#1. राज्य संचालन के ढंग को कहा जाता है-
#2. प्राचीन भारत के प्रमुख प्रकांड राजशास्त्र वेत्ता थे-
#3. आचार्य कौटिल्य की कृति इनमें से है-
#4. 'अर्थशास्त्र ' ग्रंथ मूल रूप से संबंधित है-
#5. कौटिल्य के अर्थशास्त्र में राज्य के कितने अंग हैं-
कौटिल्य के अर्थशास्त्र में राज्य के प्रमुख 7 अंग हैं , जिन्हे सप्तांग सिद्धांत के नाम से जाना जाता है- ये 7 अंग इस प्रकार हैं- राजा, अमात्य, जनपद, दुर्ग, कोश, दंड(सेना), मित्र ।
#6. आचार्य कौटिल्य ने राजा के गुणों की 4 कोटियाँ निर्धारित की हैं, इनमें से गलत कोटि को चिन्हित कीजिए-
विलक्षण गुण गलत है। इसके स्थान पर विशिष्ट गुण शामिल है।
1. आभिगामिक गुण – एक राजा को सत्व संपन्नता, ज्ञान, धर्मपरायणता, सत्यवादिता, सत्यप्रतिज्ञा, कृतज्ञता, दान शीलता, उत्साह सम्पन्न, सामंतों को वश में करने वाला, दृढ़ निश्चयी, गुणीमन्त्री और अमात्यों का सहचर्य तथा शास्त्र मर्यादा की रक्षा करने वाला होना चाहिए।
2. प्रज्ञा गुण – शास्त्र सुनने की इच्छा, शास्त्र ज्ञान, शस्त्रों को ग्रहण करना, ग्रहण किए को याद रखना, याद किए हुए का विशिष्ट ज्ञान प्राप्त करना, तर्क-वितर्क करना, बुरे पक्ष को छोड़ना और अच्छे पक्ष को ग्रहण करना।
3. उत्साह गुण – शूरता, अमर्ष(शत्रु को न सहना), क्षिप्र कारिता और दक्षता।
4. विशिष्ट गुण – स्मृति, मति, बल, उच्च हृदय, संयम, निपुणता, विपत्तिग्रस्त होने पर अपनी सेना की रक्षा करना, अन्य राजाओं के द्वारा किए गए उपकार या अपकार का यथोचित उत्तर देना, दुर्भिक्ष और सुभीक्ष के समय अनाज का ठीक वितरण, दीर्घ शीलता, दूरदर्शिता, सेना के संबंध में देश-काल एवं पुरुषार्थ के कार्य को समझना, संधियों का प्रयोग जानना, शत्रु से युद्ध करने की कुशलता, सुपात्र को दान देना, राजाओं से की गई शर्तों का पालन करना, शत्रु के छिद्रों पर नजर रखना, मंत्रणा को गोपनीय रखने का सामर्थ्य, दीनजनों पर दया रखना, काम, क्रोध, लोभ-जड़ता- चपलता- द्रोह- चुगलखोरी से दूर, हंसमुख, प्रिय बोलना, वृद्धों के उपदेश को सुनना तथा उनके आचरण का अनुसरण करना। स्रोत- (कौटिल्य अर्थशास्त्र, 6/1/1-6) ।
#7. प्रशासन में "मंत्रणा" शब्द के अंतर्गत समाहित है-
राजा को योग्य मंत्रियों के साथ ही मंत्रणा करनी चाहिए, कपटी, मूर्ख, दंड प्राप्त कर चुकने वाले तथा दुर्गुणों से युक्त व्यक्ति मंत्रणा के अधिकारी नहीं हैं। प्राचीन भारतीय राज व्यवस्था में यह बताया गया है कि राजा को चाहिए कि वह तीन मंत्रियों से मंत्रणा करके उस पर विचार करे, तत्पश्चात पुरोहित की सलाह ले और तभी मंत्र को कार्यान्वित करे। मंत्रणा स्थल में बौने, कुबड़े, हिजड़े, लंगड़े, गूंगे आदि को आने से रोके। मंत्रणा गोपनीय स्थल पर ही होनी चाहिए।
#8. राजा द्वारा विदेश नीति के लिए आवश्यक कारक कितने हैं-
राजा के लिए विदेश नीति की सफलता के लिए आवश्यक 6 कारक बताए गए हैं।
1. संधि, 2. विग्रह, 3. यान, 4. आसन, 5. द्वैधीभाव, 6. संशय। इसे षाड्यगुण्य नीति कहा गया।
#9. 'राजनीति' किसकी रचना है?
#10. "द रिपब्लिक " की रचना किसने की ?
#11. प्राचीन भारत में राजनीति चिंतन के प्रमुख स्रोत हैं-
#12. 'अष्टाध्यायी' के रचनाकार हैं-
#13. महाभारत में शांति पर्व का संबंध है-
#14. किसने माना है कि 'राज्य' दैवीय संस्था है-
#15. राज्य के सप्तांग सिद्धांत में कौन संबंधित नहीं है
#16. उत्तर वैदिक साहित्य में किस राजनैतिक संस्था की जानकारी मिलती है-
#17. सभा और समिति ऋग्वैदिक काल में किससे संबंधित हैं-
#18. कौटिल्य के अर्थशास्त्र दुर्ग को राज्य का आवश्यक अंग माना गया है, दुर्ग के प्रकारों की संख्या थी-
आचार्य कौटिल्य ने दुर्ग को राज्य का आवश्यक अंग माना है। दुर्ग एक राज्य की प्रतिरक्षात्मक एवं आक्रमण शक्ति दोनो के प्रतीक हैं। इसलिए उनका सामरिक दृष्टि से अत्यंत ही महत्व है। उनके अनुसार 4 प्रकार के दुर्ग होने चाहिए –
1. औदक दुर्ग – ऐसा दुर्ग होता है जो चारों तरफ से नदियों से घिरा अर्थात टापू के समान स्थान पर मध्य में होता है।
2. पार्वत दुर्ग – इस प्रकार का दुर्ग ऊंचे- ऊंचे दुर्गम चोटियों के मध्य स्थित गुफाओं के समान होता है।
3. वन दुर्ग – वन दुर्ग घने जंगल के मध्य कँटीले झाड़ियों से युक्त तथा दलदल के मध्य निर्माण किया जाता है।
4. धान्वन दुर्ग – जल एवं घास से रहित निर्जन मरुस्थलों के मध्य ऐसे दुर्ग का निर्माण किया जाता है।