- ऐतिहासिक एवं स्थापत्य धरोहर स्थल-

- ताजमहल (आगरा, उत्तर प्रदेश): विश्व धरोहर, मुग़ल स्थापत्य का उत्कृष्ट उदाहरण।
ताजमहल (आगरा, उत्तर प्रदेश) की विशेषताएं-
- विश्व धरोहर स्थल – ताजमहल को 1983 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया।
- निर्माणकाल – इसे मुग़ल सम्राट शाहजहाँ ने अपनी पत्नी मुमताज महल की स्मृति में 1632 ई. में बनवाना प्रारम्भ किया, और 1653 ई. में निर्माण कार्य पूर्ण हुआ।
- स्थापत्य कला – यह मुग़ल स्थापत्य कला का सर्वोत्तम उदाहरण है, जिसमें फ़ारसी, तुर्की और भारतीय कला का सुंदर मिश्रण है।
- संगमरमर की उत्कृष्टता – पूरा स्मारक श्वेत संगमरमर से निर्मित है, जिस पर कीमती पत्थरों की जड़ाई की गई है।
- चार बाग़ शैली (Charbagh) – ताजमहल का बगीचा फारसी चारबाग़ शैली पर आधारित है, जो चार भागों में बंटा है।
- गुम्बद – इसका मुख्य गुंबद लगभग 73 मीटर ऊँचा है और इसके चारों ओर चार छोटे गुम्बद हैं।
- मीनारें – ताजमहल की चारों ओर चार मीनारें बनी हैं, जिन्हें थोड़ा बाहर की ओर झुकाकर बनाया गया है ताकि भूकंप या आपदा की स्थिति में ये मुख्य गुंबद पर न गिरें।
- सममिति (Symmetry) – ताजमहल अपनी स्थापत्य संतुलन व सममिति के लिए प्रसिद्ध है।
- शिलालेख – इसमें कुरान की आयतें काले संगमरमर से लिखी गई हैं।
- रंग परिवर्तन – ताजमहल का रंग सूर्योदय, दोपहर और चाँदनी रात में बदलता हुआ प्रतीत होता है—कभी गुलाबी, कभी चमकीला सफेद और कभी सुनहरा।
- मक़बरा परिसर – मुख्य मकबरे के अलावा इसमें मस्जिद, मेहमानख़ाना और प्रवेश द्वार भी हैं।
- प्रेम का प्रतीक – इसे अनन्त प्रेम का प्रतीक माना जाता है और विश्वभर से लोग इसे देखने आते हैं।
रेलमार्ग (Railways)– आगरा उत्तर भारत के प्रमुख रेलवे जंक्शनों से जुड़ा है –
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- आगरा कैंट स्टेशन
- आगरा फोर्ट स्टेशन
- राजामंडी स्टेशन
दिल्ली, मुंबई, जयपुर, वाराणसी, भोपाल, ग्वालियर आदि से सीधी रेल सेवाएँ उपलब्ध हैं।
वायुमार्ग (Airways)– निकटतम हवाई अड्डा – पंडित दीनदयाल उपाध्याय हवाई अड्डा, आगरा।
यह घरेलू उड़ानों से दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु, जयपुर आदि शहरों से जुड़ा है।
अंतरराष्ट्रीय उड़ानों के लिए निकटतम हवाई अड्डा – दिल्ली का इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा (लगभग 220 किमी दूर)।
सड़क मार्ग (Roadways)– आगरा राष्ट्रीय राजमार्ग (NH-19, NH-44) द्वारा दिल्ली, कानपुर, ग्वालियर, जयपुर से जुड़ा है। दिल्ली से आगरा तक पहुँचने के लिए यमुना एक्सप्रेसवे सबसे तेज़ और आधुनिक मार्ग है। राज्य परिवहन बसें (UPSRTC) और निजी वॉल्वो बसें नियमित रूप से उपलब्ध हैं।
स्थानीय परिवहन (Local Transport)- ताजमहल घूमने के लिए ऑटो रिक्शा, बैटरी रिक्शा, टैक्सी और साइकिल रिक्शा उपलब्ध हैं। पर्यावरण संरक्षण के लिए ताजमहल के पास डीजल/पेट्रोल वाहनों की एंट्री प्रतिबंधित है, इसलिए पार्किंग से आगे बैटरी चालित वाहन या पैदल जाना पड़ता है।
- खजुराहो मंदिर (मध्य प्रदेश) –

खजुराहो मंदिर (मध्य प्रदेश) की विशेषताएं-
- विश्व धरोहर स्थल – खजुराहो के मंदिरों को 1986 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया।
- निर्माणकाल – इनका निर्माण 950 ई. से 1050 ई. के बीच चंदेल वंश के शासकों द्वारा किया गया।
- संख्या – प्रारम्भ में यहाँ लगभग 85 मंदिर थे, वर्तमान में केवल 22 मंदिर शेष हैं।
- वास्तुकला शैली – नागर शैली (उत्तर भारतीय शैली) में निर्मित, ऊँचे शिखरों और जटिल नक्काशी के लिए प्रसिद्ध।
- मुख्य मंदिर – कंदारिया महादेव मंदिर, लक्ष्मण मंदिर, विश्वनाथ मंदिर, देवी जगदंबी मंदिर आदि।
- शिल्प कला – मंदिरों पर अंकित मूर्तियाँ अत्यंत जीवंत और कलात्मक हैं। इनमें देव-देवियाँ, अप्सराएँ, नर्तक, पशु-पक्षी और मानव जीवन की झलकियाँ मिलती हैं।
- कामुक शिल्पाकृतियाँ – मंदिर की बाहरी दीवारों पर अंकित कामकला (Erotic sculptures) भारतीय जीवनदर्शन में काम (चार पुरुषार्थों में से एक) के महत्व को दर्शाती हैं।
- धार्मिक विविधता – यहाँ के मंदिर हिन्दू और जैन धर्म दोनों के लिए समर्पित हैं।
- प्राकृतिक परिवेश – मंदिर बेतवा नदी के निकट, हरे-भरे जंगलों और शांत वातावरण में स्थित हैं।
- प्रसिद्धि – ये मंदिर भारतीय कला, स्थापत्य और संस्कृति का अद्वितीय प्रतीक हैं और विश्वभर के पर्यटकों को आकर्षित करते हैं।
आवागमन के साधन- खजुराहो मंदिर (मध्य प्रदेश) तक पहुँचने के लिए आवागमन के साधन दिए गए हैं:
रेलमार्ग (Railways)– खजुराहो का अपना रेलवे स्टेशन है – खजुराहो जंक्शन। यहाँ से झांसी, कानपुर, दिल्ली, भोपाल, वाराणसी आदि प्रमुख शहरों के लिए रेलगाड़ियाँ उपलब्ध हैं।
वायुमार्ग (Airways)– खजुराहो हवाई अड्डा (Khajuraho Airport) सीधे दिल्ली, वाराणसी, भोपाल, प्रयागराज जैसे शहरों से जुड़ा हुआ है। यह मंदिरों से लगभग 5-6 किलोमीटर की दूरी पर है।
सड़क मार्ग (Roadways)– खजुराहो राष्ट्रीय एवं राज्य राजमार्गों से जुड़ा हुआ है। नज़दीकी बड़े शहरों जैसे सतना (120 किमी), झांसी (175 किमी), बांदा (125 किमी), जबलपुर (250 किमी) से बस व टैक्सी सेवाएँ उपलब्ध हैं। एमपीएसआरटीसी (Madhya Pradesh State Road Transport) और निजी बसें नियमित रूप से चलती हैं।
स्थानीय परिवहन (Local Transport)– मंदिर समूह घूमने के लिए ऑटो, टैक्सी, रिक्शा, ई-रिक्शा और साइकिल किराए पर आसानी से मिलते हैं। कई पर्यटक साइकिल या पैदल घूमकर मंदिरों का आनंद लेना पसंद करते हैं।
- कोणार्क सूर्य मंदिर (ओडिशा):

कोणार्क सूर्य मंदिर (ओडिशा) की विशेषताएं–
- विश्व धरोहर स्थल – इसे 1984 में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया।
- निर्माणकाल – इस मंदिर का निर्माण गंगा वंश के राजा नरसिंहदेव प्रथम ने लगभग 1250 ई. में कराया।
- समर्पित देवता – यह मंदिर सूर्य देव (सूर्यनारायण) को समर्पित है।
- रथ के आकार की संरचना – मंदिर को विशाल रथ के रूप में बनाया गया है, जिसमें 12 जोड़ी विशाल पत्थर के पहिये और 7 घोड़े हैं।
- वास्तुकला शैली – मंदिर कलिंग शैली का उत्कृष्ट उदाहरण है।
- शिल्पकला – मंदिर की दीवारों पर देवताओं, गंधर्वों, नर्तकियों, संगीतकारों, युद्ध दृश्य, पशु-पक्षी और कामकला की अद्भुत नक्काशी की गई है।
- अद्भुत विज्ञान दृष्टिकोण – मंदिर के पत्थरों को लोहे के छड़ों और चुंबकीय संरचना से जोड़ा गया था, जिससे मुख्य शिखर पर रखा विशाल चुम्बक सूर्य की मूर्ति को हवा में संतुलित करता था (अब नष्ट हो चुका)।
- सूर्य की दिशा – मंदिर का मुख्य प्रवेश द्वार पूर्व दिशा में है, जहाँ से सुबह की पहली किरणें सीधे सूर्य देव की प्रतिमा पर पड़ती थीं।
- संरचना की भव्यता – मूल मंदिर लगभग 70 मीटर ऊँचा था, परंतु अब केवल जगमोहन (मंडप) ही शेष है।
- नामकरण – “कोणार्क” नाम “कोण” (कोना) + “अर्क” (सूर्य) से मिलकर बना है। इस मंदिर को ‘ब्लैक पगोड़ा’ भी कहा जाता है।
- नृत्य महोत्सव – यहाँ प्रतिवर्ष कोणार्क नृत्य महोत्सव आयोजित होता है, जिसमें शास्त्रीय नृत्य व संगीत की प्रस्तुतियाँ होती हैं।
- सांस्कृतिक प्रतीक – यह मंदिर न केवल धार्मिक स्थल है बल्कि भारतीय स्थापत्य, शिल्प और खगोल विज्ञान का अद्वितीय प्रतीक भी है।
आवागमन के साधन –
रेलमार्ग (Railways)– निकटतम रेलवे स्टेशन-
- पुरी जंक्शन (लगभग 35 किमी)-
- भुवनेश्वर स्टेशन (लगभग 65 किमी)- ये दोनों स्टेशन भारत के प्रमुख शहरों – कोलकाता, चेन्नई, दिल्ली, हैदराबाद, मुंबई आदि से जुड़े हैं।
वायुमार्ग (Airways)–
निकटतम हवाई अड्डा- भुवनेश्वर का बीजू पटनायक अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा (लगभग 65 किमी दूर)। यहाँ से दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, बेंगलुरु, हैदराबाद समेत प्रमुख शहरों के लिए सीधी उड़ानें उपलब्ध हैं।
सड़क मार्ग (Roadways)– कोणार्क राष्ट्रीय राजमार्गों और राज्य मार्गों से अच्छी तरह जुड़ा है। पुरी (35 किमी) और भुवनेश्वर (65 किमी) से नियमित बसें, टैक्सी और निजी वाहन उपलब्ध हैं। ओडिशा पर्यटन विकास निगम की बसें और वोल्वो सेवाएँ भी चलती हैं।
स्थानीय परिवहन (Local Transport) -कोणार्क नगर में घूमने के लिए ऑटो रिक्शा, टैक्सी, मिनी बसें और साइकिल रिक्शा उपलब्ध हैं। पर्यटक मंदिर और आसपास के समुद्र तट (कोणार्क बीच, चंद्रभागा बीच) तक आसानी से पहुँच सकते हैं।
- हम्पी (कर्नाटक): विजयनगर साम्राज्य की धरोहर, स्थापत्य और संस्कृति का केंद्र।

प्रमुख विशेषताएं – हम्पी (कर्नाटक)-
- ऐतिहासिक महत्व
- हम्पी विजयनगर साम्राज्य (14वीं–16वीं शताब्दी) की राजधानी था।
- यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त।
- वास्तुकला
- यहाँ के मंदिर, स्तंभ, मंडप और महल विजयनगर शैली की उत्कृष्ट कृतियाँ हैं।
- प्रमुख स्थापत्य में पत्थरों से बने भव्य मंदिर, बाजार, राजमहल, और युद्ध संरचनाएँ शामिल हैं।
- प्रसिद्ध स्थल
- विरुपाक्ष मंदिर – भगवान शिव को समर्पित, आज भी पूजा स्थल।
- विट्ठल मंदिर – रथ मंदिर और संगीतमय स्तंभों के लिए प्रसिद्ध।
- पत्थर का रथ – हम्पी का प्रतीक।
- हेमकूट पहाड़ी, हज़ार राम मंदिर, लोटस महल, हाथीशाला आदि प्रमुख आकर्षण।
- भौगोलिक विशेषता
- तुंगभद्रा नदी के किनारे स्थित।
- चारों ओर विशाल चट्टानी पहाड़ियाँ, प्राकृतिक दृश्यों के साथ।
- सांस्कृतिक महत्व
- यहाँ वार्षिक हम्पी उत्सव मनाया जाता है, जिसमें नृत्य, संगीत और संस्कृति का अद्भुत संगम देखने को मिलता है।
- विशिष्टता
- हम्पी को कभी “दूसरा किष्किंधा” भी कहा जाता है, क्योंकि रामायण काल से भी इसका संबंध माना जाता है।
- यहाँ लगभग 1600 से अधिक स्मारक हैं।
विश्लेषण: ये स्थल भारत की स्थापत्य कला, धार्मिक सहिष्णुता और ऐतिहासिक वैभव को दर्शाते हैं।
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