अमेरिका स्वतंत्रता संग्राम का परिणाम- American freedom struggle Effect

अमेरिका स्वतंत्रता संग्राम का परिणाम-

प्रभाव

भूमिका-              अमेरिका स्वतंत्रता संग्राम (1775 – 1783 ई. ) का वास्तविक  प्रभाव  न तो स्पेन , फ्रांस और इन्ग्लैंड  में ही पड़ा बल्कि विश्व के अनेक देशो में इसका असर हुआ।  आधुनिक  मानव की प्रगति में अमेरिका की क्रांति को एक बदलाव का महत्वपूर्ण मोड़ माना जाता है। इस क्रांति के फलस्वरूप  नई दुनिया में न केवल एक नए राष्ट्र का जन्म हुआ वरन मानव सभ्यता की दृष्टि से एक नये युग का सूत्रपात हुआ।

प्रो. ग्रीन का कथन –  ”अमेरिका के स्वतंत्रता युध्द का महत्व इंग्लैंड के लिये चाहे कुछ भी क्यो न हो परंतु विश्व इतिहास में यह एक महत्वपूर्ण घटना है।”

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अमेरिका पर प्रभाव –

(१) स्वतंत्र प्रजातांत्रिक राष्ट्र की स्थापना : 

                  क्रांति के पश्चात् विश्व के इतिहास में एक नए संयुक्त राज्य अमेरिका का जन्म हुआ। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद इन उपनिवेशों ने अपने देश में प्रजातांत्रिक शासन का संगठन किया। यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है जब संसार के सभी देशों में राजतंत्रात्मक शासन व्यवस्था स्थापित थी उस दौर में अमेरिका में प्रजातंत्र की स्थापना की गई। नए संयुक्त राज्य अमेरिका ने विश्व के समक्ष चार नए राजनीतिक आदर्श गणतंत्र, जनतंत्र संघवाद और संविधानवाद को प्रस्तुत किया। यद्यपि ये सिद्धान्त विश्व में पहले भी प्रचलित थे लेकिन अमेरिका ने इसे व्यवहार में लाकर एक सशक्त उदाहरण पेश किया। गणतंत्र की स्थापना अमेरिकी क्रांति की सबसे बड़ी देने थी। अमेरिका में प्रतिनिधि सरकार की स्थापना हुई और लिखित संविधान का निर्माण किया गया। संघात्मक शासन व्यवस्था की स्थापना हुई। इस तरह सरकार की एक प्रतिनिध्यात्मक और संघात्मक शासन प्रणाली दुनिया के समक्ष रखी।

(२) धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना : 

                 आधुनिक इतिहास में संयुक्त राष्ट्र अमेरिका ने सर्वप्रथम धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र की स्थापना की। नए संविधान के अनुसार चर्च को राज्य से अलग किया गया।

(३) सामाजिक प्रभाव : 

                 क्रांति के परिणामस्वरूप अमेरिकी जनता को एक परिवर्तित सामाजिक व्यवस्था प्राप्त हुई जिसमें मानवीय समानता पर विशेष बल दिया गया। स्त्रियों को संपत्ति पर पुत्र के समान उत्तराधिकार प्राप्त हुआ और उनकी शिक्षा के लिए स्कूलों की स्थापना की गई। इस तरह उनकी सामाजिक स्थिति में सुधार हुआ। क्रांति से मध्यम वर्ग की शक्ति बढ़ी।

(४) आर्थिक प्रभाव : 

               क्रांति ने आर्थिक क्षेत्र में मूलतः पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के विकास के मार्ग की सभी बाधाओं को समाप्त कर इसके विकास को प्रोत्साहित किया। खनिज और वन साधनों पर से राजशाही स्वामित्व समाप्त हो गया। जिससे साहसिक वर्ग ने इनका स्वतंत्रतापूर्वक देश के आर्थिक विकास के लिए प्रयोग किया। कृषि के क्षेत्र में भी सुधार हुआ। वस्तुतः युद्धकाल में आए विदेशियों से यूरोप के कृषि सुधारों के संदर्भ में अमेरिका को जानकारी प्राप्त हुई और अभी तक जो कृषि मातृदेश के हित का साधन बनी थी अब वह स्वतंत्र राष्ट्र के विकास का मूलाधार हो गई। क्रांति से अमेरिकी उद्योग धंधे भी दो तरीकों से लाभान्वित हुए-एक अंग्रेजों द्वारा लगाए गए व्यापारवादी प्रतिबन्धों से अमेरिकी उद्योग मुक्त हो गए ओर दूसरा युद्धकाल में इंग्लैंड से वस्तओं का आयात बंद हो जाने के कारण अमेरिकी उद्योगों के विकास को प्रोत्साहन मिला। स्वतंत्रता के पश्चात् अमेरिकी बंदरगाहों को विश्व व्यापार के लिए खोल दिया गया जिससे व्यापार में वृद्धि हुई।

इंग्लैंड पर प्रभाव-

1. जार्ज तृतीय के व्यक्तिगत शासन का अंत :

                  इंग्लैंड में जार्ज तृतीय एवं प्रधानमंत्री लॉर्ड नॉर्थ दोनों की निन्दा होने लगी। इंग्लैण्ड की अराजकता के लिए इन दोनों को उत्तरदायी माना गया। चूंकि जार्ज तृतीय संसद को अपनी कठपुतली मानता था, अतः संसद की शक्ति में वृद्धि की मांग उठी। क्रांति ने राजा के दैवी अधिकार पर आधारित राजतंत्र पर भीषण प्रहार किया और हाउस ऑफ कॉमन्स में राजा के अधिकारों को सीमित करने का प्रस्ताव पारित किया तथा लार्ड नॉर्थ को प्रधानमन्त्री पद से त्यागपत्र देना पड़ा। इससे जार्ज तृतीय के व्यक्तिगत शासन का अंत हो गया। आगे नए प्रधानमंत्री पिट जूनियर ने कैबिनेट की शक्ति को पुनः स्थापित किया। इस तरह इंग्लैंड में वैधानिक विकास का मार्ग प्रशस्त हुआ।

2. इंग्लैंड द्वारा नए उपनिवेशों की स्थापना : 

               13 अमेरिकी उपनिवेशों के स्वतंत्र हो जाने से इंग्लैंड के औपनिवेशिक साम्राज्य को ठेस पहुंची। अपनी खोई प्रतिष्ठा को पुनः प्राप्त करने एवं व्यापारिक हितों को सुरक्षित करने हेतु नए क्षेत्रों में उपनिवेशीकरण का प्रयास किया और इसी संदर्भ में आस्ट्रेलिया तथा न्यूजीलैंड में ब्रिटिश उपनिवेश की स्थापना हुई।

 3. इंग्लैंड की औपनिवेशिक नीति में परिवर्तन : 

              अमेरिकी उपनिवेश के हाथ से निकल जाने से ब्रिटिश सरकार ने यह अनुभव कर लिया यदि शेष बचे हुए उपनिवेशों को अपने अधीन रखना है तो उसे औपनिवेशिक शोषण की नीति को छोड़ना और और उपनिवेशों की जनता के अधिकारों एवं मांगों का सम्मान करना होगा। इस परिवर्तित नीति के आधार पर ही 19वीं एवं 20वीं शताब्दी में ब्रिटिश सरकार ने “ब्रिटिश कामन्वेल्थ ऑफ नेशन्स” अर्थात् ब्रिटिश राष्ट्र मंडल की स्थापना की।

4. इंग्लैंड द्वारा वाणिज्यवादी सिद्धान्त का परित्याग : 

             उपनिवेशों के छिन जाने के बाद बहुत से लोगों का यह मानना था कि इससे इंग्लैंड के व्यापार वाणिज्य को जबर्दस्त धक्का लगेगा। परन्तु कुछ वर्षों बाद इंग्लैंड और संयुक्त राज्य अमेरिका में पहले से भी अधिक व्यापार होने लगा तो अधिकांश देशों का “वाणिज्य सिद्धान्त” से विश्वास उठ गया। स्वयं इंग्लैंड ने भी इस नीति का परित्याग कर दिया और मुक्त व्यापार की नीति को अपनाया।

 फ्रांस पर प्रभाव-

1. खोए सम्मान की पुन: प्राप्ति – अमेरिका स्वतंत्रता संग्राम ने फ्रांस के खोए सम्मान को पुनः स्थापित किया। वस्तुतः इस युद्ध में फ्रांस ने अमेरिका का पक्ष लिया और इस तरह सप्तवर्षीय युद्ध में ब्रिटिश के हाथों मिली पराजय का बदला लिया। परन्तु युद्ध के आर्थिक व्यय ने फ्रांस की स्थिति को और भी दयनीय बना दिया। फलतः फ्रांस में जनता असंतुष्ट हुई और क्रांति का मार्ग प्रशस्त हुआ।

2. राष्ट्रीय चेतना का उदय – अमेरिकी क्रांति ने फ्रांस में एक नई चेतना उत्पन्न की। फ्रांसीसी सैनिक उपनिवेशों से अपने मस्तिष्क में क्रांति के बीज लेकर लौटे थे। इस संदर्भ में “लफायत” का नाम उल्लेखनीय है जिसने अमेरिकी क्रांति की भावना फ्रांसीसी जनमानस तक पहुंचाई। 

3. गणतंत्र की स्थापना- 

इतिहासकार हेज  के अनुसार,

              स्वतंत्रता की यह मशाल जो अमेरिका में जली और जिसके फलस्वरूप गणतंत्र की स्थापना हुई, का फ्रांस में तीव्र प्रभाव पड़ा और इसने फ्रांस को क्रांति के मार्ग की ओर पे्ररित किया। अब वे भी अमेरिकीयों के समान स्वतंत्र होना चाहते थे।

वस्तुतः फ्रांसीसी क्रांति के मुख्य सिद्धान्त स्वतंत्रता, समानता एवं बंधुत्व का मूल अमेरिकी संघर्ष में देखा जा सकता है।

 आयरलैंड एवं भारत पर प्रभाव –

             अमेरिकी क्रांति का प्रभाव आयरलैंड एवं कुछ अंशों में भारत पर भी पड़ा। उस समय आयरलैंड के लोग भी इंग्लैंड के लोग भी इंग्लैंड के विरूद्ध अपनी स्वतंत्रता के लिए लड़ रहे थे। अमेरिकी क्रांति ने उन्हें स्वतंत्र रूप से प्रेरणा प्रदान की। अमेरिकी नारा प्रतिनिधित्व नहीं तो कर नही आयरलैंड में अत्यधिक लोकप्रिय हुआ फलस्वरूप 1782 ई. में ब्रिटिश सरकार ने आयरलैंड की संसद को विधि निर्माण का अधिकार दे दिया। भारत पर अमेरिकी क्रांति का प्रभाव प्रतिकूल रूप से पड़ा। अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम के काल में फ्रांस के युद्ध में प्रवेश होने से भारत में भी आंग्ल-फ्रांसीसी युद्ध की स्थिति उत्पन्न हो गई। जिससे लाभ उठाकर अंग्रेजों ने फ्रांसीसियों की शक्ति क्षति पहुंचाकर अपने साम्राज्य विस्तार के मार्ग को सुलभ बना लिया। एक दूसरे तरीके से भी अमेरिकी क्रांति का प्रभाव भारत पर देखा जा सकता है। वस्तुतः अमेरिकी क्रांति के अनेक कारणों में एक कारण यही भी था कि ब्रिटिश ने अमेरिकी उपनिवेशों के शासन में प्रभावी हस्तक्षेप नहीं किया था। 

              फलतः अमेरिकी उपनिवेशवासियों में स्वातंत्र्य चेतना एवं स्वशासन की पद्धति का विकास हो गया। जब ब्रिटिश ने वहां हस्तक्षेप किया तो असंतोष उपजा। अतः ब्रिटेन ने इस स्थिति से सीख लेकर भारतीय उपनिवेश के आंतरिक मामलों में आरंभिक चरण से सक्रिय हस्तक्षेप जारी रखा और वहां के निवासियों की स्वतंत्रता को सीमित रखा। सहायक संधि एवं विलय की नीति के माध्यम से भारत के आंतरिक मामलों में ब्रिटिश हस्तक्षेप किया गया एवं फूट डालों तथा शासन करो की नीति अपनाकर भारतीय वर्गों को अलग-अलग रखा गया। इस तरह अमेरिकी स्थितियों से सीख लेते हुए भारत में उन स्थितियां को उत्पन्न किया गया जिससे लोग बंटे रहे और औपनिवेशक साम्राज्य पर ब्रिटिश साम्राज्य की पकड़ बनी रहे। इस तरह हम कह सकते हैं कि अमेरिकी स्वतंत्रता युद्ध ने ब्रिटेन को एक साम्राज्य से तो वंचित कर दिया लेकिन एक-दूसरे साम्राज्य की नींव को मजबूत कर दिया।

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