भारतीय साहित्य का गौरव: यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद – अंग , उपांग, विशेषताएं , जीवन में महत्व

यजुर्वेद:

यजुर्वेद चारों वेदों में से एक है। यह मुख्यतः यज्ञ एवं कर्मकांड से संबंधित वेद है। इसमें मंत्रों के साथ-साथ यज्ञ की विधि, नियम और आचार की जानकारी दी गई है। यजुर्वेद का नाम दो शब्दों से मिलकर बना है—

  • यजुस्” = यज्ञ संबंधी गद्य-मंत्र
  • वेद” = ज्ञान

अर्थात् यज्ञ संबंधी ज्ञान

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प्रमुख विशेषताएँ :

  1. स्वरूप –यजुर्वेद का स्वरूप ऋग्वेद और सामवेद से भिन्न है। इसमें अधिकांश मंत्र गद्य और पद्य दोनों रूपों में मिलते हैं।
  2. विभाजन –यजुर्वेद के दो प्रमुख संप्रदाय हैं –
    • शुक्ल यजुर्वेद (वाजसनेयी संहिता) – इसमें मंत्र अलग-अलग और स्पष्ट रूप से संकलित हैं।
    • कृष्ण यजुर्वेद (तैत्तिरीय संहिता) – इसमें मंत्र और ब्राह्मण ग्रंथ मिले-जुले रूप में हैं।
  3. विषयवस्तु
    • यज्ञ की विभिन्न विधियाँ, अनुष्ठान, हवन, बलि, आहुति आदि की विधिवत व्यवस्था।
    • देवताओं के लिए प्रार्थना, स्तुति और आह्वान।
    • सामाजिक एवं धार्मिक अनुशासन।
  4. उपांग –यजुर्वेद से जुड़े कई ग्रंथ हैं जैसे ब्राह्मण, आरण्यक और उपनिषद
    • शुक्ल यजुर्वेद से शतपथ ब्राह्मण और बृहदारण्यक उपनिषद जुड़े हैं।
    • कृष्ण यजुर्वेद से तैत्तिरीय आरण्यक और तैत्तिरीय उपनिषद जुड़े हैं।

. रचनाकाल

  • विद्वानों के अनुसार यजुर्वेद की रचना का काल लगभग 1500 ईसा पूर्व से 1000 ईसा पूर्व (वैदिक काल) माना जाता है।
  • यह काल ऋग्वैदिक युग और उत्तर वैदिक युग के बीच का है।
  • यजुर्वेद मुख्य रूप से यज्ञ–कर्मकांड की विधियों को व्यवस्थित करने के लिए संकलित किया गया।
  • शुक्ल और कृष्ण यजुर्वेद की संहिताएँ अलग-अलग समय में बनीं—
    • कृष्ण यजुर्वेद (तैत्तिरीय संहिता) अपेक्षाकृत प्राचीन है।
    • शुक्ल यजुर्वेद (वाजसनेयी संहिता) बाद में व्यवस्थित हुआ।

रचनाकार

  • वेद अपौरुषेय माने जाते हैं, अर्थात इनका कोई एकल मानव रचनाकार नहीं है; इन्हें ईश्वर प्रदत्त श्रुति कहा गया है।
  • परंपरा के अनुसार ऋषियों ने अपने अंतरदृष्टि (श्रुति) के द्वारा इन्हें “सुना” और आगे “गाया” या “कहा”।
  • यजुर्वेद के मंत्रों को अनेक ऋषियों ने संकलित किया। इनमें प्रमुख नाम हैं –
    • वैशम्पायन ऋषि – कृष्ण यजुर्वेद से जुड़े।
    • याज्ञवल्क्य ऋषि – शुक्ल यजुर्वेद (वाजसनेयी संहिता) के प्रवर्तक।
  • इसी कारण शुक्ल यजुर्वेद को “वाजसनेयी संहिता” कहा जाता है, क्योंकि वाजसनेयी याज्ञवल्क्य के शिष्य थे।
  • रचनाकाल – वैदिक युग (1500–1000 ई.पू.)
  • रचनाकार – किसी एक व्यक्ति द्वारा नहीं, बल्कि ऋषियों की परंपरा द्वारा; विशेष रूप से वैशम्पायन और याज्ञवल्क्य का योगदान प्रमुख।

यहाँ पर शुक्ल यजुर्वेद और कृष्ण यजुर्वेद की तुलना तालिका के रूप में दी गई है :

पहलू शुक्ल यजुर्वेद (वाजसनेयी संहिता) कृष्ण यजुर्वेद (तैत्तिरीय संहिता)
काल अपेक्षाकृत नवीन (लगभग 1200–1000 ई.पू.) अपेक्षाकृत प्राचीन (लगभग 1500–1200 ई.पू.)
संहिता स्वरूप मंत्र और ब्राह्मण ग्रंथ अलग-अलग व्यवस्थित मंत्र और ब्राह्मण ग्रंथ मिले-जुले
प्रवर्तक ऋषि याज्ञवल्क्य ऋषि (शिष्य – वाजसनेयी) वैशम्पायन ऋषि
नामकरण वाजसनेयी संहिता (वाजसनेयी याज्ञवल्क्य के शिष्य थे) तैत्तिरीय संहिता (तित्तिरि शिष्यों से संबंध)
भाषा शैली अपेक्षाकृत सरल और स्पष्ट कहीं-कहीं जटिल और गूढ़
संलग्न ब्राह्मण ग्रंथ शतपथ ब्राह्मण तैत्तिरीय ब्राह्मण
उपनिषद बृहदारण्यक उपनिषद, ईशावास्य उपनिषद तैत्तिरीय उपनिषद, कठ उपनिषद
मुख्य विषयवस्तु यज्ञ की शुद्ध और क्रमबद्ध विधियाँ यज्ञ की विधियों का मिश्रित एवं कथात्मक रूप
महत्व दार्शनिक और व्यवस्थित स्वरूप प्रदान करता है व्यावहारिक यज्ञ–विधि और परंपराओं का विवरण देता है

 

  1. महत्व –यजुर्वेद ने वैदिक कालीन समाज को यज्ञ-संस्कृति प्रदान की। यह केवल धार्मिक अनुष्ठान तक सीमित नहीं रहा, बल्कि सामाजिक, नैतिक और दार्शनिक जीवन का मार्गदर्शन भी करता है।

सरल शब्दों में, यजुर्वेद वह वेद है जिसने भारतीय जीवन में यज्ञ की परंपरा और उसके वैज्ञानिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक महत्व को स्थापित किया।

सामवेद:

सामवेद चारों वेदों में तीसरा वेद है। यह मुख्य रूप से गायन (सामगान) और संगीत से संबंधित है। सामवेद को “भारतीय संगीत का मूल स्रोत” भी कहा जाता है।

1. नाम का अर्थ

  • साम” = स्वर या गीत
  • वेद” = ज्ञान, अर्थात स्वरों के माध्यम से ईश्वर-स्तुति का ज्ञान।

2. स्वरूप

  • सामवेद में अधिकांश मंत्र ऋग्वेद से लिए गए हैं।
  • इसमें लगभग 1875 मंत्र हैं, जिनमें से 1700 मंत्र ऋग्वेद से लिए गए हैं।
  • शेष नए मंत्र सामवेद के स्वयं के हैं।
  • इसमें मंत्रों को गाने के लिए स्वर-चिह्न (नोटेशन) दिए गए हैं।

3. विभाजन

सामवेद की दो प्रमुख शाखाएँ हैं –

  1. कौथुम शाखा
  2. जैमिनीय शाखा

4. विषयवस्तु

  • देवताओं की स्तुति, विशेषकर इंद्र और सोम देवता की।
  • यज्ञों में गाए जाने वाले सामगान
  • संगीत के स्वर और रागों की प्रारंभिक रूपरेखा।

संगीत का उद्गम : “सा रे गा म प ध नि”

भारतीय शास्त्रीय संगीत का सबसे प्राचीन आधार सामवेद है। सामवेद के मंत्रों को विशेष स्वरों में गाया जाता था। इन्हीं स्वरों से आगे चलकर सप्त स्वर (सा–रे–गा–म–प–ध–नि) का विकास हुआ।

स्वर  वैदिक/संस्कृत नाम  ध्वनि/आधार (प्रकृति या पशु) प्रतीकात्मक चित्र
सा षड्ज (षड् = छह, ज = जन्म) मोर की ध्वनि
रे ऋषभ बैल की ध्वनि 🐂
गा गंधार बकरी की ध्वनि 🐐
मध्यम हंस की ध्वनि
पंचम कोयल की ध्वनि
धैवत घोड़े की ध्वनि 🐎
नि निषाद हाथी की ध्वनि 🐘

 

5. ग्रंथ और उपनिषद

  • सामवेद ब्राह्मण – पंचविंश ब्राह्मण, शड्विंश ब्राह्मण।
  • आरण्यक – चान्दोग्य आरण्यक।
  • उपनिषदछान्दोग्य उपनिषद और कैवल्य उपनिषद

6. महत्व

  1. संगीत का उद्गम – भारतीय शास्त्रीय संगीत और नाट्यशास्त्र की जड़ें सामवेद में हैं।
  2. यज्ञ में भूमिका – उद्गाता (गायक पुरोहित) द्वारा गाया जाता था।
  3. आध्यात्मिकता – सुर और लय के साथ मंत्रोच्चारण से मन, प्राण और वातावरण की शुद्धि।

संक्षेप में, सामवेद वह वेद है जिसने भारतीय संस्कृति को संगीत और भक्ति की लय प्रदान की।

अथर्ववेद:

अथर्ववेद चारों वेदों में चौथा और अंतिम वेद है। इसे ज्ञान और रहस्यों का वेद” भी कहा जाता है। इसमें यज्ञ–कर्मकांड से अलग, जीवन की व्यावहारिक समस्याओं, स्वास्थ्य, रोग-निवारण, गृह-सुख, राज्य-नीति और जादू–टोने जैसी विविध विषयवस्तु मिलती है।

1. नाम का अर्थ

  • अथर्व” = एक प्राचीन ऋषि अथर्वा का नाम, जिनसे जुड़ी परंपरा।
  • वेद” = ज्ञान। अर्थात अथर्व ऋषियों द्वारा प्रकट ज्ञान।

2. स्वरूप

  • इसमें लगभग 730 सूक्त और 6000 मंत्र हैं।
  • इसके दो प्रमुख भाग हैं –
    1. पैप्पलाद संहिता
    2. शौनक संहिता

3. विषयवस्तु

  • स्वास्थ्य और चिकित्सा – रोग-निवारण, औषधि-उपयोग, मंत्र-चिकित्सा।
  • जादू-टोना और तंत्र-मंत्र – भूत-प्रेत, शत्रु-निवारण, अपशकुन आदि।
  • गृहस्थ जीवन – विवाह, संतान, पारिवारिक सुख-समृद्धि के मंत्र।
  • राजनीति और समाज – राजा, प्रजा, युद्ध और शासन से जुड़े विचार।
  • आध्यात्मिक चिंतन – आत्मा, ब्रह्म और मोक्ष पर भी कुछ मंत्र।

4. उपांग

  • अथर्ववेद ब्राह्मण – गोपथ ब्राह्मण।
  • आरण्यक – विशेष रूप से उपलब्ध नहीं।
  • उपनिषद – मुण्डक, माण्डूक्य और प्रणवोपनिषद आदि।

5. महत्व

  1. इसे जनजीवन का वेद” भी कहते हैं, क्योंकि इसमें आम मनुष्य के सुख-दुख और समस्याएँ झलकती हैं।
  2. आयुर्वेद (भारतीय चिकित्सा शास्त्र) की जड़ें अथर्ववेद में मानी जाती हैं।
  3. इसमें धार्मिक ही नहीं, बल्कि सामाजिक, वैज्ञानिक और औषधीय ज्ञान भी है।

संक्षेप में, अथर्ववेद केवल पूजा-पाठ या यज्ञ तक सीमित नहीं है, बल्कि यह मानव जीवन के व्यावहारिक, सामाजिक और वैज्ञानिक पहलुओं का दर्पण है।

 

पहलू ऋग्वेद यजुर्वेद सामवेद अथर्ववेद
स्थान प्रथम वेद द्वितीय वेद तृतीय वेद चतुर्थ वेद
स्वरूप देवताओं की स्तुति के पद्य मंत्र यज्ञ-विधि के गद्य-पद्य मंत्र गायन हेतु मंत्र (सामगान) जीवन, चिकित्सा और जादू-टोना संबंधी मंत्र
मुख्य विषय इंद्र, अग्नि, वरुण आदि देवताओं की स्तुति यज्ञ की विधियाँ और आहुति नियम संगीत, राग और यज्ञीय गायन रोग-निवारण, गृह-शांति, तंत्र-मंत्र, औषधियाँ
मंत्रों की संख्या (लगभग) 10,552 मंत्र, 1028 सूक्त लगभग 1975 मंत्र 1875 मंत्र (अधिकतर ऋग्वेद से) 6000 मंत्र, 730 सूक्त
भाषा शैली सरल और काव्यात्मक मिश्रित (गद्य-पद्य) गीतात्मक (स्वर सहित) व्यावहारिक और विविध
उपांग (ब्राह्मण आदि) ऐतरेय ब्राह्मण, शांकायन आरण्यक, ऐतरेय उपनिषद शतपथ ब्राह्मण, तैत्तिरीय उपनिषद पंचविंश व शड्विंश ब्राह्मण, छान्दोग्य उपनिषद गोपथ ब्राह्मण, मुण्डक, माण्डूक्य उपनिषद
विशेषता/उपाधि स्तुति का वेद यज्ञ का वेद संगीत का वेद जनजीवन/औषधि का वेद
महत्व वैदिक संस्कृति का मूल स्रोत यज्ञ और सामाजिक अनुशासन का नियामक भारतीय संगीत का आधार आयुर्वेद व तंत्रज्ञान का आधार
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