भारतीय परिषद अधिनियम 1861 के पारित होने के कारण , उद्देश्य एवम विशेषताए – Indian Act Council -1861


भारतीय परिषद अधिनियम 1861 -Indian Act Council -1861  

भूमिका-

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        1858 ई. के कानून तथा महारानी विक्टोरिया की  घोषणा के उपरान्त भारतीय प्रशासनिक ढांचे में कतिपय परिवर्तन किए गए, जैसे ईस्ट इंडिया कम्पनी समाप्त कर दी गई। गवर्नर जनरल के स्थान पर अब ब्रिटिश ताज के प्रतिनिधि वायसराय की नियुक्ति होने लगी तथा भारतीय राजाओ और जनता को आश्वासन दिया गया कि उनके सम्मान, सुरक्षा, धर्म की रक्षा की जायेगी तथा सरकारी सेवाओ में केवल योग्यता को स्थान दिया जाएगा। 1861 में भारतीय परिषद अधिनियम बनाकर धीरे- धीरे सरकारी कार्य प्रणाली का गठन तथा एकीकरण किया गया। इसके द्वारा सर्वप्रथम भारतीयो को शासन में सम्मिलित करने का प्रयास किया गया। इसे अंग्रेजो ने सहयोग की नीति का नाम दिया गया। इस उदारतापूर्ण नीति का पालन 1919 तक किया गया।

इस अधिनियम में कानून बनाने की प्रक्रिया में भारतीय प्रतिनिधियों को शामिल करने की शुरुआत हुई। 1862 में लॉर्ड कैनिंग ने 3 भारतीयों बनारस के राजा, पटियाला के महाराजा और सर दिनकर राव को विधान परिषद में मनोनीत किया।

1861 ई. अधिनियम के पारित होने के कारण-

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1. ब्रिटिश नीति  मेंं परिवर्ततन–

                1857ई क विद्रोह ने ब्रिटिश सरकार को यह एह्सास  करा दिया था कि भारतीओ के सहयोग के बिना लम्बे समय तक उन पर शासन करना सम्भव नही होगा। अत: नियमो में परिवर्तन करना आवश्यक हो गया।

2. वफादार भारतीयो की मांग- 

                वफादार भारतीयो ने विधायिका परिषद में भारतीयो को स्थान देने की मांग रखी। सर सैय्यद अहमद खान के अनुसार विद्रोह का एक प्र्मुख कारण भारतीयो को व्यवस्थापिका में न रखना भी  था।  अत: भारतीयो को शामिल न किये जाने के कई दुष्परिणाम भी हो सकते थी । फलत: कानून पारित किया गया।

3. परिषद में दोष –

                 भारत के विभिन्न भगो में विभिन्न परिस्थितिया होने के कारण सम्पूर्ण देश के लिये कानून बनाने हेतु एक परिषद पर्याप्त नही थी। अत: भारत  ब्रिटिश सरकार विधायिका में परिवर्तन कर सुधार लाना चाहती  थी ।

4. प्रांतीय सरकारो का प्रतिनिधित्व न होना- 

                 विधायिका परिषद में प्रांतीय सरकारो का प्रतिनिधित्व न होने के कारण उनके  क्षेत्र के लिए बनाए गए कानूनो में हाथ नही रहता था। अत: 1861 के अधिनियम में इसी कमी को पूरा करने का प्रयास किया गया था।

6. गवर्नर जनरल को अनावश्यक अधिकार- 

                 गवर्नर जनरल अधिनियमित प्रांतो को आदेश दे सकता था जिनका महत्व कानून के समान था। यह भी संवैधानिक त्रुटि थी।

7. विधायिका परिषद का दोषपूर्ण कार्यक्रम-

                 विधायिका परिषद का दोषपूर्ण  कार्यक्रम तत्कालीन शासन व्यवस्था से मेल नही खाता था । इसका स्वरुप एक छोटी संसद का होने से इसकी शक्ति काफी बढ़ गई। यह केंद्रीय सरकार के मामलो में हस्तक्षेप करती  थी। इसने भारत सचिव के सामने के सामने कानून सम्बंधी योजनाओ को अस्वीकार कर दिया तथा स्वतंत्र कानून निर्माण का अधिकार प्राप्त करने का प्रयास किया।अत: सरकार ने इसकी शक्ति और अधिकार को नियंत्रित करना जरुरी समझा।

8. भारतीयो की इच्छा की पूर्ति – 

                 भारतीय जनता भी शासन में सुधार की मांग कर रही थी। वह शासन में अपना प्रतिनिधित्व  चाहती थी अत: संसदीय अधिनियम पारित करना अनिवार्य हो गया।

 उपरोक्त कारणो से विवश होकर ब्रिटिश सरकार ने 1861 का भारतीय परिषद अधिनियम पारित किया।

इस अधिनियम को लाने का प्रमुख उद्देश्य-

 ====विकेंद्रीकरण की प्रणाली को प्रारंभ करना था गर्वनर जनरल को अपनी परिषद की बैठक के समय एवं स्थान को निर्धारित करने का अधिकार प्रदान किया गया।

——– गवर्नर जनरल को मद्रास और बंबई अन्य प्रांतों में भी विधान परिषद के निर्माण की शक्ति दी गई।

 ——–जिसके अंतर्गत 1862 में बंगाल में,  1886 में आगरा एवं अवध, 1897 में पंजाब में, 1818 में बर्मा में, 1912 में बिहार,उड़ीसा,असम में तथा 1913 में मध्य प्रांत में विधान परिषदों का निर्माण किया गया।

———गवर्नर जनरल को पहली बार अध्यादेश जारी करने की शक्ति प्रदान की गई इसमें अध्यादेश की अवधि छ: माह होती थी। इस अधिनियम के द्वारा पहली बार भारत में विभागीय प्रणाली”(पोर्टफोलियो सिस्टम)” लॉर्ड कैनिंग के द्वारा प्रारंभ किया गया।

 ———जिसमें शासन की सुविधा के लिए प्रशासन को कुछ विभाग भी बांटे जाने का प्रावधान किया गया।

——–इस एक्ट के माध्यम से विकेंद्रीकरण की प्रक्रिया प्रारंभ की कोशिश की गई। जिसने भारत में राजनीतिक संगठनों की स्थापना का मार्ग प्रशस्त किया।

——–जिसकी अभिव्यक्ति में 1885 ईस्वी में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना हुई। हिंदुओं और मुसलमानों का सांप्रदायिक विद्वेष प्रारंभ हुआ।

अधिनियम की विशेषताएं-

 – गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी परिषद का विस्तार किया गया,विभागीय प्रणाली का प्रारंभ हुआ,गवर्नर जनरल को पहली बार अध्यादेश जारी करने की शक्ति प्रदान की गई।

-इस अधिनियम में मद्रास और बम्बई प्रेसीडेन्सियों को विधायी शक्तियां पुनः देकर विकेन्द्रीकरण प्रक्रिया की शुरुआत की।

-इसके द्वारा कानून बनाने की प्रक्रिया में भारतीय प्रतिनिधियों को शामिल करने की शुरुआत की । गवर्नर जरनल को बंगाल, उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रांत और पंजाब में विधान परिषद स्थापित करने की शक्ति प्रदान की गई।

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