के चौहान शासक विग्रहराज चतुर्थ द्वारा निर्मित संस्कृत पाठशाला थी जहां आज भी हरिकेलि नाटक के कुछ अंश लिखे हुए हैं।

 ——कुतुबुद्दीन ऐबक ने दिल्ली में 1199 ईस्वी  में सूफी संत ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी की स्मृति में कुतुब मीनार (Qutub Minar) का निर्माण कार्य शुरू करवाया था लेकिन अकस्मात मृत्यु के कारण इस इमारत को पूरा नहीं कर सका।

 ——जिसे 1230-31 ईस्वी में इल्तुतमिश  ने पूरा करवाया था।

 ——कुतुब मीनार के निर्माण से उतरी भारत में एक नई स्थापत्य शैली का विकास का मार्ग प्रशस्त हुआ।

 ——-कुतुबुद्दीन ऐबक के पास समय का अभाव रहा वह अपने जीवन में दिल्ली सल्तनत को पूर्ण स्थायित्व प्रदान नहीं कर सका।

 ——-उसके कार्य अधूरे रहे इस कारण उसके पश्चात इल्तुतमिश को अधूरे कार्य की पूर्ति के लिए प्रयास करना पड़ा।

 मूल्यांकन-

भारत में तुर्क साम्राज्य का पहला स्वतंत्र शासक कुतुबुद्दीन एबक था । दिल्ली सल्तनत के इतिहास में उनका मूल्याकन एक महान सेनानायक, उदार एवम दानी था तथा प्रशासनिक- कूट्नीतिज्ञ के रूप में होता है।

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