
- प्रस्तावना
वर्तमान कृषि प्रणाली रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों और अत्यधिक जल उपयोग पर आधारित है, जिसके परिणामस्वरूप पर्यावरणीय असंतुलन, मृदा की उर्वरता में गिरावट और मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव देखने को मिल रहे हैं। इस परिप्रेक्ष्य में, जैविक खेती (Organic Farming) एक वैकल्पिक एवं सतत कृषि पद्धति के रूप में उभरी है, जो प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण एवं पारिस्थितिक संतुलन को बनाए रखने के साथ-साथ पोषणयुक्त खाद्य उत्पादन को प्राथमिकता देती है।
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- जैविक खेती का परिचय
जैविक खेती एक ऐसी कृषि प्रणाली है जिसमें रासायनिक उर्वरक, कीटनाशक, हार्मोन और आनुवंशिक रूप से परिवर्तित जीवों (GMOs) का उपयोग नहीं किया जाता। इसकी पद्धति प्राकृतिक खाद, हरी खाद, जैविक कीटनाशकों और फसल चक्र जैसे उपायों पर आधारित होती है। यह खेती मिट्टी, जल, वायु एवं जैव विविधता को संरक्षित रखती है।
इस प्रकार जैविक खेती का आधार पारंपरिक भारतीय कृषि पद्धतियों में निहित है, जहाँ गोबर खाद, वर्मी कम्पोस्ट, हरी खाद और फसल चक्र जैसी तकनीकों से भूमि की उपजाऊ क्षमता को लंबे समय तक बनाए रखा जाता था। आज जब आधुनिक खेती ने मिट्टी, जल और मानव स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव डाले हैं, तब जैविक खेती एक दीर्घकालिक और सतत समाधान के रूप में उभरी है।
संयुक्त राष्ट्र के FAO के अनुसार, जैविक खेती “एक ऐसी उत्पादन प्रणाली है जो पर्यावरण, जैव विविधता और मानवता की भलाई को बनाए रखते हुए कृषि उत्पादन को नियंत्रित करती है।”
- ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
भारत में जैविक खेती कोई नई अवधारणा नहीं है। वैदिक युग में ऋषियों द्वारा उल्लेखित कृषि पद्धतियाँ आज की जैविक खेती से मेल खाती हैं। चरक संहिता और सुष्रुत संहिता में भी गोबर, गौमूत्र, हरी खाद जैसे तत्वों के उपयोग का उल्लेख मिलता है। आधुनिक युग में जैविक खेती को संस्थागत रूप से 1970 के दशक में यूरोप में बढ़ावा मिला और भारत में 2000 के बाद इसके प्रति रुचि तेज़ी से बढ़ी।
जैविक खेती की अवधारणा–
जैविक खेती एक कृषि प्रणाली है जो कृषि गतिविधियों में प्राकृतिक सिद्धांतों और तकनीकों का उपयोग करती है। इस प्रकार की खेती का उद्देश्य हानिकारक रसायनों का उपयोग किए बिना उच्च गुणवत्ता वाला, स्वस्थ और पर्यावरण के अनुकूल भोजन उत्पन्न करना है।
जैविक खेती की अवधारणा उस दर्शन और पारंपरिक कृषि पद्धतियों से उत्पन्न हुई है जो प्राकृतिक संसाधनों और पर्यावरण के प्राकृतिक तरीकों से संरक्षण पर ज़ोर देती है। जैविक खेती का मानना है कि प्राकृतिक पर्यावरण संतुलित होना चाहिए और रसायनों व कीटनाशकों से प्रभावित नहीं होना चाहिए।
जैविक खेती में, कुछ मौकों पर सिंथेटिक उर्वरकों और कीटनाशकों के इस्तेमाल की अनुमति होती है, लेकिन बहुत सीमित मात्रा में या शायद बिल्कुल भी नहीं। इसके बजाय, जैविक कृषि में पौधों के पोषण के स्रोत के रूप में प्राकृतिक सामग्रियों, खासकर खाद, जैसे कम्पोस्ट, हरी खाद और जैविक अपशिष्ट खाद का इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
इसका उद्देश्य मिट्टी की उर्वरता बनाए रखना और मिट्टी का प्राकृतिक संतुलन बनाए रखना है। जैविक खेती कृषि पद्धतियों के सामाजिक और आर्थिक पहलुओं पर भी ध्यान देती है। जैविक कृषि टिकाऊ कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देती है और किसानों व खेतिहर मजदूरों के अधिकारों का सम्मान करती है।
इसके अलावा, जैविक खेती में पारदर्शिता और जवाबदेही भी शामिल है, जिसमें किसानों को अच्छे कृषि मानकों और प्रथाओं को बनाए रखने की ज़िम्मेदारी दी जाती है। जैविक खेती प्रमाणन इस बात की गारंटी देता है कि उत्पादित उत्पाद सख्त मानकों को पूरा करते हैं और किसान अच्छी कृषि पद्धतियों का पालन करते हैं।
- जैविक खेती के प्रमुख सिद्धांत (Principles of Organic Farming)
4.1. स्वास्थ्य का सिद्धांत (Principle of Health):
जैविक खेती मानव, पशु, पौधों और पृथ्वी के स्वास्थ्य को बनाए रखने और सुधारने की प्रणाली है। इसमें रासायनिक तत्वों के बजाय जैविक पदार्थों का उपयोग किया जाता है।
4.2. पारिस्थितिकी का सिद्धांत (Principle of Ecology):
यह खेती पारिस्थितिक प्रक्रियाओं जैसे पोषण चक्र, जैव विविधता, और पारस्परिक सहजीवन को बनाए रखते हुए कार्य करती है।
4.3. न्याय का सिद्धांत (Principle of Fairness):
जैविक खेती सामाजिक न्याय, पारदर्शिता और मानवाधिकारों को भी महत्त्व देती है। यह किसानों, श्रमिकों, उपभोक्ताओं और जानवरों के साथ न्यायपूर्ण व्यवहार की संकल्पना पर आधारित है।
4.4. सावधानी का सिद्धांत (Principle of Care):
भविष्य के लिए संसाधनों और पर्यावरण की रक्षा हेतु जैविक खेती सतर्कता और वैज्ञानिक विवेक का अनुसरण करने का मार्ग प्रशस्त करती है।
- जैविक खेती की तकनीकें और विधियाँ
- हरी खाद (Green Manuring):
जैसे – धैन्चा, सन, मूँग आदि को खेत में उगाकर मिट्टी में मिला देना।
- वर्मी कम्पोस्ट:
केंचुओं की सहायता से जैव अपशिष्ट को पोषक खाद में परिवर्तित करना।
- जीवामृत एवं पंचगव्य:
देसी गाय के गोबर, गौमूत्र, गुड़, दही, आटा आदि से तैयार जैविक घोल।
- फसल चक्र (Crop Rotation):
एक ही भूमि पर विभिन्न प्रकार की फसलों की बारी-बारी से खेती करना जिससे मिट्टी की उर्वरता बनी रहे।
- मल्चिंग और इंटरक्रॉपिंग:
मल्चिंग द्वारा जल संरक्षण और इंटरक्रॉपिंग से कीट नियंत्रण।
- लाभ
- मिट्टी की उर्वरता बनाए रखना
- पर्यावरण प्रदूषण में कमी
- स्वस्थ एवं पोषणयुक्त उत्पाद
- दीर्घकालिक लाभ एवं निर्यात की संभावनाएँ
- भूमि, जल और जैव विविधता का संरक्षण
- चुनौतियाँ
- उत्पादकता की प्रारंभिक कमी
- जैविक इनपुट की उपलब्धता
- विपणन व्यवस्था और मूल्य निर्धारण
- प्रशिक्षण और जनजागरूकता की कमी
- प्रमाणन की जटिल प्रक्रिया
- नीति एवं सरकारी पहल
भारत सरकार ने राष्ट्रीय जैविक खेती मिशन (NPOF), परमपरागत कृषि विकास योजना (PKVY) और मिशन ऑर्गेनिक वैल्यू चेन डेवलपमेंट फॉर नॉर्थ ईस्टर्न रीजन (MOVCDNER) जैसी योजनाओं के माध्यम से जैविक खेती को बढ़ावा दिया है। इसके अतिरिक्त, Jaivik Kheti Portal और PGS-India प्रमाणन प्रणाली को भी लागू किया गया है।
- निष्कर्ष
जैविक खेती न केवल एक कृषि पद्धति है, बल्कि यह समग्र जीवन दृष्टिकोण है जो मानव, पर्यावरण और भावी पीढ़ियों के प्रति जिम्मेदारी का बोध कराता है। दीर्घकालिक लाभों, स्वास्थ्य सुरक्षा, और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण को देखते हुए यह पद्धति वर्तमान और भविष्य दोनों के लिए आवश्यक बन गई है। इसके सफल कार्यान्वयन के लिए आवश्यक है कि नीति निर्माताओं, किसानों, उपभोक्ताओं और वैज्ञानिकों के बीच समन्वय स्थापित हो।
संदर्भ:
- Brundtland Commission Report (1987) – “Our Common Future”
- FAO (Food and Agriculture Organization) Reports
- NITI Aayog – India’s Organic Farming Policy Framework
- भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) प्रकाशन
- जैविक खेती पोर्टल –jaivikkheti.in
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