जीवंत परम्पराओं की सुरक्षा और परिरक्षण, संस्थाएं, तकनीक और कानून की व्याख्या कीजिए ।

परिचय-

जीवंत परंपराओं की सुरक्षा और परिरक्षण का महत्व हमारे सांस्कृतिक धरोहरों को सहेजने में निहित है। यह परंपराएं हमारी पहचान, मूल्यों और सामाजिक ताने-बाने का अभिन्न हिस्सा होती हैं। इनके संरक्षण से न केवल भविष्य की पीढ़ियों को हमारे सांस्कृतिक वैभव का ज्ञान मिलता है, बल्कि यह सतत विकास में भी सहायक होती हैं।

संस्थाएं, जैसे कि UNESCO, इन परंपराओं के संरक्षण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इनके अलावा, स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर पर सरकारें और गैर-सरकारी संगठन भी संरक्षण के प्रयास करते हैं। तकनीकी दृष्टिकोण से, डिजिटल आर्काइविंग और मल्टीमीडिया उपकरणों के माध्यम से इन परंपराओं का दस्तावेजीकरण और प्रसार किया जा रहा है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि ये परंपराएं विलुप्त न हों और नए पीढ़ियों तक पहुंचें।

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यूनेस्को द्वारा (1972) संधि के अंतर्गत सांस्कृतिक धरोहरों के संरक्षण को बढ़ावा दिया जाता है। विधिक दृष्टिकोण से, कई देशों में सांस्कृतिक धरोहरों की सुरक्षा के लिए कानून बनाए गए हैं, जो इन परंपराओं के दुरुपयोग को रोकते हैं और संरक्षण को बढ़ावा देते हैं। इसके अलावा, अंतर्राष्ट्रीय संधियाँ और समझौते, जैसे कि सांस्कृतिक अभिव्यक्तियों की विविधता पर कन्वेंशन, इनकी रक्षा में महत्वपूर्ण योगदान करते हैं। आइए इसका निम्न बिंदुओं के आधार पर अवलोकन करते हैं-

भारत का संविधान: अनुच्छेद 49 –

भारतीय संविधान के तीन खंड हैं, जिन्हें विशेष रूप से भारतीय संस्कृति के सरंक्षण के लिए निर्दिष्ट किया गया है। सरकार और संविधान परिरक्षण के इस कार्य में विशिष्ट भूमिका निभाते हैं, क्योंकि इतिहास, ललित कलाएँ, साहित्यिक, सरलाकृतियाँ विश्व पटल पर हमारे देश की समृद्ध और सम्मिश्रित विरासत का चिरकाक्षिक प्रभाव पैदा करती हैं।

कानून और संस्कृति:

भारत समृद्ध और विविध सांस्कृतिक विरासत के साथ प्राचीन और जीवित सभ्यताओं वाला देश है। यह सांस्कृतिक विविधता हजारों में भारत की विशाल भूमि में असंख्य सांस्कृतिक प्रवृत्तियों को आत्मसात करने के कारण उत्पन्न हुई है। संस्कृतियों, भाषाओं, आस्थाओं और धर्मों के समृद्धशाली संश्लेषण ने भारत को एक एकीकृत सांस्कृतिक समग्रता में आकार दिया है। आज यह एक निर्विवाद तथ्य है कि भारत अभी भी अपनी विविधता में मौजूद एकता के लिए वैश्विक स्तर पर जाना जाता है। भारत को सांस्कृतिक विरासत इस एकल एकीकृत सांस्कृतिक समग्रता का प्रतिनिधित्व करती है। इसलिए, एकल एकीकृत सांस्कृतिक संपूर्णता की रक्षा करने और विविधता में एकता बनाए रखने के लिए सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण महत्वपूर्ण हो जाता है।

सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण के लिए भारत का संविधान विभिन्न संवैधानिक प्रावधान करता है, जो भारत की सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भारतीय संविधान में हाइलाइट किए गए कुछ लेख जो भारत की सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण को संदर्भित करते हैं, वे हैं अनुच्छेद 29, 49 और 51A(F) हैं।

अनुच्छेद 29-

कहता है कि-  भारत के राज्य क्षेत्र या किसी भी भाग में रहने वाले नागरिकों के किसी भी वर्ग की अपनी अलग भाषा, लिपि या संस्कृति होने पर उसे संरक्षित करने का अधिकार होगा। किसी भी नागरिक को केवल धर्म, नस्ल, जाति, भाषा या इनमें से किसी के आधार पर राज्य द्वारा संचालित या राज्य निधि से सहायता प्राप्त किसी भी शैक्षणिक संस्थान में प्रवेश से वाचत नहीं किया जाएगा।

अनुच्छेद 49

संविधान के अनुच्छेद 49 के अनुसार संसद द्वारा बनाई गई विधि द्वारा या उसके अधीन राष्ट्रीय महत्व वाले घोषित किए गए कलात्मक या ऐतिहासिक अभिरुचि वाले प्रत्येक संस्मारक, स्थान या वस्तुकाय या स्थिति विरूपण विनाश, अपसारण, व्यय या निर्यात से संरक्षण करना राज्य की बाध्यता होगी।

अनुच्छेद 51क (च):

यह भारतीय संविधान के भाग IV-A के सहत अनुच्छेद 511 में सूचीबद्ध मौलिक कर्तव्यों का एक हिस्सा है। यह हमारी समग्र संस्कृति की समृद्ध विरासत को महत्व देने और संरक्षक भारत के नागरिकों के कर्तव्यों के बारे में बात करता है। यह इस तथ्य पर ध्यान केंद्रित करता है कि व्यक्तिगत स्तर पर, यह भारत के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह अपनी सांस्कृतिक विरासत की रक्षा और संरक्षण करें, जिससे समग्र विकास हो सके।

  1. प्राकृतिक विरासत के संरक्षण के लिए विधायी प्रावधानAMSAR अधिनियम या प्राचीन स्मारक तथा पुरातत्व स्थल और अवशेष अधिनियम 1958- यह प्राचीन और ऐतिहासिक स्मारकों, पुरातात्विक स्थलों और मूर्तियों के संरक्षण के लिए कानूनी प्रावधान प्रदान करता है।

अधिनियम के तहत प्रावधानः

  • भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण इस अधिनियम के प्रावधानों के तहत कार्य करता है और भारत में सभी प्रतिष्ठित स्मारकों का संरक्षक है।
  • अधिनियम एक संरक्षित स्मारक के चारों ओर 100 मीटर के क्षेत्र में ‘निषिद्ध क्षेत्र’ में निर्माण पर रोक लगाता है।
  • केंद्र सरकार प्रतिबंधित क्षेत्र को 100 मीटर से आगे बढ़ा सकती है।
  • ताजमहल, अजंता की गुफ़ाएं और कोणार्क का सूर्य मंदिर जैसे प्रतिष्ठित स्मारकों को एएमएसएआर अधिनियम के तहत संरक्षित किया गया है।

सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण सरकारी पहल :

राष्ट्रीय विरासत शहर विकास और वृद्धि योजना (हृदय):- HRIDAY पर्यटन क्षेत्र में सुधार और विरासत को संरक्षित करने के लिए शहरी और पुनरुद्धार सुविधाओं सेवाओं और संरक्षण के साथ चयनित विरासत स्थलों का आधुनिकीकरण करने के उद्देश्य से केंद्र सरकार की एक पहल है। योजना के तहत विकास के लिए 12 शहरों को सूचीबद्ध किया गया है। शहरों में अजमेर, अमृतसर, अमरावती, बादामी, द्वारका, गया, कांचीपुरम, मथुरा, पुरी, वाराणसी वेलंकन्नी और वारंगल शामिल हैं।

एक विरासत अपनाएं अपनी धरोहर, अपनी पहचान :-

  • इस पहल का उद्देश्य विरासत स्थल पर पर्यटन सुविधाओं को विकसित करना और स्थलों को पर्यटकों के अनुकूल बनाना है।
  • स्थलों या स्मारकों को वार्षिक फुटफॉल के आधार पर चुना जाता है और स्मारक को निजी या सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी द्वारा अपनाया जा सकता है. जिसे स्मारक मित्र के रूप में जाना जाता है।

तीर्थयात्रा कायाकल्प और आध्यात्मिक संवर्द्धन अभियान (प्रसाद ):-  PRASHAD योजना एक केंद्रीय क्षेत्र की योजना है जिसका उद्देश्य चिन्हित तीर्थ और विरासत स्थलों का एकीकृत विकास करना है।

प्रमुख विशेषताएं –

  • प्रवेश बिंदु (रेल, सड़क और जल परिवहन) जैसे विश्व स्तरीय बुनियादी ढांचे का विकास करना।
  • कनेक्टिविटी और बुनियादी पर्यटन सुविधाएं प्रदान करना।
  • सुदृढ़ ढंग से पर्यटकों के आकर्षण को बढ़ाना।
  • आजीविका सृजित करते हुए स्थानीय कला, हस्तकला, संस्कृति और खान-पान को बढ़ावा देकर एकीकृत पर्यटन विकास को बढ़ावा देना।

 

स्वदेश दर्शन योजना:

स्वदेश दर्शन योजना (Swadesh Darshan Scheme) भारत सरकार द्वारा 2014-15 में शुरू की गई एक प्रमुख पहल है, जिसका उद्देश्य देश में पर्यटन को बढ़ावा देना और पर्यटन स्थलों का समग्र विकास करना है। इस योजना के तहत थीम आधारित पर्यटक सर्किटों का विकास किया जाता है, जिससे पर्यटकों को बेहतर सुविधाएं और अनुभव प्रदान किया जा सके।

पर्यटक सर्किट क्या है?

पर्यटक सर्किट को ऐसे मार्ग के रूप में परिभाषित किया जाता है जिस पर कम से कम तीन प्रमुख पर्यटन स्थल हों जो एक ही कस्बे, गांव या शहर में न हों और साथ ही एक दूसरे से बहुत दूर न हों। पर्यटक सर्किट में प्रवेश और निकास बिंदु अच्छी तरह से परिभाषित होने चाहिए। इसलिए, प्रवेश करने वाले पर्यटक को सर्किट में पहचाने गए अधिकांश स्थानों पर जाने के लिए प्रेरित होना चाहिए। अब, थीम-आधारित पर्यटन सर्किट विशिष्ट थीमों जैसे धर्म, संस्कृति, जातीयता, स्थान आदि पर आधारित सर्किट हैं। थीम-आधारित सर्किट एक राज्य तक सीमित हो सकता है या एक से अधिक राज्यों या केंद्र शासित प्रदेशों को कवर करने वाला क्षेत्रीय सर्किट भी हो सकता है।

प्रमुख उद्देश्य-

पर्यटक सर्किटों का विकास:-

  • देश के विभिन्न हिस्सों में थीम आधारित पर्यटक सर्किटों का विकास करना।
  • प्रत्येक सर्किट को एक समग्र पर्यटन अनुभव प्रदान करने के लिए आवश्यक सुविधाओं से लैस करना।

पर्यटन को बढ़ावा देना:-

  • पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए पर्यटन स्थलों का प्रचार-प्रसार और विकास।
  • स्थानीय अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करना और रोजगार के अवसर पैदा करना।

संस्कृति और धरोहर का संरक्षण:-

  • सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर स्थलों का संरक्षण और संवर्धन।
  • स्थानीय कला, संस्कृति और हस्तशिल्प को बढ़ावा देना।

प्रमुख सर्किट

स्वदेश दर्शन योजना के तहत निम्नलिखित प्रमुख थीम आधारित सर्किटों का विकास किया जा रहा है:

बौद्ध सर्किट:- बोधगया, सारनाथ, कुशीनगर आदि प्रमुख बौद्ध स्थलों का विकास।

रामायण सर्किट:- अयोध्या, चित्रकूट, हंपी आदि रामायण से जुड़े स्थलों का विकास।

महाभारत सर्किट:- कुरुक्षेत्र, हस्तिनापुर, दिल्ली आदि महाभारत से जुड़े स्थलों का विकास।

कृष्णा सर्किट:- मथुरा, वृंदावन, द्वारका आदि कृष्ण से जुड़े स्थलों का विकास।

हिमालयन सर्किट:- हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर आदि हिमालयी क्षेत्रों का विकास।

डेजर्ट सर्किट:- राजस्थान के जैसलमेर, बीकानेर, जोधपुर आदि रेगिस्तानी स्थलों का विकास।

आदिवासी सर्किट:- छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा आदि राज्यों के आदिवासी क्षेत्रों का विकास।

कोस्टल सर्किट:- केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश आदि तटीय क्षेत्रों का विकास।

प्रमुख गतिविधियाँ-

प्रणालीबद्ध योजना और कार्यान्वयन:-

  • सर्किटों के लिए विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (DPR) तैयार करना।
  • आवश्यक अवसंरचना का निर्माण और सुधार।

संवर्धन और प्रचार:-

  • विभिन्न माध्यमों से पर्यटक सर्किटों का प्रचार-प्रसार।
  • घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए विपणन रणनीतियाँ।

सामुदायिक भागीदारी:-

  • स्थानीय समुदायों की भागीदारी को सुनिश्चित करना।
  • पर्यटन स्थलों पर स्थानीय लोगों के लिए रोजगार और व्यावसायिक अवसर सृजित करना।

पर्यटन सुविधाओं का विकास:-

  • पर्यटक सूचना केंद्र, गाइड सेवाएं, परिवहन सुविधाएं, ठहरने की सुविधाएं और स्वच्छता सुविधाएं विकसित करना।
  • पर्यटकों की सुरक्षा और सुविधा के लिए आवश्यक उपाय करना।

निष्कर्ष-

स्वदेश दर्शन योजना भारत में पर्यटन के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण पहल है। इसके माध्यम से थीम आधारित पर्यटक सर्किटों का विकास न केवल पर्यटकों को एक समृद्ध और विविधतापूर्ण अनुभव प्रदान करता है, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था और सांस्कृतिक धरोहर को भी बढ़ावा देता है। इस योजना से पर्यटन क्षेत्र में संरचनात्मक सुधार और विकास को गति मिली है, जिससे देश की सांस्कृतिक और प्राकृतिक धरोहरों को संरक्षित और सुदृढ़ किया जा सके।

शताब्दी और वर्षगांठ योजनाः

इसका उद्देश्य 125वीं/ 150वीं/175वीं आदि जैसी प्रतिष्ठित हस्तियों और ऐतिहासिक घटनाओं की शताब्दी और विशेष वर्षगांठ मनाना है। यह अनुच्छेद सम्पूर्ण रूप से उन समुदायों की संस्कृति की रक्षा करने पर केन्द्रित है, जिसमें भारतीय संविधान के अनुसार अल्पसंख्यकों का समावेश है। संविधान के अनुसार – “भारत के राज्यक्षेत्र या उसके किसी भाग में निवास करने वाले, किसी भी वर्ग के नागरिकों को, जिनकी अपनी एक विशिष्ट भाषा, लिपि या संस्कृति हो, उसे संरक्षित करने का अधिकार प्रदान करता है।” जैसा कि इस उद्धरण से यह स्पष्ट हो जाता है कि यह प्रविधान छत्तीसगढ़, राजस्थान, उत्तरी-पश्चिमी क्षेत्रों, ओडिशा की आदिवासी जाति के लोगों तथा संख्या की दृष्टि से छोटे समूहों, जैसे पारसियों को अपनी संस्कृति, भाषा और साहित्य को संरक्षित करने के लिए क़दम उठाने की अनुमति देता है। इससे अपनी विरासत को संरक्षित करने के लिए राज्य और किसी राज्य द्वारा वित्त पोषित एजेंसी से सहायता प्राप्त करने से संबंधित उनके अधिकार की भी पुष्टि होती है। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि किसी भी नागरिक को उनके धर्म, जाति, भाषा, नस्ल या उनमें से किसी भी आधार पर; राज्य द्वारा अनुरक्षित संस्थान द्वारा, सहयोग से वंचित नहीं किया जाएगा।

अनुच्छेद 49:

स्मारकों और राष्ट्रीय महत्त्व वाले स्थानों और वस्तुओं का संरक्षण संविधान के इस अनुच्छेद में उन सभी स्मारकों और वस्तुओं के महत्त्व के बारे में बताया गया है, जिनका सम्बन्ध भारत की विरासत के साथ है। राष्ट्रीय महत्त्व वाली इन वस्तुओं के क्षतिग्रस्त होने की स्थिति में इनका संरक्षण राज्य के अधीन होगा। संविधान कहता है कि:

  1. कलात्मक या ऐतिहासिक रुचि वाले प्रत्येक स्मारक या स्थान या वस्तु की रक्षा करना राज्य का दायित्व होगा।
  2. जिस किसी स्मारक को संसद द्वारा या उसके द्वारा बनाये गये क़ानून के अंतर्गत राष्ट्रीय महत्त्व वाला स्मारक घोषित कर दिया गया है, उस स्मारक को विकृति, विरूपण, विनाश, निष्कासन, निपटान या निर्यात, किसी भी अवस्था में बचाना चाहिए।

अनुच्छेद  51A(f) :

भारतीय संस्कृति की समृद्ध विरासत का महत्त्व और संरक्षण प्रभाव पैदा करती है। संस्कति के मूर्त और अमूर्त विरासत को महत्व देने का निर्देश देता है। हमारे समाज की परम्पराओं को संरक्षित करता है, इसलिए नागरिकों को उसमें अपनी भूमिका निभानी चाहिए।

संस्कृति से संबंधित अन्य विधान

इन अनुच्छेदों के अतिरिक्त, संविधान और हमारे क़ानून निर्माताओं ने कई अधिनियम भी बनाये हैं, जिनके अंतर्गत हमारी संस्कृति से संबंधित कानूनों को तोड़ने वालों को दण्डित किया जाता है। प्राथमिक अधिनियमों में से कुछ निम्नलिखित है।

  • भारतीय गुप्त कोष अधिनियम, 1878 –

भारतीय गुप्त कोष अधिनियम, 1878 (The Indian Treasure Trove Act, 1878) भारत में पुरातात्विक धरोहरों और गुप्त कोषों की खोज, रिपोर्टिंग और उनके अधिकारों के निर्धारण के लिए स्थापित एक ऐतिहासिक कानून है। इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य उन वस्तुओं का प्रबंधन और संरक्षण करना है, जो जमीन में छिपी हुई मिलती हैं और जिनका मालिकाना हक निर्धारित नहीं होता।

प्रमुख प्रावधान

गुप्त कोष:

  • कोई भी ऐसा धन, सिक्के, आभूषण या अन्य मूल्यवान वस्तु जो छिपी हुई हो और जिसका मालिकाना हक स्पष्ट न हो।

खोज की रिपोर्टिंग:-

  • यदि कोई व्यक्ति किसी गुप्त कोष की खोज करता है, तो उसे तत्काल स्थानीय जिला अधिकारी (जिलाधिकारी) को इसकी सूचना देनी होती है।
  • गुप्त कोष की खोज को छिपाना या झूठी जानकारी देना अवैध है और इसके लिए दंड का प्रावधान है।

जांच और मूल्यांकन:-

  • जिलाधिकारी द्वारा गुप्त कोष की जांच की जाती है और उसका मूल्यांकन किया जाता है।
  • अगर गुप्त कोष का ऐतिहासिक या पुरातात्विक महत्व होता है, तो उसे संरक्षित किया जा सकता है।

मालिकाना हक का निर्धारण:-

  • यदि गुप्त कोष का मालिकाना हक साबित नहीं होता, तो उसे सरकारी संपत्ति घोषित किया जा सकता है।
  • खोजकर्ता को इनाम या गुप्त कोष का एक हिस्सा दिया जा सकता है, जिसे कानून में निर्दिष्ट किया गया है।

न्यायिक प्रक्रिया:-

  • गुप्त कोष से संबंधित विवादों का निपटारा न्यायालय द्वारा किया जा सकता है।
  • गुप्त कोष के दावेदार को पर्याप्त सबूत प्रस्तुत करने की आवश्यकता होती है।

दंड और सजा:-

  • अधिनियम का उल्लंघन करने पर, जैसे कि गुप्त कोष की रिपोर्टिंग में असफलता, दंड और सजा का प्रावधान है।
  • यह सजा आर्थिक जुर्माना या कारावास हो सकता है।

उद्देश्य और महत्व-

पुरातात्विक धरोहर का संरक्षण:-

  • पुरातात्विक महत्व के गुप्त कोषों का संरक्षण और प्रबंधन सुनिश्चित करना।
  • ऐतिहासिक धरोहरों को भविष्य की पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रखना।

वैधता और पारदर्शिता:-

  • गुप्त कोष की खोज और रिपोर्टिंग में पारदर्शिता और वैधता सुनिश्चित करना।
  • अवैध रूप से खोजे गए गुप्त कोषों के उपयोग को रोकना।

सरकारी और खोजकर्ता के अधिकारों का संतुलन:-

  • गुप्त कोष पर सरकार और खोजकर्ता दोनों के अधिकारों का संतुलन स्थापित करना।
  • खोजकर्ता को उचित इनाम देकर प्रोत्साहित करना।

निष्कर्ष

भारतीय गुप्त कोष अधिनियम, 1878 एक महत्वपूर्ण कानून है, जो गुप्त कोषों की खोज, रिपोर्टिंग और उनके प्रबंधन के लिए एक स्पष्ट ढांचा प्रदान करता है। इस अधिनियम का उद्देश्य पुरातात्विक और ऐतिहासिक धरोहरों का संरक्षण और वैधता सुनिश्चित करना है। इसके माध्यम से गुप्त कोषों की खोज में पारदर्शिता बनी रहती है और भविष्य की पीढ़ियों के लिए सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहरों का संरक्षण सुनिश्चित होता है।

  • प्राचीन स्मारक संरक्षण अधिनियम, 1904 –

ब्रिटिश सरकार ने सरकार को स्मारक पर प्रभावी संरक्षण और अधिकार प्रदान करने हेतु इस अधिनियम का गठन किया, ताकि राष्ट्रीय विरासत का संरक्षण हो सके। यह अधिनियम विशेष रूप से उन स्मारकों से संबंधित था, जो व्यक्तिगत दायित्व या निजी स्वामित्व के अधीन थे। केंद्र सरकार और स्वामी किसी भी संरक्षित स्मारक के संरक्षण के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर करेंगे। यह स्वामी को स्मारक में कुछ जोड़ने, उसे ध्वस्त करने, उसमें परिवर्तन करने या उसे विरूपित करने से भी रोकता है। यदि उस भूमि को बेचा जा रहा है, जिस पर वह स्मारक स्थित है, तो उस भूमि को खरीदने का प्रथम अधिकार सरकार का होगा।

प्राचीन स्मारक संरक्षण अधिनियम, जिसे पहली बार 1904 में लागू किया गया संशोधन के बाद यह प्राचीन स्मारक संरक्षण (संशोधन) अधिनियम बन गया। इसके अतिरिक्त 1958 में केन्द्र सरकार तथा 1932 में संशोधित किया गया।

उल्लेखनीय है कि संसद ऐतिहासिक पुरातात्विक स्थलों को और अच्छी तरह से संरक्षित करने के लिए प्राचीन स्मारक और “पुरातात्विक स्थल  (संशोधन और विधिमान्यकरण) अधिनियम, 2010″ का संशोधित संस्करण ले आयी जो इस प्रकार है-

  1. A) पुरावस्तु (निर्यात नियंत्रण) अधिनियम-1947

जब भारत आजाद हुआ तो बहुत बड़ी संख्या में भारत से प्राचीन धरोहरों एवं कलाकृतियाँ को लोग अपने साथ ले जा रहे थे। तब यह अधिनियम लागू किया गया। यह अधिनियम मोर्टीमर व्हीलर के काल में पारित किया गया था।  पुरावस्तु (निर्यात नियंत्रण) अधिनियम, 1947 के अनुसार भारत की सीमा के बाहर क्या ले जाया जा सकता है और क्या नही। इस विनियमन के दो प्रमुख विधान हैं –

  • ASI के महानिदेशक को भारत से निर्यात की जा रही किसी भी वस्तु के लिए एक लाइसेंस जारी करता पड़ता है।
  • ASI के महानिदेशक को यह निर्णय करने का भी अधिकार होता है कि कोई सामग्री, चीड़ या वस्तु एक पुरावशेष है या नहीं। इस अधिनियम की सीमा के अंतर्गत वस्तु की स्थिति के बारे में उनका निर्णय होगा।

 प्राचीन एवं ऐतिहासिक स्मारक और पुरातात्विक स्थल एवं अवशेष (राष्ट्रीय महत्त्व की घोषणा) अधिनियम, 1951

इस अधिनियम के अंतर्गत, ऐतिहासिक महत्त्व वाले सभी स्मारकों और पुरातात्विक स्थलों को, जिन्हें पहले प्राचीन स्मारक संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत रखा गया था, पुनः राष्ट्रीय महत्त्व का घोषित किया गया। 1951 में लगभग 450 स्मारकों और पुरातात्विक स्थलों को 1904 की मूल सूची में जोड़ दिया गया। इस अधिनियम में कुछ कमियाँ थीं और भारतीय पुरातात्विक समृद्धि के संरक्षण में समता लाने के लिए 1958 में प्राचीन स्मारक और पुरातात्विक स्थल एवं अवशेष अधिनियम 1958 नामक एक संशोधित संस्करण पास किया गया। अधिनियम के इस संस्करण को विशेष रूप से भौतिक कलाकृतियों, जैसे-मूर्तियों, नक्काशियों और ऐसी अन्य वस्तुओं को संरक्षित करने की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए लागू किया गया था।

1958 का अधिनियम (1) प्राचीन स्मारक संरक्षण अधिनियम-1904 (ii) प्राचीन और ऐतिहासिक स्मारक और पुरातात्विक स्थल और अवशेष (राष्ट्रीय महत्त्व की घोषणा) अधिनियम-1951 और (iii) राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 को धारा 126 को निरस्त करके बनाया गया था। इस अधिनियम में 2010 में संशोधन कर, इसे प्राचीन स्मारक और पुरातात्विक स्थल एवं अवशेष (संशोधन एवं विधिमान्यकरण) अधिनियम-2010′ शीर्षक दिया गया। इस अधिनियम के मुख्य प्रविधान हैं:

  • केंद्र सरकार के पास प्राचीन और मध्य काल के किसी भी स्मारक या पुरातात्विक स्थल को राष्ट्रीय महत्त्व का कोष घोषित करने का अधिकार है।
  • महानिदेशक को केंद्र सरकार से, ऐसे किसी स्थल या स्मारक की संरक्षकता लेने, खरीदने या पट्टे पर लेने और उसके संरक्षण एवं अनुरक्षण को सुनिश्चित करने का अधिकार प्राप्त होगा।
  • यह अधिनियम, सरकार और महानिदेशक को पुरावस्तुओं के संरक्षण के लिए उन्हें अपने अधिकार में लेने, वस्तुओं के आवागमन को नियंत्रित करने भूमि, स्मारक इत्यादि के क्षतिग्रस्त होने पर अर्थदंड लगाने का अधिकार है।

बहुमूल्य कलाकृति अधिनियम, 1972

बहुमूल्य कलाकृति अधिनियम, 1972 (Antiquities and Art Treasures Act, 1972) भारत सरकार द्वारा स्थापित एक महत्वपूर्ण कानून है, जिसका उद्देश्य बहुमूल्य कलाकृतियों और पुरावशेषों की तस्करी, चोरी और अवैध व्यापार को रोकना और उनके संरक्षण को सुनिश्चित करना है। इस अधिनियम के अंतर्गत पुरातात्विक और कलात्मक धरोहरों की सुरक्षा और उनकी पहचान को कानूनी संरक्षा प्रदान की गई है।

प्रमुख प्रावधान-

पुरावशेष:- इसमें 100 साल से अधिक पुरानी कोई भी वस्तु, मूर्ति, शिलालेख, सिक्के, दस्तावेज़ आदि शामिल हैं।

कलाकृति:- इसमें 100 साल से अधिक पुरानी कोई भी चित्रकला, मूर्तिकला, शिल्पकला, या अन्य कलात्मक वस्तु शामिल है।

पंजीकरण और लाइसेंसिंग:-

  • अधिनियम के अंतर्गत सभी पुरावशेषों और बहुमूल्य कलाकृतियों का पंजीकरण आवश्यक है।
  • व्यापार, बिक्री, या निर्यात करने के लिए लाइसेंस की आवश्यकता होती है।

निर्यात पर प्रतिबंध:-

  • बिना सरकार की अनुमति के किसी भी पुरावशेष या बहुमूल्य कलाकृति का निर्यात करना अवैध है।
  • सरकार द्वारा निर्यात के लिए अनुमति केवल विशेष परिस्थितियों में ही दी जाती है।

जांच और जब्ती:-

  • सरकार को संदेह होने पर किसी भी स्थान की जांच और संदिग्ध वस्तुओं की जब्ती का अधिकार है।
  • इस अधिनियम का उल्लंघन करने पर जब्त की गई वस्तुओं को सरकार के अधीन किया जा सकता है।

दंड और सजा:-

  • अधिनियम का उल्लंघन करने पर सख्त दंड और सजा का प्रावधान है।
  • इसमें जुर्माना, कारावास या दोनों शामिल हो सकते हैं।

रिपोर्टिंग और रिकॉर्ड कीपिंग:-

  • व्यापारियों और संग्राहकों को अपने संग्रह की नियमित रूप से रिपोर्टिंग करनी होती है।
  • सभी लेन-देन का विस्तृत रिकॉर्ड रखना अनिवार्य है।

उद्देश्य और महत्व

सांस्कृतिक धरोहर का संरक्षण:-

  • भारत की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर की रक्षा और संरक्षण को सुनिश्चित करना।
  • अवैध व्यापार और तस्करी को रोकना।

वैध व्यापार को प्रोत्साहन:-

  • लाइसेंस प्राप्त व्यापारियों के माध्यम से वैध व्यापार को प्रोत्साहित करना।
  • अवैध लेन-देन को रोकना और पारदर्शिता बढ़ाना।

अंतर्राष्ट्रीय सहयोग:-

  • अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सांस्कृतिक धरोहर की रक्षा के लिए सहयोग और संधियों का पालन करना।
  • चोरी और तस्करी की गई वस्तुओं की वसूली और पुनः प्राप्ति।

निष्कर्ष-

बहुमूल्य कलाकृति अधिनियम, 1972 भारत की सांस्कृतिक और पुरातात्विक धरोहर की रक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कानून है। यह अधिनियम बहुमूल्य कलाकृतियों और पुरावशेषों की अवैध तस्करी, चोरी और व्यापार को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके माध्यम से न केवल भारत की सांस्कृतिक धरोहर का संरक्षण सुनिश्चित होता है, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी सांस्कृतिक वस्तुओं की सुरक्षा और पुनः प्राप्ति में सहायता मिलती है। यह अधिनियम हमारे सांस्कृतिक विरासत को सुरक्षित और संरक्षित रखने में महत्वपूर्ण योगदान देता है।

सार्वजनिक अभिलेख अधिनियम, 1993 (Public Records Act, 1993)-

भारत में सरकारी अभिलेखों के प्रबंधन, संरक्षण और अभिगम्यता को सुनिश्चित करने के लिए स्थापित एक महत्वपूर्ण कानून है। इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य सरकारी दस्तावेजों और अभिलेखों को व्यवस्थित तरीके से संरक्षित करना और उनकी पहुँच सुनिश्चित करना है, ताकि प्रशासनिक और ऐतिहासिक उद्देश्यों के लिए इनका उपयोग किया जा सके।

प्रमुख प्रावधान

अधिनियम का उद्देश्य:-

  • सरकारी अभिलेखों का प्रबंधन, संरक्षण और सुगम पहुँच सुनिश्चित करना।
  • अभिलेखों की सुरक्षा और दीर्घकालिक संरक्षण के लिए दिशा निर्देश और नियम निर्धारित करना।

अभिलेखों की परिभाषा:- अधिनियम के तहत ‘अभिलेख’ में किसी भी सरकारी विभाग द्वारा उत्पन्न या प्राप्त किए गए सभी दस्तावेज, फ़ाइलें, पत्राचार, नक्शे, चित्र, माइक्रोफिल्म, माइक्रोफिश और इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड शामिल हैं।

राष्ट्रीय अभिलेखागार की भूमिका:-

  • भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार को राष्ट्रीय स्तर पर अभिलेखों के संरक्षण और प्रबंधन का मुख्य निकाय बनाया गया है।
  • राष्ट्रीय अभिलेखागार, सरकारी विभागों के अभिलेखों का निरीक्षण और निगरानी करेगा।

अभिलेख अधिकारी की नियुक्ति:-

  • प्रत्येक सरकारी विभाग में एक रिकॉर्ड अधिकारी नियुक्त किया जाएगा, जो विभागीय अभिलेखों के संरक्षण और प्रबंधन के लिए जिम्मेदार होगा।
  • यह अधिकारी सुनिश्चित करेगा कि अभिलेखों का सही ढंग से प्रबंधन और निपटान हो।

अभिलेखों का वर्गीकरण और संग्रहण:-

  • अभिलेखों को उनकी प्रासंगिकता और महत्व के आधार पर वर्गीकृत किया जाएगा।
  • उपयोग में न आने वाले अभिलेखों को राष्ट्रीय अभिलेखागार में संग्रहित किया जाएगा।

अभिलेखों की अभिगम्यता:-

  • सार्वजनिक अभिलेखों की अभिगम्यता सुनिश्चित की जाएगी, ताकि प्रशासनिक, कानूनी और ऐतिहासिक शोध के लिए इन्हें उपयोग में लाया जा सके।
  • गोपनीय और संवेदनशील जानकारी वाले अभिलेखों की सुरक्षा के लिए उचित उपाय किए जाएंगे।

अभिलेखों का निपटान:-

  • अभिलेखों का निपटान निर्धारित अवधि के बाद किया जाएगा, जिसमें अप्रासंगिक या गैर-आवश्यक अभिलेखों का नष्ट किया जाना शामिल है।
  • निपटान से पहले अभिलेखों का निरीक्षण और मूल्यांकन किया जाएगा।

उद्देश्य और महत्व- सार्वजनिक अभिलेख अधिनियम, 1993 का उद्देश्य सरकारी अभिलेखों की सुरक्षा, संरक्षण और प्रबंधन के लिए एक सुदृढ़ ढांचा प्रदान करना है। यह अधिनियम सुनिश्चित करता है कि सरकारी अभिलेखों को व्यवस्थित तरीके से प्रबंधित किया जाए, ताकि ये प्रशासनिक कार्यों में सहायक हो सकें और भविष्य के अनुसंधान और अध्ययन के लिए सुरक्षित रहें।

निष्कर्ष- सार्वजनिक अभिलेख अधिनियम, 1993 भारत में सरकारी दस्तावेजों और अभिलेखों के प्रबंधन और संरक्षण के लिए एक महत्वपूर्ण कानून है। यह अधिनियम न केवल अभिलेखों की सुरक्षा सुनिश्चित करता है, बल्कि उनकी सही ढंग से प्रबंधन और उपयोग को भी प्रोत्साहित करता है। इसके माध्यम से प्रशासनिक पारदर्शिता और ऐतिहासिक धरोहर का संरक्षण संभव हो सका है।

राष्ट्रीय संस्कृति कोष (NCF)

राष्ट्रीय संस्कृति कोष (National Culture Fund – NCF) भारत सरकार का एक प्रमुख उपक्रम है, जिसे सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण और संवर्धन के उद्देश्य से स्थापित किया गया है। इसका उद्देश्य सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) के माध्यम से देश की सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करना और इसे जनसाधारण तक पहुंचाना है।

स्थापना और उद्देश्य- राष्ट्रीय संस्कृति कोष की स्थापना 1996 में भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा की गई थी। इसका मुख्य उद्देश्य निजी क्षेत्र, नागरिक समाज और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों से वित्तीय और तकनीकी सहायता प्राप्त करके सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण और संवर्धन के कार्यों को आगे बढ़ाना है।

प्रमुख उद्देश्य:-

सांस्कृतिक धरोहर का संरक्षण:-

  • स्मारकों, पुरावशेषों और अन्य सांस्कृतिक धरोहर स्थलों का संरक्षण और पुनर्स्थापन।
  • इन स्थलों की सुरक्षा और रखरखाव के लिए आवश्यक संसाधनों का प्रबंधन।

जन सहभागिता और जागरूकता:-

  • सांस्कृतिक धरोहर के महत्व के बारे में जनता को जागरूक करना।
  • समुदायों और संगठनों को धरोहर संरक्षण के कार्यों में शामिल करना।

सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP):

  • निजी क्षेत्र और कॉर्पोरेट घरानों को धरोहर संरक्षण परियोजनाओं में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करना।
  • वित्तीय और तकनीकी सहायता के माध्यम से संरक्षण परियोजनाओं को सफलतापूर्वक संपन्न करना।

शोध और दस्तावेजीकरण:-

  • सांस्कृतिक धरोहर पर शोध और दस्तावेजीकरण को प्रोत्साहित करना।
  • धरोहर स्थलों और उनके इतिहास पर आधारित प्रकाशन और अध्ययन सामग्री तैयार करना।

प्रमुख गतिविधियाँ-

संरक्षण परियोजनाएँ:-

  • महत्वपूर्ण स्मारकों और धरोहर स्थलों की मरम्मत और पुनर्स्थापन परियोजनाओं का कार्यान्वयन।
  • विभिन्न स्थलों पर संरक्षण और प्रबंधन के लिए विशेष योजनाओं का निर्माण।

साझेदारी और सहयोग:-

  • राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों, निजी कंपनियों और गैर-सरकारी संगठनों के साथ साझेदारी स्थापित करना।
  • धरोहर संरक्षण के लिए वित्तीय और तकनीकी सहयोग प्राप्त करना।

जागरूकता कार्यक्रम:-

  • सांस्कृतिक धरोहर के महत्व पर सेमिनार, कार्यशालाओं और शैक्षिक कार्यक्रमों का आयोजन।
  • स्थानीय समुदायों को संरक्षण गतिविधियों में शामिल करना और उन्हें प्रशिक्षित करना।

प्रकाशन और सूचना प्रसार:-

  • सांस्कृतिक धरोहर पर आधारित पुस्तकों, पत्रिकाओं और रिपोर्टों का प्रकाशन।
  • धरोहर संरक्षण के नवीनतम तरीकों और तकनीकों की जानकारी प्रसारित करना।

सफलता और उपलब्धियाँ- राष्ट्रीय संस्कृति कोष ने कई महत्वपूर्ण परियोजनाओं को सफलतापूर्वक संपन्न किया है, जैसे:

  • कोणार्क का सूर्य मंदिर:- इस विश्व धरोहर स्थल के संरक्षण और पुनर्स्थापन के लिए महत्वपूर्ण कार्य किए गए।
  • ताजमहल:- इस प्रसिद्ध स्मारक के संरक्षण और रखरखाव के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी के माध्यम से प्रयास किए गए।
  • पुराना किला, दिल्ली:- इस ऐतिहासिक किले के संरक्षण और पुनर्स्थापन परियोजनाओं का कार्यान्वयन।

निष्कर्ष- राष्ट्रीय संस्कृति कोष (NCF) भारतीय सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण और संवर्धन के लिए एक महत्वपूर्ण पहल है। इसके माध्यम से निजी और सार्वजनिक क्षेत्र का सहयोग प्राप्त कर, धरोहर स्थलों की सुरक्षा और संरक्षण के कार्यों को सुदृढ़ किया जा रहा है। यह कोष न केवल सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने में मदद करता है, बल्कि इसे जनसाधारण तक पहुंचाने और उनके महत्व के प्रति जागरूकता बढ़ाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

जलियाँवाला बाग़ राष्ट्रीय स्मारक (संशोधन) अधिनियम, 2019

जलियाँवाला बाग़ राष्ट्रीय स्मारक (संशोधन) अधिनियम, 2019, 1951 के पुराने अधिनियम का संशोधन है। यह संशोधन कांग्रेस अध्यक्ष के ट्रस्ट का स्थायी सदस्य होने से संबंधित खंड हटाकर जलियाँवाला बाग़ राष्ट्रीय स्मारक का संचालन करने वाले ट्रस्ट को अराजनीतिक बनाने के लिए किया गया है। यह विधेयक ट्रस्ट के सदस्य के रूप में लोक सभा में मान्यता प्राप्त विपक्ष के नेता या जहाँ विपक्ष का ऐसा कोई नेता नहीं है, तो उक्त सदन में सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता को सदस्य के रूप में शामिल करने के लिए भी अधिनियम में संशोधन करता है। यह जलियाँवाला बाग हत्याकांड की 100वीं बरसी के अवसर पर जलियाँवाला बाग़ राष्ट्रीय स्मारक को सच्ची भावना से राष्ट्रीय स्मारक बनाने का एक उचित कदम है। 1 मई 1951 को भारत सरकार ने जलियाँवाला बाग़ राष्ट्रीय स्मारक ट्रस्ट को स्थापना की थी।

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