परिचय- भारत अपनी ‘विविधता में एकता’ के लिए जाना जाता है। यह समन्वय से युक्त सिद्धांत विभिन्न भाषाओं, धर्मों, रीति-रिवाजों, अनुष्ठानों आदि के द्वारा निर्मित हुआ है। भारत के संविधान का अनुच्छेद 27 स्पष्ट रूप से भारत के धर्मनिरपेक्ष व पंथनिरपेक्ष चरित्र की परिकल्पना करता है। भारत सरकार का कोई आधिकारिक धर्म नहीं है। हालाँकि, राज्य धर्म-विरोधी, अधार्मिक या धार्मिक नहीं है। यह गैर-धार्मिक है। भारत सरकार सर्व धर्म समभाव (सभी धर्म समान हैं) के सिद्धांत का पालन करती है।
भारत में धर्मों का वर्गीकरण –
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भारत में धर्म परंपरा के वर्गीकरण को निम्नवत रूप से देखा जा सकता है-
1. सबसे प्राचीन धर्मः
2. हिन्दू धर्म की रूढ़िवादी प्रकृति का विरोध करके जो धर्म विकसित हुएः
- बौद्ध धर्म,
- जैन धर्म,
- और सिख धर्म
3. ऐसे धर्म जो विजय या उपनिवेशीकरण का परिणाम हैं:
4. प्रवास के कारण धर्मः
- पारसी धर्म,
- यहूदी धर्म,
- और बहाई धर्म।
हिन्दू धर्म
उत्पत्ति और संक्षिप्त इतिहास:
हिन्दू धर्म का अर्थ “जीवन शैली” से है। हिन्दू धर्म का पालन करने वाले लोगों को हिन्दू कहा जाता है। हिन्दू शब्द सिंधु नदी से लिया गया है (प्राचीन नाम- सिंधु) । हिन्दू धर्म का कोई एक संस्थापक नहीं है। यह पूर्व-वैदिक (सिंधु घाटी के लोगों द्वारा लगभग 3000 ईसा पूर्व) और वैदिक काल (2000 ईसा पूर्व के आसपास आर्य लोगों द्वारा) से बुनियादी मूल्यों को उधार लेता है। आर्यों ने सबसे पहले प्राकृतिक शक्तियों की पूजा प्रारंभ की। जैसे आदित्य (सूर्य), उषा, वरुण आदि। कालांतर में, ब्रह्मा-विष्णु-महेश (शिव) त्रिमूर्ति की पूजा की जाने लागी जिन्हे क्रमशः निर्माता, संरक्षक और विनाशक माना जाता हैं।
कई समुदाय आपस में मिल-जुल कर रहते हैं तथा हमें भाँति-भाँति के वं देखने को मिलते हैं। जैसा कि सितम्बर 1893 में स्वामी विवेकानंद ने शिकागो के विश्व धर्म संसव में उद्बोधन दिया था-
“मुझे उस धर्म का अनुयायी होने पर गर्व है, जिसने सम्पूर्ण विश्व को सहिष्णुता तथा वैश्विक मैत्री का पाठ पढ़ाया है और हम केवल सार्वभौमिक सहिष्णुता में ही विश्वास नहीं करते, बल्कि हम सभी धर्मों की सत्यता को स्वीकार भी करते हैं।” भारतवर्ष साम्प्रदायिक तनावों की तुलना में धार्मिक शान्ति का साक्षी रहा है। भारत में वर्तमान में प्रचलित प्रमुख धर्म इस प्रकार हैं:
हिंदू धर्म के अंतर्गत चार प्रमुख पंथ:
1. वैष्णववादः इसके अनुयायी विष्णु को सर्वोच्च भगवान मानते हैं। इस परम्परा की उत्पति ईसा पूर्व पहली शताब्दी में भगवद्द्वाद के रूप में हुई थी एवं इसे कृष्णवाद भी कहा जाता है। वैष्णव परम्परा के कई समुदाय या उप-शाखाएँ है।
वैष्णव वाद के तहत प्रमुख उप-संप्रदाय निम्नवत हैं-
वारकरी संप्रदाय:
- क्षेत्रः पंढरपुर (महाराष्ट्र)
- महत्वपूर्ण व्यक्तित्वः ज्ञानेश्वर (महाराष्ट्र में भक्ति आंदोलन के संस्थापक, 13वीं शताब्दी), नामदेव (13वीं शताब्दी), एकनाथ (16 वीं शताब्दी), तुकाराम (17 वीं शताब्दी, छत्रपति शिवाजी महाराज के समकालीन)
- भगवान विठोबा (विष्णु का रूप) की पूजा
- वारीः वार्षिक तीर्थयात्रा
- वारकरीः वह व्यक्ति जो वारी करता है
- रिंगन (पवित्र घोड़े की दौड़) और धावा महत्वपूर्ण आयोजन है
रामानंदी संप्रदाय (दो उप-समूहः त्यागी और नागा):
- क्षेत्रः गंगा का मैदान
- अद्वैत विद्वान रामानंद की शिक्षाओं का सख्ती से पालन
- सबसे बड़ा मठवासी समूह
- राम की पूजा
- वैष्णव भिक्षुओं को रामानंदी, वैरागी या बैरागी के रूप में जाना जाता है
- ध्यान और तपस्वी प्रथाओं का कड़ाई से पालन
ब्रह्मा संप्रदाय :
- संस्थापक-माधवाचार्य
- चैतन्य महाप्रभु ने गौड़ीय वैष्णववाद को बढ़ावा दिया
- इस्कॉन इस संप्रदाय से संबंधित है
- भगवान विष्णु की पूजा
- इस्कॉन इस संप्रदाय से संबंधित है।
पुष्टिमार्ग संप्रदाय:
- संस्थापक :वल्लभाचार्य (1500 ईस्वी)
- उनका दर्शन है – परम सत्य केवल एक और एकमात्र ब्रम्हा है।
- केवल एक ही भगवान कृष्ण को मानना।
निम्बार्क संप्रदाय :
- राधा और कृष्ण की पूजा
- इसे सनक संप्रदाय/सनकादि/ कुमार संप्रदाय आदि नामों से भी जाना जाता है।
2. शैववाद: इसमें शिव को सर्वोच्च भगवान माना जाता है। शैववाद की उत्पत्ति, वैष्णवाद से पहले ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी में वैदिक देवता रुद्र के रूप में मानी जाती है।
शैव धर्म के तहत: प्रमुख उप-संप्रदायः
महत्वपूर्ण विशेषताएँ:
नाथपंथी :
- आदिनाथ (शिव का एक रूप) की पूजा
- गोरखनाथ और मत्स्येंद्रनाथ की शिक्षाओं पर आधारित
- हठ-योग (शरीर-मन युति) का उपयोग
- हमेशा भ्रमण करने वाले भिक्षुओं समूह (कभी भी एक ही स्थान पर नहीं रहते)
लिंगायत (वीर शैववाद) :
- बसव (कन्नड़ कवि) द्वारा 12वीं ईस्वी में स्थापित
- लिंग रूप में शिव की पूजा
- विशेष शैव परंपरा-
- एकेश्वरवाद में विश्वास
- वेदों की प्रामाणिकता और जाति व्यवस्था को अस्वीकार करना
दशनामी संन्यासी :
- दस नाम 10 (दस) समूहों में विभाजित
- आदि शंकराचार्य के शिष्य (अद्वैत दर्शन)
अघोरी :
- भैरव के भक्त (शिव का एक रूप)
- साधना का अभ्यास करें (कठोर और तामसिक अनुष्ठान)
सिध्दर या सिध्द :
- तमिलनाडु से कुशल व्यक्तियों (संतों, चिकित्सकों, रसायनविदों और रहस्यवादियों) का समूह गुप्त रसायनों द्वारा आध्यात्मिक पूर्णता प्राप्त करना।
- वरम के संस्थापक (आत्मरक्षा और स्वास्थ्य उपचार की कला)
3. शाक्तवाद –
- इसमें स्त्री या देवी को सर्वोच्च शक्ति माना जाता है।
- इसे तन्त्र की विभिन्न उप-परम्पराओं के लिए जाना है।
- शाक्त प्रायः दुर्गा के उपासक होते है।
- पूजा अनुष्ठान पद्धति दो प्रकार की है दक्षिणाचार और वामाचार।
4. स्मार्तवाद –
- यह पुराणों की शिक्षाओं पर आधारित है।
- ये पाँच देवताओं के साथ पाँच धार्मिक स्थलों की घर में ही पूजा पर विश्वास करते हैं और सभी को समान माना जाता है।
- ये देखता है-शिव, शक्ति, गणेश की परी समातंगार में ब्रह्म की दो अवधारणाओं को स्वीकार किया जाता है।
- ये दो अवधारणाएं हैं –
- सगुण ब्रह्म यानी गुणयुक्त ब्रह्म
- और निरा बानी गुणों से रहित।
अन्य धार्मिक परंपराएँ:
श्रमण परंपराः
- यह वे भारतीय धार्मिक आंदोलन हैं जिन्होंने हिन्दूधर्म की ब्राह्मणवादी विचारधारा का विरोध किया।
- (श्रमण वह व्यक्ति/साधक जो नेक या धार्मिक कार्य के लिए तप करता है) वेदों को प्रमाणित न मानकर आत्मज्ञान, आत्मविजय एवं आत्म-साक्षात्कार पर विशेष बल दिया वह श्रमण परम्परा कहलाती है।
- विभिन्न श्रमण परंपरायें (सभी नास्तिक या हेटरोडॉक्स हैं) इस प्रकार हैं:
आजीवक दर्शन :
- संस्थापक – मक्खली गोशाल, अजीविकाओं का क्षेत्र-विस्तारः श्रावस्ती (उत्तर प्रदेश)
- बिंदुसार (मौर्य राजा) – प्रमुख अनुयायी, अशोक के सातवें स्तंभ आदेशों में अजीविकों का उल्लेख है।
- विषय-वस्तुः नियति (भाग्य), इसलिए, कर्म के सिद्धांत को अस्वीकार कर दिया (ध्यान देने योग्यः जैन धर्म और बौद्ध धर्म ने कर्म के सिद्धांत को स्वीकार किया)
- वेदों की प्रमाणिकता को अस्वीकृत किया (ध्यान देने योग्यः जैन धर्म और बौद्ध धर्म ने भी वेदों की प्रमाणिकता को अस्वीकृत किया)।
- परमाणु सिद्धांत पर आधारित (ब्रह्मांड में सब कुछ परमाणुओं से बना है)
अजानन दर्शन :
- जैन धर्म और बौद्ध धर्म के घोर विरोधी।
- विषयः “अज्ञानता सबसे अच्छी है। (क्योंकि ज्ञान प्राप्त करना असंभव है)।
चार्वाक (लोकायत दर्शन ):
- संस्थापक- बृहस्पति, वेदों और बृहस्पत्य उपनिषद में भी इनका उल्लेख
- विषयः मोक्ष प्राप्त करने के लिए भौतिकवादी (लोक-भौतिक दुनिया / भौतिकवादी दुनिया) दृष्टिकोण।
- ‘खाओ, पीओ और आनंद करो के सिद्धांत का प्रतिपादन ।
- ‘आकाश’ को ब्रह्मांड का पाँचवां तत्व न मानना। केवल चार तत्वों की मान्यता अग्नि, पृथ्वी, जल और वायु।
भारत में धर्म परंपरा के संदर्भ में और आगे विस्तृत से दूसरे भाग में अध्ययन करें…
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