
- प्रस्तावना
जैविक खेती (Organic Farming) एक ऐसी कृषि पद्धति है जो रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों और रासायनिक उपचारों के स्थान पर प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करके पर्यावरण-सम्मत और सतत उत्पादन सुनिश्चित करती है। बीते कुछ दशकों में पर्यावरणीय समस्याओं, खाद्य असुरक्षा और भूमि की गिरती उर्वरता के चलते जैविक खेती के महत्व में तीव्र वृद्धि हुई है।
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- जैविक खेती का प्रारंभिक विकास
- प्राचीन भारत में कृषि – भारत में कृषि परंपरागत रूप से प्राकृतिक तत्वों पर आधारित थी। वैदिक युग में गोबर, गोमूत्र, हरी खाद एवं फसल चक्र का प्रयोग होता था। यह पूरी तरह से जैविक प्रणाली थी।
- औद्योगिक कृषि का आगमन- हरित क्रांति (1960–70) के दौरान उन्नत बीज, रासायनिक उर्वरक और कीटनाशकों का उपयोग आरंभ हुआ। इससे उत्पादन तो बढ़ा, लेकिन दीर्घकालिक पर्यावरणीय और स्वास्थ्य समस्याएँ भी उत्पन्न हुईं।
- जैविक खेती की वापसी – जैसे-जैसे रासायनिक खेती के दुष्परिणाम सामने आने लगे, वैज्ञानिकों, पर्यावरणविदों और किसानों ने एक बार फिर जैविक खेती की ओर रुख किया।
- वैश्विक स्तर पर विकास
- यूरोप और अमेरिका में – 20वीं सदी के मध्य में रडोल्फ स्टेनर (Rudolf Steiner) ने बायोडायनामिक खेती का विचार प्रस्तुत किया।
- IFOAM की स्थापना (1972)- अंतरराष्ट्रीय जैविक कृषि आंदोलन को संगठित करने के लिए International Federation of Organic Agriculture Movements (IFOAM) की स्थापना हुई।
- EU और USA में प्रमाणन –यूरोपीय संघ (EU) और अमेरिका ने जैविक खेती के लिए प्रमाणन एवं मानकों की स्थापना की, जिससे जैविक उत्पादों का वैश्विक बाज़ार बना।
- भारत में जैविक खेती का विकास
- 2000 के बाद- भारत सरकार ने जैविक खेती को बढ़ावा देने हेतु विभिन्न योजनाएँ शुरू कीं:
- राष्ट्रीय जैविक खेती परियोजना (NPOF)
- परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY)
- उत्तर-पूर्व क्षेत्र के लिए MOVCDNER योजना
- प्रमाणन- Participatory Guarantee System (PGS) और NPOP (National Programme for Organic Production) के तहत जैविक उत्पादों को प्रमाणित किया जाने लगा।
- जैविक खेती के क्षेत्र में भारत की उपलब्धियाँ
- भारत आज जैविक किसानों की संख्या में दुनिया में पहले स्थान पर है।
- मध्यप्रदेश, राजस्थान, उत्तराखंड, और सिक्किम जैविक खेती के बड़े राज्य बनकर उभरे हैं।
- सिक्किम 2016 में विश्व का पहला 100% जैविक राज्य घोषित हुआ।
- जैविक खेती के विकास में बाधाएँ
- शुरुआत में उत्पादन में कमी
- जैविक खाद और बीज की सीमित उपलब्धता
- किसान प्रशिक्षण की कमी
- जैविक उत्पादों की बिक्री और बाज़ार व्यवस्था की चुनौतियाँ
- प्रमाणन की प्रक्रिया जटिल और महंगी
- भविष्य की दिशा
- जैविक खेती को प्रोत्साहित करने के लिए सहकारी समितियाँ, डिजिटल पोर्टल और डायरेक्ट-टू-कंज्यूमर मार्केटिंग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
- जैविक खेती से जुड़ी शिक्षा और प्रशिक्षण को स्कूलों और विश्वविद्यालयों में शामिल किया जाना चाहिए।
- निष्कर्ष
जैविक खेती भारत की पारंपरिक विरासत है, जो आज की बदलती जलवायु और स्वास्थ्य चुनौतियों के सामने एक स्थायी समाधान के रूप में उभर रही है। इसका विकास न केवल पर्यावरण को बचाएगा, बल्कि किसानों को आर्थिक रूप से सशक्त भी बनाएगा। सरकार, किसान और उपभोक्ता अगर एकजुट होकर कार्य करें, तो भारत पुनः “जैविक कृषि की भूमि” बन सकता है।
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