#1. किसका कथन है कि - "धर्म पवित्र वस्तुओं से संबंधित अनेक विश्वासों तथा आचरणों की वह व्यवस्था है, जो अपने से संबंधित लोगों को एक नैतिक समुदाय में जोड़ती है"।
दूर्खिम ने धर्म की परिभाषा देते हुए कहा था कि “धर्म पवित्र वस्तुओं से संबंधित अनेक विश्वासों तथा आचरणों की वह व्यवस्था है, जो अपने से संबंधित लोगों को एक नैतिक समुदाय में जोड़ती है”।
#2. भारतीय संस्कृति की विशेषता है-
भारतीय संस्कृति अत्यंत प्राचीन होने के साथ-साथ अपने में अनेक संस्कृतियों को समेटे हुए है। उसकी प्रमुख विशेषताओं में आध्यात्मिकता, आस्तिकता, धर्म परायणता, अवतारवाद, चार पुरुषार्थ, कर्म फल का सिद्धांत, वर्णाश्रम व्यवस्था, 16 संस्कारों का समावेश, महान व्यक्तियों के प्रति श्रद्धा, विश्व कल्याण की भावना, समन्वय की भावना, सत्य और अहिंसा, गुरुओं का आदर, परोपकार, सदाचार पालन, जननी को सर्वोच्चता का दर्जा, वसुधैव कुटुंबकम आदि विशेषताएं शामिल हैं।
#3. धर्म का शाब्दिक अर्थ है-
धर्म भारतीय संस्कृति का प्राण है। धर्म का अर्थ है- धारण करने वाला। वामन आप्टे ने कहा है कि – धर्म ही एक ऐसा तत्व है, जो व्यक्ति को देशकाल अनुसार आचरण की प्रेरणा देकर समाज में रहने के योग्य बनाता है। इसी को वेदव्यास जी ने बताया है कि – धर्म ही परिवार, समाज और राष्ट्र को एकसूत्र में पिरोने का कार्य करता है। उसी प्रकार आचार्य हेमचन्द्र ने भी सम्पूर्ण ब्रम्हांड में इस पृथ्वी को स्थिर रहने का कारण धर्म को ही मानकर अपने विचार प्रकट करते है। आचार्य कौटिल्य ने भी कहा है- मानव कल्याण एवं व्यवहार के लिए उचित समस्त तत्व धर्म है। आचार्य मनु ने वेद, स्मृति, सदाचार एवं मन की प्रसन्नता को धर्म का मूल माना है। इस प्रकार चार पुरुषार्थ में धर्म को प्रथम चरण माना गया है।
#4. निम्नलिखित असत्य जोड़ी पर विचार कीजिए-
न्याय – जैमिनी, असत्य है। भारतीय दर्शन कुल 6 हैं जिसमें दर्शन और उनके प्रवर्तक बताए गए हैं –
दर्शन प्रवर्तक
1.सांख्य- कपिल
2. योग – पतंजलि
3. न्याय – गौतम
4. वैशेषिक- कणाद या उलूक
5. पूर्व मीमांसा- जैमिनी
6. उत्तर मीमांसा – वादरायन
#5. भारतीय धर्म एवं संस्कृति के अनुसार पुरुषार्थ की संख्या है-
भारतीय धर्म एवं संस्कृति के अनुसार पुरुषार्थ की संख्या 4 है-
1. धर्म
2. अर्थ
3. काम
4. मोक्ष
#6. न्याय दर्शन के अनुसार ज्ञान प्राप्ति के कितने मार्ग बताए गए हैं-
न्याय दर्शन के अनुसार ज्ञान प्राप्ति के चार मार्ग बताए गए हैं-
1. प्रत्यक्ष
2. अनुमान
3. उपमान
4. शब्द
अर्थात प्रत्यक्ष सिद्धांत केवल उस अवस्था में निरूपित हैं जब मन के साथ बुध्दि भी क्रियाशील हो उठती है। सिद्धांत का अनुसरण अनुमान द्वारा किया जाता है। अनुमान तीन प्रकार का हो सकता है – पूर्ववत, शेषवत तट दृष्टम । उपमान के द्वारा हम उस वस्तु का भान करते हैं जिस प्रकार कि हम पूर्व में देख चुके हैं। और अंत में शब्द के द्वारा अन्यों के ज्ञान को समझा जा सकता है।
#7. "पंच तत्व" का सिद्धांत किस दर्शन में समाहित हैं -
वैशेषिक दर्शन में पाँच तत्व का सिद्धांत की व्याख्या की गई है ये 5 तत्व हैं- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश।
पृथ्वी में चार गुण समाविष्ट हैं- गंध, स्वाद, रंग तथा स्पर्श।
जल में तीन गुण हैं- स्वाद, रंग तथा स्पर्श।
वायु में स्पर्श का,
आकाश में ध्वनि का गुण विद्यमान है। सभी पदार्थों में मिलने वाले तत्व का नाम है ‘परमाणु’ ।
#8. सर्वाधिक प्राचीन दर्शन है -
6 दर्शनों सर्वाधिक प्राचीन दर्शन है- सांख्य।
#9. योग दर्शन के प्रतिपादक हैं -
योग दर्शन के प्रतिपादक हैं – पतंजलि ।
पतंजलि ने इसका प्रयोग शरीर को शारीरिक, मानसिक व आत्मिक बल प्रदान करने तथा ब्रम्हांड में परिव्याप्त सूक्ष्म कणों /तत्वों से तारतम्य स्थापित करने के नियम, क्रिया उपाय के रूप मे मार्ग बताए हैं। इसके अंतर्गत – यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि आदि अष्टांग योग का उल्लेख प्रस्तुत किया है।
#10. किस दर्शन का मुख्य उद्देश्य हिन्दू धर्म की मान्यता की पुनर्स्थापना करना तथा वेदों के असीम ज्ञान को पुन: बहाल करना था-
पूर्व मीमांसा दर्शन का मुख्य उद्देश्य हिन्दू धर्म की मान्यता की पुनर्स्थापना करना तथा वेदों के असीम ज्ञान को पुन: बहाल करना था। यह अन्य दर्शनों के मुकाबले मोक्ष प्राप्ति के साधन पर विचार न का के कुछ विशेष प्रकार के विचारों का प्रस्फुटन करता है। यह यज्ञ व हवन आध्यात्मिक कर्मकांडों के ज्ञान के क्रिया किए जाने पर बल देता है।
#11. षड दर्शनों में सर्वाधिक ख्यातिप्राप्त दर्शन है-
उत्तर मीमांसा को वेदान्त के रूप में ख्याति प्राप्त है। यह 6 दर्शनों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। इसके रचनाकार वादरायन हैं। इस ग्रंथ में उपनिषदों के उपदेशों को क्रमबद्ध रूप प्रदान करने का प्रयास किया गया है।
#12. उत्तर मीमांसा का मूल ग्रंथ है -
उत्तर मीमांसा का मूल ग्रंथ जिसका नाम ब्रम्हफूल है। इसकी रचना वादरायन ने की जो ईस्वी सन का प्रारंभ वर्ष माना जाता है।
#13. हिन्दू धर्म का पुनर्द्धारक माना जाता है-
दक्षिण भारत के केरल राज्य में 8 वीं सदी में जन्मे शंकराचार्य को संकुचित हो चुका हिन्दू धर्म का पुनर्द्धारक माना जाता है। इन्होंने बौद्ध धर्म के बढ़ते प्रभाव को कम करने के लिए 8 वी शताब्दी में अद्वैत दर्शन का प्रतिपादन किया था।
#14. निम्न लिखित बेमेल जोड़ी को पहचानिए-
निंबकाचार्य का संबंध द्वैत -अद्वैतवाद से है। आदि पुरुष शंकराचार्य के अद्वैत दर्शन के विरोध में दक्षिण भारत के वैष्णव आचार्यों के द्वारा प्रमुख चार मत एवं संप्रदायों की खोज की गई –
संस्थापक मत संप्रदाय
1. रामानुजाचार्य – विशिष्ट अद्वैतवाद – श्री सम्प्रदाय
2. माध्वाचार्य – द्वैतवाद — ब्रम्ह सम्प्रदाय
3. वल्लभाचार्य – शुद्ध अद्वैतवाद —- रुद्र संप्रदाय
4. निंबकाचार्य – द्वैत -अद्वैतवाद – — सनक संप्रदाय
#15. उत्तर भारत में भक्ति आंदोलन के प्रवर्तक थे-
उत्तर भारत में भक्ति आंदोलन के प्रवर्तक थे-रामानंद । इनका जन्म 1299 ई में प्रयाग में हुआ था। इनकी शिक्षा प्रयाग तथा वाराणसी में पूरी हुई। रामानंद में सर्वप्रथम अपना उपदेश हिन्दी में दिया था। इन्होंने मोक्ष प्राप्ति का एक मात्र साधन भक्ति को माना था। आदर्श समाज के निर्माण के लिए राम-सीता की उपासना करने का संदेश दिया। इनके प्रमुख 12 शिष्य थे – जिसमें शिष्य महिलाएं थीं।
#16. रामानंद के शिष्यों में शामिल नहीं हैं-
दादूदयाल इसमें शामिल नहीं है। रामानंद के 12 शिष्यों में सभी जाति के लोग शामिल थे-
प्रमुख रूप से – कबीर(जुलाहा), रैदास (चमार), सेना (नाई), पीपा (राजपूत), पद्मावती और सुरसरि (महिलायें) शामिल थे।
#17. दक्षिण भारत में नयनार संत कहे जाते थे-
दक्षिण भारत में नयनार संत कहे जाते थे-शैव भक्त। और
अलवार- वैष्णव संतों को कहा जाता था ।
#18. कबीर की प्रसिध्द रचना है -
निर्गुण धारा के प्रसिद्ध कवि, समाज सुधारक एवं संत कबीर की प्रसिध्द रचना है -बीजक है, वे सुल्तान सिकंदर लोदी के समकालीन थे।
जबकि रामचरित मानस, कवितावली, गीतावली तुलसीदास जी की रचना है, जो कि अकबर के समकालीन थे, अबुल फजल ने आईन -ए-अकबरी में इनका नाम उल्लेखित किया है।
#19. सिक्ख धर्म के प्रवर्तक हैं-
सिक्ख धर्म के प्रवर्तक हैं- गुरु नानक ।
गुरुनानक का जन्म 1469 ई में पंजाब के तलबंडी (आधुनिक ननकाना साहिब) में हुआ था। गुरुनानक ने (1469- 1539 ई ) के मध्य सिक्ख धर्म की स्थापना की। गुरु नानक, सूफी संत बाबा फरीद से से प्रभावित थे। नानक एकेश्वरवाद में विश्वास करते हुए निर्गुण ब्रम्हा की उपासना की। इन्होंने गुरु का लंगर नाम से संयुक्त सामुदायिक रसोई की शुरुआत लोगों की सेवार्थ शुरू की। धर्मों के आडंबर को त्यागकर भाईचारे की भावना का विकास किया।
#20. बंगाल में भक्ति आंदोलन के प्रवर्तक थे-
बंगाल में भक्ति आंदोलन के प्रवर्तक थे- चैतन्य महाप्रभु।
कृष्ण भक्ति की सगुण धारा से ओतप्रोत चैतन्य महाप्रभू का जन्म बंगाल के नदिया के एक ब्राम्हण परिवार में हुआ था। सन्यास ग्रहण करने के पश्चात वे बंगाल से पूरी (उड़ीसा) चले गए। इन्होंने जाति-पाती, कर्मकांड, पाखंड, छुआ-छूत का घोर विरोध किया। इन्होंने गोसाई संघ की स्थापना की।
#21. सूरदास की प्रमुख रचनाओं में शामिल नहीं है-
सूरदास की प्रमुख रचनाओं में शामिल नहीं है- गंगालहरी।
सूरदास कृष्णभक्ति शाखा के प्रसिद्ध कवि थे। जो अकबर के समकालीन थे। इन्होंने अपनी रचनाओं में कृष्ण भक्ति का अनुपम स्वरूप प्रस्तुत किया है।
#22. मीरा बाई के गुरु थे-
मीरा बाई के गुरु थे- रैदास । मीराबाई मेड़ता राजस्थान के रतनसिंह राठौर की इकलौती पुत्री थी। मीराबाई का विवाह राणा सांगा के पुत्र भोजराज से हुआ था। मीराबाई का जन्म 1498 में मेढता के कुदकी नामक ग्राम में हुआ था। इन्होंने भगवान श्रीकृष्ण को अपना आराध्य माना था। इनकी प्रमुख रचनाए हैं- बरसी का मायरा, गीत गोविंद टीका, राग गोविंद, राग सोरठ। वह तुलसीदास की समकालीन कवित्री थीं तथा तुलसीदास जी से पत्र व्यवहार भी करती थीं।
#23. महाराष्ट्र में भक्ति आंदोलन के प्रचार-प्रसार का श्रेय जाता है-
महाराष्ट्र में भक्ति आंदोलन के प्रचार-प्रसार का श्रेय जाता है-नामदेव को।
इनके गुरु बिसोवा खेचर थे।
नामदेव बरकरी सम्प्रदाय से संबंधित थे। ये इस्लाम से प्रभावित थे। इनकी रचनाएं “अभंग” के रूप में जानी जाती हैं।
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