स्वामी विवेकानंद (1863–1902), परिचय, योगदान,शिकागो धर्म संसद (1893) ,रामकृष्ण मिशन की स्थापना (1897)

स्वामी विवेकानंद

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  1. परिचय

स्वामी विवेकानंद (1863–1902) भारत के महान आध्यात्मिक गुरु, समाज सुधारक और राष्ट्रवादी विचारक थे। वे वेदांत दर्शन के समर्थक और मानव सेवा के प्रेरक थे। उन्होंने भारतीय संस्कृति, योग, ध्यान और आत्मज्ञान का संदेश भारत ही नहीं, पूरे विश्व में पहुँचाया। उन्हें युवाओं के प्रेरणास्रोत” और भारत की आत्मा का स्वर” कहा जाता है।

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  1. प्रारंभिक जीवन

✔ जन्म – 12 जनवरी 1863, कलकत्ता (अब कोलकाता) में हुआ।
✔ बाल्यकाल में ही गहरी जिज्ञासा, अध्ययनशीलता और आध्यात्मिक प्रवृत्ति दिखाई।
✔ गुरु रामकृष्ण परमहंस से दीक्षा लेकर आत्मज्ञान की ओर अग्रसर हुए।
✔ धर्म, योग और सेवा को जीवन का उद्देश्य बनाया।

  1. प्रमुख योगदान

धार्मिक और आध्यात्मिक योगदान

✔ वेदांत दर्शन का प्रचार किया
✔ मानवता में ईश्वर को देखने का संदेश दिया
✔ योग, ध्यान और आत्मानुशासन को जीवन का आधार बताया
✔ धार्मिक सहिष्णुता और एकता का संदेश दिया

राष्ट्रीय जागरण

✔ युवाओं को शिक्षा, अनुशासन और आत्मबल के लिए प्रेरित किया
✔ देशवासियों में आत्मविश्वास, सेवा भावना और राष्ट्र प्रेम जगाया
✔ “उठो, जागो और तब तक न रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए” का संदेश दिया

शिकागो धर्म संसद (1893)

✔ विश्व धर्म संसद में भारत का प्रतिनिधित्व किया
✔ वहाँ अपने भाषण में भारत की प्राचीन संस्कृति, वेदांत और सहिष्णुता का परिचय दिया
✔ भारत को विश्व मंच पर सम्मान दिलाया

रामकृष्ण मिशन की स्थापना (1897)

✔ सेवा, शिक्षा, स्वास्थ्य और आध्यात्मिक उन्नति का कार्य
✔ समाज सेवा को धर्म का अंग बताया
✔ ग्रामीण विकास और शिक्षा का प्रचार

  1. शिक्षाएँ

✔ आत्मनिर्भरता और आत्मबल
✔ शिक्षा का उद्देश्य – चरित्र निर्माण और मानसिक शक्ति
✔ सेवा और करुणा का भाव
✔ धार्मिक एकता और वैश्विक भाईचारा
✔ विज्ञान और आध्यात्मिकता का समन्वय

  1. उदाहरण

✔ शिकागो में उनके भाषण ने भारत की आध्यात्मिक महत्ता को विश्व स्तर पर स्थापित किया।
✔ रामकृष्ण मिशन के माध्यम से शिक्षा, स्वास्थ्य और सेवा कार्यों में लाखों लोगों को लाभ पहुँचा।
✔ युवाओं के लिए प्रेरणा – कई संस्थाएँ उनके विचारों पर आधारित होकर शिक्षा अभियान चला रही हैं।

  1. निष्कर्ष

स्वामी विवेकानंद ने भारत को नई दिशा दी। उन्होंने यह सिद्ध किया कि धार्मिक विश्वास केवल पूजा तक सीमित न होकर सेवा, शिक्षा और मानव कल्याण से जुड़ा होना चाहिए। उनका जीवन युवा पीढ़ी के लिए आदर्श है, जो कठिनाइयों में भी आत्मबल और विश्वास के साथ आगे बढ़ने का मार्ग दिखाता है। उन्होंने भारत को विश्व में गौरव दिलाने के साथ-साथ समाज में आत्मनिर्भरता, अनुशासन और जागृति का संदेश दिया। उनकी शिक्षाएँ आज भी प्रेरणा स्रोत हैं और मानवता की सेवा का मार्ग प्रशस्त करती हैं।

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