भारतीय साहित्य का गौरव – ऋग्वेद
1. ऋग्वेद का अर्थ
“ऋग्वेद” शब्द दो भागों से मिलकर बना है –
भारतीय साहित्य का गौरव – ऋग्वेद
1. ऋग्वेद का अर्थ
“ऋग्वेद” शब्द दो भागों से मिलकर बना है –
अर्थात ऋग्वेद वह ग्रंथ है जिसमें जीवन, प्रकृति, देवताओं और मानवता की स्तुति के मंत्र संकलित हैं। यह वेदों में सबसे प्राचीन और महत्वपूर्ण माना जाता है।
2. रचनाकाल
घटक | विवरण |
रचनाकाल | लगभग 1500 ईसा पूर्व से 1200 ईसा पूर्व माना जाता है। |
ऐतिहासिक चरण | वैदिक सभ्यता के प्रारंभिक चरण का प्रतिनिधित्व करता है। |
रचना की प्रक्रिया | ऋषियों ने तप, ध्यान और प्रकृति के साथ संवाद कर इसे रचा। |
महत्त्व | इसे “प्रथम ग्रंथ” कहा जाता है क्योंकि इसमें आध्यात्मिकता, प्रकृति और सामाजिक जीवन की मूल बातें सम्मिलित हैं। |
घटक | विवरण |
संरचना | ऋग्वेद में कुल 10 मंडल, 1028 सूक्त, और लगभग 10,600 मंत्र हैं। |
विषय | प्रत्येक सूक्त किसी देवता या प्राकृतिक शक्ति – जैसे अग्नि, सूर्य, इन्द्र आदि – की स्तुति पर आधारित है। |
मंत्र शैली | मंत्रों का छंद, उच्चारण और स्वर विशिष्ट नियमों के अनुसार निर्धारित हैं ताकि ध्वनि से ऊर्जा और ध्यान का प्रभाव उत्पन्न हो। |
परंपरा | यह ज्ञान पीढ़ी दर पीढ़ी मौखिक रूप से सुनाया और सुरक्षित रखा गया, जिसे “श्रुति” परंपरा कहा जाता है। |
उपांग
मंडल संख्या | मंत्रों की संख्या (लगभग) | प्रमुख देवता/विषय | विशेषता |
प्रथम मंडल | 191 सूक्त | अग्नि, इंद्र, विश्वदेव | आरंभिक स्तुतियाँ, दार्शनिक चिंतन |
द्वितीय मंडल | 43 सूक्त | अग्नि, इंद्र | अपेक्षाकृत छोटा, मुख्यतः गृत्समद ऋषि के सूक्त |
तृतीय मंडल | 62 सूक्त | अग्नि, इंद्र, विश्वदेव | इसमें गायत्री मंत्र (3.62.10) सम्मिलित है |
चतुर्थ मंडल | 58 सूक्त | इंद्र, अग्नि, रुद्र | वामदेव ऋषि की ऋचाएँ |
पंचम मंडल | 87 सूक्त | अग्नि, इंद्र, मित्र–वरुण | आत्रेय ऋषि की स्तुतियाँ |
षष्ठ मंडल | 75 सूक्त | अग्नि, इंद्र, अश्विनीकुमार | भारद्वाज ऋषि की ऋचाएँ |
सप्तम मंडल | 104 सूक्त | इंद्र, अग्नि, वरुण, सरस्वती | वसिष्ठ ऋषि की स्तुतियाँ, सरस्वती स्तुति प्रसिद्ध |
अष्टम मंडल | 92 सूक्त | इंद्र, अग्नि, अश्विनीकुमार | कन्व ऋषि की ऋचाएँ |
नवम मंडल | 114 सूक्त | सोमदेव | पूर्णतः सोम स्तुति के लिए समर्पित |
दशम मंडल | 191 सूक्त | पूषा, यम, विश्वदेव, द्यावापृथ्वी | पुरुष सूक्त (10.90), नासदीय सूक्त (10.129) – सृष्टि रहस्य |
4. प्रमुख देवताओं का वर्णन
देवता | भूमिका | प्रतीक |
अग्नि | ऊर्जा, यज्ञ का माध्यम | प्रकाश, प्रेरणा |
इन्द्र | शक्ति, युद्ध, सुरक्षा | वीरता |
वरुण | जल, नियम, नैतिकता | अनुशासन |
सूर्य | प्रकाश, जीवन शक्ति | ऊर्जा, स्वास्थ्य |
मित्र | मैत्री, सहयोग | समाज में संतुलन |
अश्विनीकुमार | उपचार, स्वास्थ्य | चिकित्सा |
इन देवताओं के माध्यम से मानव जीवन की आवश्यकताओं – ऊर्जा, सुरक्षा, जल, स्वास्थ्य और सामाजिक सहयोग – का मार्गदर्शन मिलता है।
ऋग्वेद के प्रमुख सूक्त एवं मूल भाव और अर्थ:
1. गायत्री मंत्र (ऋग्वेद 3.62.10)
मंत्र – “ॐ भूर् भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात्॥”
भावार्थ –
यह मंत्र प्रकाश, ज्ञान और सत्य की साधना का प्रतीक है।
महत्व – यही भारत का सबसे पवित्र मंत्र है, जिसे “विश्व-मंत्र” भी कहा जाता है।
2. पुरुष सूक्त (ऋग्वेद 10.90)
मंत्र – “सहस्रशीर्षा पुरुषः सहस्राक्षः सहस्रपात्…”
भावार्थ –
3. नासदीय सूक्त (ऋग्वेद 10.129)
मंत्र – “नासदासीन्नो सदासीत्तदानीं…”
भावार्थ –
यह सूक्त वैज्ञानिक और दार्शनिक दृष्टिकोण से अद्वितीय है, क्योंकि यह सृष्टि की उत्पत्ति पर प्रश्न उठाता है।
ऋग्वेद भारतीय संस्कृति का आधार है। यह केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं बल्कि जीवन के हर पहलू – प्रकृति, समाज, विज्ञान, आध्यात्मिकता, स्वास्थ्य और शिक्षा – का मार्गदर्शक है। इसमें निहित ज्ञान आज भी प्रासंगिक है और आधुनिक जीवन की समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करता है। ऋग्वेद ने मानवता को ईश्वर, प्रकृति और समाज से जुड़ने की राह दिखाई है। यह भारतीय सभ्यता की शाश्वत धरोहर है जो आने वाली पीढ़ियों को ऊर्जा, ज्ञान और संतुलन प्रदान करती रहेगी।